जॉब्स के साथ निकली एप्पल की आत्मा
६ अक्टूबर २०११एप्पल कंप्यूटर को दुनिया के सामने लाने वाले लोग स्टीव जॉब्स को एक कामयाब बिजनेसमैन, एक बेहतरीन आविष्कारक, एक निरंकुश लीडर और एक जिद्दी इंसान के तौर पर जानते हों लेकिन उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि वह किसी बच्चे से कम नहीं थे. किसी नए प्रोडक्ट को लेकर जॉब्स का लगाव लड़कपन की हद तक चला जाता था और उन्हें चैन तभी आता, जब उस प्रोडक्ट की कामयाबी पक्की हो जाती.
कई महान अमेरिकी कंपनियों की तरह जॉब्स ने भी एप्पल की शुरुआत अपने गैरेज में की थी. नाम एप्पल जरूर रखा गया और इसका निशान भी जन्नत के प्रतिबंधित फल की तरह दिखता है, जिसकी एक बाइट ली जा चुकी है. एप्पल का पहला लोगो भी एक सेब का पेड़ था, जिसके नीचे आइजक न्यूटन बैठे दिखते थे. बाद में जब लोगो बदला तो जॉब्स के पसंदीदा म्यूजिक बैंड बीटल्स के साथ उनका झगड़ा भी हुआ. एप्पल का लोगो बीटल्स की कंपनी के लोगो से मिलता जुलता था. पर बाद में सब सुलझ गया.
अलग सोच वाले जॉब्स
आखिरी छोर से शुरुआत करने वाले जॉब्स का काम बिलकुल अलग हुआ करता. जब दुनिया ब्लैक एंड व्हाइट कंप्यूटर को बेहतर बनाने के चक्कर में फंसी थी, उन्होंने इसे रंगीन बना दिया. जब की बोर्ड को बेहतर बनाने पर बहस चल रही थी, उन्होंने कंप्यूटर में माउस डाल दिया और जब कंप्यूटर की दुनिया कीबोर्ड और मॉनिटर में सामंजस्य बनाने के उलझन में फंसी थी, उन्होंने कीबोर्ड को मॉनिटर में ही घुसा दिया.
सीरियाई मुस्लिम पिता और अमेरिकी मां के बेटे स्टीव जॉब्स को कभी भी अपने असली मां बाप का प्यार नहीं मिल पाया. छोटी उम्र में ही उन्हें जॉब्स दंपति ने गोद ले लिया और 10-11 साल की उम्र में जब उन्होंने नासा के कार्यालय में पहली बार कंप्यूटर देखा, तो उसमें उन्हें अपना भविष्य दिख गया. पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर 21 साल की उम्र में उन्होंने एक और स्टीव, स्टीव वोजनियाक के साथ गैरेज में कंप्यूटर बनाना शुरू कर दिया और पहले दिन से ही एक पक्के सेल्समैन की तरह इसे बेचने पर ध्यान देने लगे.
आध्यात्म का रुख
बीच में ऐसा भी वक्त आया, जब उन्होंने कंप्यूटर छोड़ आध्यात्म की सोची और आध्यात्मिक गुरु नीम करोली बाबा से मिलने भारत का रुख कर लिया. लेकिन जब वह भारत पहुंचे, तो पता चला कि बाबा गुजर चुके हैं. फिर उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और कभी लंबे बाल रखने वाले स्टीव जॉब्स भारत से सिर मुंडवा कर लौटे. जॉब्स भले ही आध्यात्म की धारा से लौट आए हों लेकिन कंप्यूटर की पूरी दुनिया उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानती है.
1980 का दशक आते आते एप्पल उस वक्त के कंप्यूटर चैंपियन आईबीएम को टक्कर देने लगा और सिर्फ 27 साल की उम्र में जॉब्स की तस्वीर पहली बार टाइम के पहले पन्ने पर छपी. लेकिन उनका जीवन भी अद्भुत विरोधाभास रहा. उन्होंने जिस कंपनी की नींव रखी, उसी ने उन्हें बर्खास्त कर दिया. उन्हें जॉन स्कली ने पिंक स्लिप पकड़ा दी, जिन्हें वह खुद पेप्सी से एप्पल में लाए थे. बहुत जल्दी अमेरिका की बड़ी मैगजीनों के पहले पन्ने पर उनकी तस्वीर दोबारा छपी. इस बार हेडलाइन छपा, "फॉल ऑफ स्टीव जॉब्स."
