सेहत में जहर घोलता तम्बाकू
३१ मई २०१२दुनिया भर के छियासठ प्रतिशत पुरुष और चालीस प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में तम्बाकू का प्रयोग करते हैं. तम्बाकू का जहरीला नाग हर रोज भारत में सताईस सौ जिंदगियां डस लेता है. पूरी दुनिया में साल भर में चौवन लाख और भारत में नौ लाख लोग तम्बाकू के कारण समय से पहले चल बसते हैं. तम्बाकू के कारण विश्व भर में सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं. मुंह के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले भी भारत में ही पाए जाते हैं.
क्यों फैल रहा है तम्बाकू का जहर
तम्बाकू के बढ़ते इस्तेमाल के पीछे सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों कारण हैं. गांव की चौपाल पर लगने वाली बैठक बीड़ी-सिगरेट के बिना पूरी ही नहीं मानी जाती. हुक्का पानी बंद कर देने जैसे जुमले तम्बाकू के प्रति भारतीय समाज की मानसिकता दिखाते हैं. शादी-ब्याह या तीज त्योहार पर तम्बाकू किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है.
बुजुर्ग पीढ़ी जहां आज भी हुक्के और बीड़ी का सेवन करना पसंद करती है तो वहीँ युवा पीढ़ी सिगरेट, पान मसालों और गुटकों की गिरफ्त में कैद होती जा रही है. सामाजिक मान्यताओं की बात करें तो राजस्थान के बाड़मेर के आदिवासी क्षेत्रों में तो नवब्याहता वधु का स्वागत फूलों की माला के साथ पान मसालों और गुटकों की मालाओं से किया जाता है.
वर्तमान समय में बढ़ता जा रहा मानसिक तनाव तम्बाकू के प्रसार में आग में घी का काम कर रहा है. हालांकि अट्ठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कानूनन तम्बाकू नहीं बेची जा सकती, पर मुंह से धुआं निकालते बच्चे आसानी से देखे जा सकते हैं.
महिलाएं भी पीछे नहीं
विश्व की बीस प्रतिशत महिलाएं सिगरेट का शौक रखती हैं. तम्बाकू का इस्तेमाल करने वालों में भारत की शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. जयपुर की घाट की घुणी पर रहने वाले पचास वर्षीया तेजा राम को बीड़ी की लत उनकी बीवी कमली बाई से कैसे पड़ गयी, उन्हें खुद पता नहीं चला. शहरी महिलाओं के लिए तो सिगरेट पीना फैशन और आधुनिकता की निशानी मानी जाती है. ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे में देश की दस प्रतिशत लड़कियों ने खुद सिगरेट पीने की बात स्वीकारी है. चोरी छुपे सिगरेट पीने वाली लड़कियों की संख्या कहीं ज्यादा होने की आशंका है.
भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ संगठन की एफसीटीसी नामक संधि पर हस्ताक्षर किये हैं जिसके कारण वह तम्बाकू के इस्तेमाल को रोकने के उपाय करने के लिए बाध्य है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार अब किसी भी खाद्य पदार्थ में निकोटिन और तम्बाकू का प्रयोग नहीं किया जा सकता. बिहार सरकार ने तम्बाकू वाले पान मसालों और गुटकों के उत्पादन, बिक्री और भण्डारण पर रोक लगा दी है. केरल और मध्य प्रदेश की सरकारें पहले ही ऐसा कर चुकी हैं.
राजस्व कम, बोझ ज्यादा
सर्वोच्च न्यायालय ने फूड स्टैण्डर्ड एंड सेफ्टी ऑथोरिटी ऑफ इंडिया को गोदावत और अंकुर गुटका केस में तम्बाकू नियंत्रण के स्पष्ट आदेश दिए हुए हैं पर यह संस्था तम्बाकू नियंत्रण विभाग पर इस की जिम्मेदारी टाल देती है. वह गुटके को मिलावटी पदार्थ होने का कारण खाद्य पदार्थ ही नहीं मानती. साफ है कि तम्बाकू कम्पनियां अपनी बेहिसाब कमाई को खोना नहीं चाह रहीं.
लेकिन तम्बाकू नियंत्रण में स्वयंसेवी संस्थाएं सार्थक भूमिका निभा रही है. यूनियन अगेंस्ट टुबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज गंभीर प्रयास कर रहे हैं. स्वयंसेवी संस्थाओं के के विरोध के ही कारण जयपुर में सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट पीने के लिए प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को जुर्माना देना पड़ा.
तम्बाकू युक्त गुटके और पान मसाले में तीन हजार पचानवे कैमिकल्स पाए जाते हैं जिन में से अट्ठाईस से कैंसर होता है. तम्बाकू शरीर के लगभग हर अंग पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इस से होने वाली बीमारियाँ भी कई हैं. भारत सरकार को इस वर्ष तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर लगभग चालीस हजार करोड़ रूपये खर्च करने पड़े हैं जबकि तम्बाकू से प्राप्त कुल राजस्व इस साल 248 अरब रूपये का ही है.
रिपोर्ट: जसविंदर सहगल
संपादन: महेश झा