तंदरुस्ती के लिए अच्छा है शुक्रिया कहना
२३ नवम्बर २०११कृतज्ञता को सकारात्मक जज्बा माना जाता रहा है लेकिन दशकों से मनोवैज्ञानिकों ने शुक्रिया कहने के विज्ञान पर शायद ही कोई काम किया है. पिछले कई साल से हो रहे शोध में उन्हें पता चल रहा है कि शुक्रिया कहना मानवता की सबसे तगड़ी भावना है. यह आपको खुश करता है और भावनात्मक रिसेट बटन की तरह जीवन के प्रति आपका रवैया बदल सकता है. खासकर आजकल जैसे कठोर समय में.
इस बात का सबूत खोजने के अलावा कि कृतज्ञ होना लोगों की मदद करता है, मनोवैज्ञानिक कृतज्ञता और उसे दिखाने के सबसे बेहतर तरीके के बारे में और उसके पीछे दिमाग में होने वाले रासायनिक प्रक्रिया को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं.
मायामी विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर माइकल मैककलफ ने उन लोगों का सर्वे किया है जिंहे नियमित रूप से शुक्रिया अदा करने को कहा जाता है. वे कहते हैं, "यदि आप ठहर कर अपने आशीर्वाद को गिनते हैं तो आप अपने भावनात्मक सिस्टम का अपहरण कर रहे होते हैं." अपहरण से उनका मतलब भावनाओं को अच्छी जगह में ले जाने से है.
मैककलफ और दूसरों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि शुक्रिया कहना ऐसा जज्बा है जो आत्मनिर्भर होता है, बहुत कुछ जीत की भावना जैसा. इसे दुष्चक्र कहा जा सकता है लेकिन यह दुष्चक्र नहीं है. उनका कहना है कि मनोवैज्ञानिक कृतज्ञता की ताकत को नजरअंदाज करते रहे हैं. "यह लोगों को और खुश करता है, यह एक असाधारण भावना होती है."
मैककलफ के अनुसार कृतज्ञता के इतनी अच्छी तरह से काम करने की एक वजह यह है कि यह लोगों को दूसरों से जोड़ती है. इसीलिए यह जरूरी है कि यदि आप किसी का शुक्रिया अदा करें तो तहेदिल से करें, न कि तोहफे के लिए बस सामान्य सा शुक्रिया का नोट. शिकागो की मनोवैज्ञानिक और लेखिका मरियम त्रोइयानी कहती हैं कि उनके पास अब धीरे धीरे कृतज्ञता वाले ग्राहक आने लगे हैं. वे कहती हैं, "कृतज्ञता आपका रवैया और जिंदगी के प्रति नजरिया बदल देता है."
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान प्रोफेसर रोबर्ट एमन्स कहते हैं कि कृतज्ञ लोग "अधिक चुस्त, जीवंत, दिलचस्पी लेने वाले और जोशीले होते हैं." उन्होंने कृतज्ञता के विज्ञान पर दो किताबें लिखी हैं. उनका कहना है, "कृतज्ञता तनाव को रोकने वाले बफर का काम भी करती है. कृतज्ञ लोगों को ईर्ष्या, क्रोध, आक्रोश, रोष और दूसरी तनाव पैदा करने वाली अप्रिय भावनाओं का कम अनुभव होता है."
रिपोर्ट: एपी/महेश झा
संपादन: एन रंजन