दक्षिण एशिया के लोगों को मोटापे से ज्यादा खतरा
२९ जुलाई २०११इस रिसर्च के तहत दक्षिण एशिया में रहने वाले लोगों की कॉकेशियाई नस्ल के लोगों से तुलना की गई. कॉकेशियाई नस्ल के लोग अधिकतर यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में होते हैं, लेकिन पश्चिम, मध्य और दक्षिण एशिया में भी इस नस्ल के कुछ लोग हैं. रिसर्च के अनुसार कोकेशियाई लोगों में चर्बी, त्वचा के नीचे एक चादर बना लेती है, लेकिन दक्षिण एशियाई लोगों में ऐसा नहीं होता. उनमें चर्बी शरीर के अंगों तक पहुंच जाती है और उन्हें नुकसान पहुंचाती है. इसलिए दक्षिण एशियाई लोगों को बढ़ते वजन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
चर्बी नुकसानदायक
इस रिसर्च की मुख्य शोधकर्ता सोनिया आनंद के अनुसार फर्क इस बात से पड़ता है कि शरीर में वसा इकट्ठा करने की जगह कितनी है और यह कहां इकट्ठा होती है, "दक्षिण एशिया के लोगों में त्वचा के नीचे चर्बी इकट्ठा करने की जगह बहुत ही कम है. इसलिए शरीर में मौजूद अत्याधिक चर्बी पेट और लीवर की ओर जाने लगती है और उन पर बुरा असर डालती है." जब चर्बी इन अंगों से जा कर जुड़ जाती है तो शरीर में ग्लूकोस और वसा की मात्रा बढ़ने लगती है. इस से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.
कुछ के लिए खतरा
इसका मतलब यह हुआ कि कोकेशियाई लोगों के लिए जो बीएमआई(बॉडी मास इंडेक्स) स्वस्थ माना जाता है वह दक्षिण एशिया के लोगों के लिए बीमारियों का संकेत हो सकता है. बीएमआई इंसान के वजन और कद का अनुपात होता है. 18 से 23 के बीच बीएमआई को स्वस्थ माना जाता है. लेकिन रिसर्च के अनुसार हर नस्ल के लोगों के लिए यह अलग होना चाहिए. कैनेडियाई ओबेसिटी नेटवर्क के अध्यक्ष आर्य शर्मा ने इस बारे में कहा, "इस रिसर्च से पता चलता है कि कम बीएमआई होने के बाद भी दक्षिण एशिया के लोगों को मोटापे से होने वाली बीमारियां क्यों होती हैं. इसका मतलब यह भी है कि कम बीएमआई वाले लोगों को भी मधुमेह और हृदय रोग का बड़ा खतरा है."
कनाडा में किए गए इस रिसर्च में 108 लोगों के आंकड़े इकट्ठा किए गए. ये वो लोग हैं जो भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश से आ कर यहां बस गए हैं. इनकी तुलना उन लोगों से की गई जिनकी जडें यूरोप में हैं. इन लोगों के कोलेस्टेरॉल और ब्लड शुगर की मात्रा जांची गई. शायद यह रिसर्च इस बात का भी जवाब देती है कि यूरोप के लोग हर रोज मांस खा कर भी उसे आराम से पचा पाते हैं, जबकि भारतीयों को ऐसा करने पर स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आने लगती हैं.
रिपोर्ट: ए एफ पी/ ईशा भाटिया
संपादन:आभा मोंढे