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"देश जितना गरीब, आवारा कुत्ते उतने ज्यादा"

३ अगस्त २०११

बहुत से गरीब देशों में आवारा कुत्तों से कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. कहीं उनसे खतरनाक बीमारियां फैलती हैं तो कहीं वे लोगों पर हमला करते हैं. यूरोप की सबसे बड़ी मानवाधिकार अदालत ने इस ओर ध्यान दिया पर हल नहीं सुझाया.

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मॉस्को की सड़क पर कुछ आवारा कुत्तेतस्वीर: RIA Novosti

रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में अक्तूबर 2000 में गियोर्गेता स्तोईचेस्कू अपने घर के सामने खड़ी थीं कि सात आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया. उन्होंने 71 साल की इस महिला को काट खाया और जमीन पर गिरा दिया. 2007 में उनकी मौत हो गई और वह हमले की चोटों से कभी पूरी तरह नहीं उबर पाईं. हमले के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया. लेकिन इस हफ्ते मानवाधिकारों से जुड़ी यूरोपीय अदालत ने फैसला दिया कि रोमानिया की सरकार ने आवारा कुत्तों की समस्या पर ध्यान न देकर स्तोईचेस्कू के मानवाधिकारों का हनन किया.

सभी कम विकसित देशों में इस तरह की समस्या पाई जाती है. पशुओं के लिए काम करने वाले संगठन 600मिलियन.ऑर्ग का अनुमान है कि दुनिया भर में 60 करोड़ से ज्यादा आवारा कुत्ते हैं जिनमें से ज्यादातर गरीब देशों में हैं.

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एक सरकारी इमारत के बाहर बैठा कुत्ता बताता है कि कई सरकारें उनसे निटपने में कितनी लाचार हैंतस्वीर: George Papakotchev

वैश्विक समस्या

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग की प्रमुख सारा कान ने डॉयचे वेले से कहा, "खुले घूम रहे कुत्तों की समस्या वाकई एक वैश्विक समस्या है. उनके काटने और हमले से बहुत गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं, जिनसे सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं."

कुत्तों के काटने से फैलने वाली रेबीज बीमारी से दुनिया की आधी आबादी को खतरा है और इससे हर साल 55,000 लोग मरते हैं. इनमें आधे बच्चे होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इनमें से 99 प्रतिशत लोग विकासशील देशों के हैं. बहुत से मामले तो सामने ही नहीं आ पाते.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में जानवरों से होने वाली बीमारियों पर काम करने वाली टीम के प्रमुख फ्रांकोइस मेसलिन का कहना है कि सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों से काटे जाने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस तरह की समस्या ज्यादातर पश्चिमी देशों में नहीं दिखती. लेकिन अफ्रीका, एशिया और कुछ हद तक लातिन अमेरिका में ऐसे खूब मामले मिलते हैं." मेसलिन का कहना है कि रेबीज के अलावा कुत्तों से परजीवी, बैक्टीरियल और वाइरल बीमारियां हो सकती हैं.

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पारंपरिक तौर पर कुत्ते को इंसान का सबसे वफादार साथी माना जाता है

मेसलिन के मुताबिक भारत में एक अरब से ज्यादा की आबादी में से दो प्रतिशत लोगों को हर साल कुत्ते काटते हैं. इसी अनुमान के मुताबिक बुखारेस्ट में आबादी के एक प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने बताया कि उन्हें कुत्ते ने काटा है. रोमानिया की सरकार बरसों से इस समस्या से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन यूरोपीय मानवाधिकार अदालत के मुताबिक वह नाकाम रही है.

कुत्तों का सफाया नाकाम

रोमानिया में मीडिया में अकसर आवारा कुत्तों के काटे जाने की खबरें आती हैं. जवाबी कार्रवाई के तौर पर सरकार ने कुत्तों को मारने का कार्यक्रम लागू किया जिससे 2001 से 2003 के बीच 80,000 कुत्तों का सफाया किया गया. लेकिन 2005 तक बुखारेस्ट में आवारा कुत्तों की तादाद फिर बढ़ गई. शहर के अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल वहां 20,000 से 40,000 आवारा कुत्ते हैं. मेसलिन इक्वाडोर और चीन जैसे कई और देशों में भी आवारा कुत्तों को मारने के अभियानों का हवाला देते हैं जिनमें 1970 और 1980 के दशक में 10 साल के दौरान लगभग दो करोड़ कुत्तों को मारा गया.

