जर्मनी में राजनीति से बचते दलाई लामा
२३ अगस्त २०११हैम्बर्ग शहर में ध्यान और स्मृति पर आधारित लेक्चर को सुनने डेढ़ हजार से ज्यादा लोग जमा हुए और ऑडिटोरियम पूरी तरह पैक दिखा. 76 साल के तिब्बती गुरु ने जूते उतारे और मंच पर पालथी मार कर बैठ गए. ध्यान पर लगभग दो घंटे तक चली बात को हर किसी ने ध्यान से सुना.
उन्होंने कहा, "पिछले एक या दो दशक में ज्यादातर वैज्ञानिक और मेडिकल रिसर्चर मस्तिष्क और भावनाओं के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि ये दोनों चीजें अदृश्य हैं लेकिन इनका हमारी शख्सियत में बेहद अहम रोल है." दलाई लामा का मानना है कि मस्तिष्क शांति और विनाश दोनों का जनक है.
राजनीति से दूर
दलाई लामा का कहना है कि मनुष्य के आंतरिक गुणों के बारे में बेहद कम चर्चा होती है और इस पर ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. उनके मुताबिक खुद से जो खुशी मिल सकती है, वह पैसों और पदार्थों से नहीं. दलाई लामा ने सुझाव दिया, "ऐसा सिलेबस तैयार करना चाहिए, जिसमें बचपन से ही लोगों को धर्मनिरपेक्ष पढ़ाई पर ध्यान दिलाया जा सके और कुछ दिनों बाद एक बेहतर पीढ़ी तैयार हो सके."
दलाई लामा जर्मनी के हेसे राज्य के निमंत्रण पर जर्मनी आए हैं और उनका चार दिनों का यह दौरा राजनीति से दूर है. दलाई लामा ने पिछले दिनों तिब्बतियों के राजनीतिक प्रमुख का पद छोड़ दिया है और अब खुद खुद को सिर्फ आध्यात्मिक गुरु बता रहे हैं. वह ऐसे वक्त में जर्मनी आए हैं, जब चांसलर अंगेला मैर्केल विदेश के दौरे पर हैं और इस वजह से उनका राजनीति से दूर रहना आसान हो गया है. दलाई लामा जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े नेताओं से मिलते हैं, चीन भौंहें तान लेता है. पिछले दिनों जब वह अमेरिका गए तो उन्होंने राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी मुलाकात की, जिस पर चीन ने खूब बवाल मचाया.
तिब्बतियों की तारीफ
दलाई लामा का कहना है कि पिछला शतक सिर्फ युद्धों में बीता और इस शतक को शांतिपूर्ण और उपयोगी बनाया जा सकता है. हालांकि धर्मगुरु का यह भी कहना है कि किसी भी बदलाव के लिए कार्रवाई जरूरी है और पूजा प्रार्थना या ध्यान लगाने से बदलाव नहीं हो सकता. उन्होंने तिब्बत के लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे लोग शांति पर यकीन करते हैं.
दलाई लामा ने 1951 में तिब्बतियों के राजनीतिक प्रमुख का पद ग्रहण किया था और उसके अगले साल उन्होंने तिब्बत में बदलाव के लिए एक समिति गठित की. हालांकि चीन के दखल की वजह से यह सफल नहीं हो पाया.
चीन के निशाने पर आने के बाद दलाई लामा ने 1959 में तिब्बत छोड़ दिया और भारत के धर्मशाला शहर में पहुंच गए. तब से वह और उनके समर्थक यहीं रह रहे हैं. दलाई लामा इस दौरान लगातार राजनीतिक और धार्मिक गुरु बने रहे. लेकिन इस साल मार्च में उन्होंने राजनीतिक प्रमुख का पद छोड़ दिया और खुद को सिर्फ धार्मिक गुरु के दायरे में रखने का फैसला किया. लोबसांग सांग्ये तिब्बतियों के राजनीतिक प्रमुख बने हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः ए कुमार