तहरीर चौक और मिस्र की क्रांति
११ फ़रवरी २०११यह हर साल आने वाली ईद नहीं है. 30 साल बाद आई ईद है. गुस्से, नाराजगी और उलझन के बीच काहिरा के तहरीर चौक पर जमा लोग उस वक्त शांत हो गए, जब उप राष्ट्रपति उमर सुलेमान कुछ क्षणों के लिए टेलीविजन पर आए. इधर सुलेमान ने राष्ट्रपति मुबारक के इस्तीफे का एलान किया, उधर लाखों लोगों की ईद हुई.
पखवाड़े भर से बीच सड़क पर तंबू लगा कर सो रहे और बाहर का खाना खा खा कर परेशान हो चुके लोगों ने नारा लगाया, "अल्लाहो अकबर" (अल्लाह सबसे बड़ा है.) पास खड़ी एक बुजुर्ग औरत का गला भर आया. वह घुटने के बल बैठ गई. हलक से सिर्फ इतनी आवाज निकली, "मिस्र आजाद हो गया."
गुस्से और नाराजगी में भरे लोगों का मूड अचानक बदल गया. उन्हें यकीन हो गया कि अब एक रात और खुले आसमान के नीचे नहीं बितानी होगी. वे अचानक नाचने लगे. गाने लगे. कुछ लोगों के पास तो मन बहलाने के लिए पहले से संगीत के सामान थे. उन्होंने इसका बखूबी फायदा उठाया. कहीं कहीं से नगाड़े बजने की भी आवाज आने लगी.
तहरीर चौक से कुछ दूर काहिरा की सड़कों पर गाड़ियां निकल आईं. हाथ में मिस्र का तिरंगा झंडा लिए लोगों ने कारों के दरवाजे खोल दिए और लगातार हॉर्न बजाने लगे. कुछ के हाथों में तो खूब शोर मचाने वाले बाजे भी दिखे. शुक्रवार की शाम काहिरा में सब कुछ बजा.
लोगों ने मिस्र की सेना को खास शुक्रिया अदा करने में कोई कोताही नहीं बरती. उन्हें पता है कि सेना का सहयोग न मिलता तो उन्हें कामयाबी भी नहीं मिल सकती थी. वहां जमा 10 लाख प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, "सेना और जवान. दोनों हैं साथ साथ."
मिस्र में बदलाव के साथ ही राजधानी का काहिरा चौक भी दुनिया के उन कुछ गिने चुने चौकों में शामिल हो गया, जिसने क्रांति लाई है. इससे पहले चीन की राजधानी बीजिंग के थेनामन स्क्वायर और ईरान की राजधानी तेहरान के आजादी चौक का नाम लिया जाता है. तेहरान चौक की क्रांति कामयाब रही तो थेनामन में क्रांति को दबा दिया गया.
तहरीर चौक के लोग अपनी अपनी तरह से खुशी बयान कर रहे थे. एक ने कहा, "हमने सत्ता उखाड़ फेंकी. हमने सत्ता उखाड़ फेंकी." हर तरफ अल्लाहो अकबर के नारे लगते रहे. मिस्र में अरबी भाषा बोली जाती है और तहरीर का मतलब क्रांति होता है.
दो हफ्ते से ज्यादा तहरीर चौक पर डटे गायक हनी शोबी ने कहा, "उसे हटाने में मैंने भी रोल अदा किया है. मैं यहां 17 दिन तक रहा. अब मिस्र का भविष्य लोगों के हाथ में है."
17 साल के अबु बकर को तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि वह अपनी जिंदगी में किसी और शासक को देखने जा रहा है. उसने कहा, "हमें यकीन नहीं हो रहा है. इसके साथ ही सारी नाइंसाफी खत्म हो गई."
वहां मौजूद एक वकील ने कहा कि अब मिस्र के लोगों को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है. वहां सेना के टैंक भी सुरक्षा के लिए मौजूद थे. लेकिन हुस्नी मुबारक के इस्तीफे के बाद लोग उन टैंकों पर भी चढ़ गए और नारे लगाने लगे. हर तरफ ईद मनती रही.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः ए कुमार