चलो दिल्ली - देखो हिंदुस्तान
११ अप्रैल २०११वैसे अब तक बहुतों का ख्याल था कि सिर्फ कास्टिंग ही नहीं, लघु फिल्में खुद लीक से हटकर होती हैं. लेकिन लारा दत्ता कहती हैं कि दर्शक की दिलचस्पी इस बात में होती है कि ऐसी जोड़ी को क्यों चुना गया, जिनमें आपस में कोई मेल नहीं है. कहानी में ऐसी कौन सी बात है कि इन्हें जोड़ना पड़ा ? - यह लारा दत्ता का फॉर्मूला है.
लारा दत्ता कहती हैं, "अगर मुझसे लीक से हटकर स्टार कास्ट की मिसाल के बारे में पूछा जाए, तो मैं वेक अप सिड में रणबीर कपूर और कोंकणा सेन की जोड़ी का जिक्र करना चाहूंगा. हमारी फिल्म में भी मेरी और विनय पाठक की पृष्ठभूमि अलग अलग है." उनकी राय में यह ऐसी फिल्मों की यूएसपी यानी यूनिक सेलिंग प्वाइंट है, जिसके बल पर फिल्म बिकती है.
एक अनोखा सफर
मिस यूनिवर्स रह चुकीं 32 साल की लारा का मानना है कि विनय जैसे एक चरित्र के साथ काम करना एक दिलचस्प बात है. इससे लगता है कि फिल्म में ऐसे दो कैरेक्टर को एक साथ लाने का कोई ख़ास मकसद होगा.
शशांत शाह की फिल्म 'चलो दिल्ली' में लारा और विनय दो ऐसी भूमिकाओं में हैं, जो सफर पर हैं और उनके सफर के दौरान असली भारत की तस्वीर अपने रंगबिरंगे रूपों, अजीबोगरीब पात्रों के साथ उभरती है.
अपने रोल के बारे में लारा कहती हैं, "मैं मिहिका बनर्जी हूं. मैं कहूंगी कि वह अपर क्लास की है, वह पागलपन की हद तक परफेक्शनिस्ट है." इसके विपरीत फिल्म का हीरो है मनु गुप्ता, जिसका रोल विनय पाठक कर रहे हैं. वह चांदनी चौक का रहने वाला है, जिसकी करोल बाग में साड़ी की दुकान है. वह लगातार डकार लेता है और नजदीक रहे तो पता चल जाता है कि उसका पेट गड़बड़ है. वह हमेशा पान की पीक थूकता रहता है. यूं कहा जाए कि बिल्कुल लोअर मिड्ल क्लास का एक नमूना.
लारा कहती है, "इस शख्स पर भरोसे के सिवा उसके सामने कोई चारा नहीं है, क्योंकि किस्मत ने उन्हें आपस में जोड़ दिया है. उसके लिए यह सफर जानलेवा है, जबकि मनु को कोई परवाह नहीं."
लारा की राय में यह फिल्म जिंदगी की कड़वी सच्चाई को पहचानने और सच्चे लोगों के नजदीक आने की कहानी है. इसमें कोई सामाजिक संदेश देने की कोशिश नहीं की गई है. लारा कहती हैं, "उन्हें प्यार हो जाता है या नहीं, यह मैं नहीं बताउंगी. लेकिन एक सच्ची कहानी है. हमने इस कहानी में सफर के साथ इंसानी रिश्तों को जोड़ने की कोशिश की है."
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादक: ए कुमार