एप्पल को मशीन बनाने वाले जॉब्स का इस्तीफा
२५ अगस्त २०११स्टीव जॉब्स ने जब कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ी थी, तो शायद किसी पर असर न पड़ा हो लेकिन एप्पल का जॉब बीच में छोड़ देने से पूरी इंडस्ट्री हिल गई है. जॉब्स ने एक छोटे से पत्र के साथ अपना काम कर दिया है. लिखा है, "मैं बार बार कहता था कि जिस दिन मैं अपनी जिम्मेदारी उठाने लायक नहीं रहूंगा, तो सबसे पहले इसकी सूचना मैं दूंगा. दुर्भाग्य की बात है कि आज वह दिन आ गया है."
पिछले चार साल में आईफोन और आईपैड से पूरी दुनिया पर छा जाने वाले एप्पल का दिल, दिमाग और आत्मा स्टीव जॉब्स ही रहे हैं. दूसरे सीईओ की तरह टाई कोट नहीं, बल्कि पूरी बांह की काली टी शर्ट और जीन्स पहनने वाले स्टीवी जब कभी मीडिया के सामने आते, वहां मौजूद लोग उनके सम्मान में खड़े हो जाते. ऐसा सम्मान शायद किसी और सीईओ को नसीब न हो.
बुरी तरह बीमार जॉब्स
जॉब्स पैनक्रियास के एक असाधारण किस्म के कैंसर से पीड़ित हैं और उन्हें लीवर भी बदलवाना पड़ा है. हाल के दिनों में उनकी तबीयत बेहद खराब रही है और वह जनवरी से मेडिकल लीव पर हैं. हालांकि इस दौरान भी वह दो बार मीडिया के सामने आए हैं, तब वह बेहद दुबले और थके हुए दिख रहे थे. चलते हुए लड़खड़ा रहे थे. हालांकि इस दौरान आईपैड 2 पेश करते हुए उनके जोश में कोई कमी नहीं दिखी.
56 साल के जॉब्स ने इस्तीफे की चिट्ठी में टिम कुक के नाम को सीईओ के तौर पर आगे बढ़ाया है, जो वैसे भी हाल के दिनों में एप्पल का कामकाज देख रहे हैं. हालांकि इस पत्र में जॉब्स ने अपनी बीमारी के बारे में कुछ नहीं कहा है. एप्पल इस मामले में हमेशा खामोश रही है कि जॉब्स को वाकई में कौन सी बीमारी है. लेकिन यह बीमारी अब सिर्फ कंपनी नहीं, बल्कि दुनिया भर में एप्पल के फैन्स के लिए भी बड़ी गंभीर होती जा रही है, जिसका असर कंपनी के प्रदर्शन और शेयर बाजार पर पड़ सकता है.
सबके गुरु जॉब्स
सिर्फ एप्पल ही नहीं, बल्कि तकनीकी दुनिया में सभी लोग स्टीव जॉब्स को किसी गुरु के रूप में देखते हैं, लगता है कि जिनके हाथ में जादू की छड़ी है. एप्पल ने न सिर्फ दुनिया के सबसे शानदार कंप्यूटर बनाए हैं, बल्कि हाल ही में उसे दुनिया का सबसे बड़ा ब्रांड भी घोषित किया गया है और यह करिश्मा सिर्फ जॉब्स की मेहनत का नतीजा है. उनके बाद कमान संभाल रहे कुक के सामने एक चमत्कारी शख्सियत की छाया से बाहर निकलने की चुनौती होगी ही, इस बात का भी दबाव होगा कि एप्पल जिस जगह पहुंच चुका है, उसे वहां बनाए रखा जाए.
सिर्फ एक सेमेस्टर के बाद कॉ़लेज छोड़ देने वाले स्टीव जॉब्स को अद्भुत प्रतिभा वाला छात्र माना जाता था, जिसने 1970 के दशक में पढ़ाई करने की जगह आध्यात्म की तलाश में भारत का दौरान करने का फैसला किया. जब वह अमेरिका लौटे तो सिर मुंडवा चुके थे और बौद्ध बन चुके थे. हालांकि जॉब्स के पिता सीरिया से आए एक मुस्लिम थे लेकिन उनकी परवरिश अमेरिका के पॉल और क्लारा जॉब्स ने की.
आना और जाना
1976 में कुछ साथियों के साथ मिल कर उन्होंने एप्पल कंप्यूटर की नींव रखी. कंपनी तो चमक उठी लेकिन बाद में स्टीव जॉब्स को किनारे कर दिया गया. 1985 में उन्हें कंपनी छोड़ देनी पड़ी. बीटल्स को बेइम्तिहां प्यार करने वाले जॉब्स के अगले 12 साल बहुत कामयाब नहीं रहे. लेकिन 1997 में एप्पल में उनकी वापसी ने उन्हें हीरो बना दिया. कंपनी ने माइक्रोसॉफ्ट से टक्कर लेने के लिए जॉब्स का सहारा लिया और उसे खूब कामयाबी मिली. जॉब्स की दूसरी पारी सफल रही. मैकबुक और मैक पीसी के तौर पर एप्पल ने कुछ चुनिंदा प्रोडक्ट बाजार में उतारे.
लेकिन जॉब्स की असली कामयाबी 10 साल बाद 2007 में तब मिली, जब एप्पल ने आईफोन बना दिया. मोबाइल फोन की दुनिया में यह एक क्रांति बन गया और सिर्फ बातचीत करने वाला फोन इंटरनेट और फोन का मिलाजुला रूप स्मार्ट फोन बन गया. इसके बाद से सभी कंपनियों ने इसी तर्ज पर फोन बनाना शुरू किया लेकिन आईफोन जैसी कामयाबी किसी को नहीं मिली. इस कामयाबी ने एप्पल और स्टीव जॉब्स का कद और ऊंचा कर दिया.
बिजनेस का बाजीगर
इस बीच जॉब्स तकनीक की दुनिया के सबसे बड़े बाजीगर बन गए. लेकिन उनकी सेहत ने उनका साथ नहीं दिया और वह कैंसर और लीवर की बीमारी से पीड़ित हो गए. शायद इन बीमारियों का भी असर रहा कि वह एक जिद्दी और निरंकुश लीडर बन गए, जो अपने एजेंडे को हर हाल में पूरा करना चाहता है. जॉब्स ने खराब स्वास्थ्य के बाद भी काम जारी रखा और बाजार के लिए मिसाल बने रहे. इस दौरान वह सालाना सिर्फ एक डॉलर की सैलरी लेते रहे. अलबत्ता उनके निजी जेट विमान और दूसरे खर्चे भी कंपनी ही उठाती है.
स्टीव जॉब्स के इस्तीफे के बाद एप्पल की रणनीति देखने लायक होगी. इसकी पहली परीक्षा आईफोन 5 के लांच के रूप में होगी. लंबे वक्त से इसकी प्रतीक्षा हो रही है. अब देखना है कि एप्पल इसे फौरन नए सीईओ टिम कुक के नेतृत्व में दुनिया का सामने लाती है या फिर बाजार को झटके से उबरने के लिए थोड़ा वक्त देती है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः आभा एम