चेरनोबिल की 25वीं बरसी और फुकुशिमा की चुनौती
२६ अप्रैल २०११मंगलवार को चेरनोबिल परमाणु हादसे को 25 साल पूरे हो गए. इस हादसे की वजह से लोगों की सेहत पर पड़े असर का आकलन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की टीम में शामिल तीन जानकारों न्यूयॉर्क के किर्स्टन मोइश और फिलिप मैकार्थी और स्कॉकहोम के डॉ. पर हॉल ने एक साझा लेख लिखा है. मोइश का कहना है कि ज्यादातर विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि चेरनोबिल में हुए परमाणु धमाके से प्रभावित इलाकों में कैंसर के मामलों में अत्यधिक इजाफा नहीं देखा गया. तब की बहुत सी बातों को इसलिए चुनौती दी गई क्योंकि उस वक्त यूक्रेन के पास महामारी विज्ञान के विशेषज्ञों की कमी थी, इस काम के लिए पैसा भी नहीं था, सरकार ने भी काफी कुछ छिपाने की कोशिश की और फिर सोवियत संघ भी टूट रहा था.
फुकुशिमा के सबक
यूएन की इस टीम का कहना है कि हादसे के प्रभावों को जानने के लिए कभी भरोसेमंद जानकारी जुट ही नहीं पाई या फिर गुम हो गई. मोइश ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए को बताया, "जापान के पास कहीं बेहतर वैज्ञानिक, राजनीतिक और आर्थिक ढांचा है कि वह फुकुशिमा परमाणु संकट का सही से अध्ययन करा सके. मुझे उम्मीद है कि इस तरह के अध्ययन से चेरनोबिल के अध्ययन को भी सहारा मिलेगा जो उतना सटीक नहीं है. इससे लोगों में परमाणु हादसे को लेकर चिंता और भ्रांति भी कम होगी."
जापान में 11 मार्च को आए भूकंप और सूनामी के बाद फुकुशिमा में छह रिएक्टरों वाला परिसर ध्वस्त हो गया. वहां ईंधन छड़ों के पिघलने से बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी तत्व बाहर आ रहे हैं. रिएक्टरों के 20 किलोमीटर के दायरे को खाली करा लिया गया है.
चेरनोबिल में सफाई करने के लिए लगाए गए तीन दर्जन से ज्यादा कर्मचारी विकिरण की चिंता के कारण ही मारे गए. वहीं आण्विक विकिरण के प्रभावों की पड़ताल के लिए बनी संयुक्त राष्ट्र की कमेटी का कहना है कि विकिरण के चलते 6000 से ज्यादा थाइरॉइड कैंसर के मामले देखे गए. पीड़ितों में ज्यादातर बच्चे और किशोर थे. हालांकि भविष्य की चिंता और बीमारी की आंशंका में लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े और फिर वे कभी नहीं लौट सके. अनुमान है कि चेरनोबिल विकिरण के चलते 4000 से 12,000 या इससे भी ज्यादा लोगों की जानें गईं, हालांकि यूएन की टीम को ऐसे सबूत नहीं मिले हैं.
परमाणु ऊर्जा का विरोध
चेरनोबिल हादसे की बरसी की पूर्व संध्या पर फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया में सोमवार को कई प्रदर्शन हुए जिनमें परमाणु रिएक्टरों को बंद करने की मांग की गई. आयोजकों का कहना है कि जर्मनी भर में हुए प्रदर्शनों में करीब डेढ़ लाख लोगों ने हिस्सा लिया. फ्रांस और जर्मनी की सीमा पर स्ट्रासबुर्ग में भी परमाणु ऊर्जा विरोधी प्रदर्शन हुए. ऑस्ट्रिया में भी एक हजार लोगों ने परमाणु ऊर्जा के खिलाफ झंडा बुलंद किया जिनमें देश के चांसलर वेर्नर फायमन भी शामिल हैं. उनका कहना है, "चेरनोबिल हादसे के बाद 160 नए परमाणु स्टेशन खुले हैं. स्वार्थी परमाणु ऊर्जा लॉबी चाहती है कि चेरनोबिल और फुकुशिमा जैसे हादसों को भुला दिया जाए."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः ओ सिंह