हालांकि जॉब्स खुद इसे अपनी जिन्दगी का एक बेहतरीन पड़ाव मानते हैं. उन्होंने कभी कहा था, "एप्पल से मुझे निकाला जाना मेरे जीवन के सबसे सुंदर अनुभवों में एक रहा है."
स्टीव का वनवास
जॉब्स की जॉब चली गई. लेकिन कंप्यूटर नहीं छूटा. नेक्स्ट के नाम से नई कंपनी बना ली, जिसने कामयाबी भी हासिल की. पर एप्पल से भावनात्मक जुड़ाव बना रहा. एप्पल ने 1990 के दशक में नेक्स्ट को खरीद लिया और जब खुद एप्पल दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गई, तो उन्हें उम्मीद सिर्फ जॉब्स में ही दिखी. उन्हें दोबारा बुला लिया गया. 12 साल के वनवास के बाद 1996 में जॉब्स अपने दिल के करीब एप्पल में लौट आए. उसके बाद जो कुछ हुआ, दुनिया जानती है.
सिर्फ एक डॉलर की तनख्वाह लेने वाले जॉब्स ने मैकिनटॉश कंप्यूटर और आईपॉड जैसे प्रोडक्ट्स बना कर इलेक्ट्रॉनिक दुनिया को अपना दीवाना बना दिया. मार्केट में हर मोर्चे पर उनकी जीत हो रही थी लेकिन निजी जीवन में वह कुदरत से हार रहे थे. दुर्लभ व्यक्ति एक दुर्लभ कैंसर का शिकार हो गया, जिसने उसकी सेहत को खाना शुरू कर दिया. पूरी बाजू वाली काली टीशर्ट और जींस पहन कर सामने आने वाले जॉब्स के चेहरे पर अचानक झुर्रियां नजर आने लगीं. बदन कमजोर दिखने लगा. लीवर भी बदलवाना पड़ा. लेकिन कंप्यूटर का जुनून खत्म नहीं हुआ. जून, 2011 में वह आखिरी बार सामने आए.
आईफोन की दुनिया
एप्पल ने 2007 में खुद को पर्सनल कंप्यूटर के खांचे से निकाल लिया और कभी कीबोर्ड को मॉनिटर में घुसा देने वाले जॉब्स ने पूरा का पूरा कंप्यूटर टचस्क्रीन वाले आईफोन में डाल दिया. दुनिया का पहला स्मार्टफोन पैदा हो चुका था, जिसने मोबाइल की दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया. एक आईफोन वाली दुनिया, दूसरी बिना आईफोन वाली.
लेकिन उन्हें अपनी सेहत का आभास हो गया था. जनवरी में ही वह लंबी छुट्टी पर चले गए और दो महीने पहले इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उन्होंने लिखा था कि एप्पल के बेहतरीन दिन अभी आने बाकी हैं. शायद उन्हें इस बात का अहसास था कि उनके बगैर कंपनी को मुश्किल होगी. कंपनी भी इस बात को जानती थी. इसीलिए दो दिन पहले जब आईफोन 5 के लॉन्च होने का इंतजार था, एप्पल ने सिर्फ इसे किसी तरह टाल दिया.
स्टीव का जीवन 56 साल की उम्र में भले ही रुक गया हो लेकिन वह अमर हो गए हैं. तभी तो कांग्रेसी मेरी बोन मैक उन्हें 21वीं सदी का थॉमस एडीसन बता रही हैं. उन्होंने आईफोन लॉन्च करते हुए, जो कहा, वह लाइन एक पूरी पीढ़ी के कानों में गूंजती रहेगी.
एन आईपॉड.. ए फोन.. एन इंटरनेट कॉम्यूनिकेटर.. आर यू गेटिंग इट...
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ए कुमार