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गुवाहाटी में एक बार जब भारत और न्यूजीलैंड के बीच मैच के दौरान स्टेडियम में कुत्ता आ गया तो दर्शक क्या खिलाड़ी भी हैरान हो गएतस्वीर: AP

वह कहते हैं कि चीन में रेबीज खत्म करने के लिए कुत्तों को साफ किया गया लेकिन यह बीमारी 1990 के दशक में वहां फिर लौट आई. कुत्तों को मारने में नैतिकता का सवाल भी आड़े आता है. कान का कहना है, "कुत्तों को मानवीय तरीके से मृत्यु दी जा सकती है लेकिन ऐसा होता नहीं है." उनका मानना है कि आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे तेजी से प्रजनन करते हैं.

इसीलिए ओआईई जैसे संगठन कुत्तों के टीकाकरण और नसबंदी जैसे दीर्घकालीन कार्यक्रमों पर जोर देते हैं. लेकिन इस तरह के कार्यक्रमों को लागू करने विकासशील देशों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

कौन है जिम्मेदार

ओआईई ने पिछले साल एक अध्ययन प्रकाशित किया, जिसमें देश के विकास को सड़कों पर घूमने वाली कुत्तों की संख्या से जोड़ कर देखा गया. इसके मुताबिक कोई देश जितना गरीब होगा, वहां आवारा कुत्तों की समस्या उतनी ज्यादा होगी. कान का कहना है, "बहुत से गरीब देश युद्ध, अकाल और शरणार्थियों की समस्या से निपट रहे हैं. आवारा कुत्ते उनकी प्राथमिकता में नहीं हैं."

रोमानिया की सरकार ने अदालती मामले में दलील दी कि इस समस्या के जटिल कारण हैं और इसका समाधान अकेले सरकार नहीं खोज सकती. एक जज ने इस बात पर अपनी सहमति जताई और कहा कि अदालत को सार्वजनिक सेवाओं के लिए संसाधनों के आवंटन की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को तय नहीं करना चाहिए.

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गरीब देशों में आवारा कुत्ते सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं आतेतस्वीर: Thye Aun Ngo/Fotolia

कान के मुताबित आवारा कुत्तों की वजह से सामाजिक और आर्थिक, दोनों ही स्तरों पर कीमत चुकानी पड़ती है. रेबीज जैसी बीमारियों के इलाज के मुकाबले रोकथाम ज्यादा सस्ती है. रोमानिया में आवारा कुत्तों के काटे जाने के इलाज पर हर साल चार लाख यूरो का खर्च होता है.

एक पशु बचाव संगठन के संस्थापक विक्टर लारखिल का कहना है कि यह संसाधनों से ज्यादा राजनीतिक इच्छाशक्ति का मामला है. उनका संगठन आवारा कुत्तों के लिए मालिक तलाशता है. आवारा कुत्तों पर नियंत्रण रखने के कार्यक्रमों के तहत उन्हें पकड़ा जाता है, उनकी नसबंदी की जाती है और फिर सड़कों पर छोड़ दिया जाता है. पांच से आठ साल तक अवधि वाली इस योजना को भारत के जयपुर शहर में अपनाया गया. लेकिन लारखिल बताते हैं कि राजनेताओं को वोटों की खातिर तुरतफुरत समाधान चाहिए था. उनका दावा है कि इस काम के लिए दी गई राशि को समझदारी से खर्च नहीं किया गया और जवाबदेही की भी कमी थी.

कुत्तों का अलग रुझान

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बुलगारिया की राजधानी सोफिया में ट्रैम की पटरी के बीचोंबीच बैठा यह कुत्ता प्रशासन की लाचारी को दिखाता हैतस्वीर: George Papakotchev

लारखिल मानते हैं कि अधिकतर आवारा कुत्ते नुकसानदेह नहीं होते. वह समस्या के सांस्कृतिक कारणों की तरफ ध्यान दिलाते हैं. उनके मुताबिक, "पश्चिम यूरोप में कुत्ते और बिल्ली परिवार का हिस्सा समझे जाते हैं." तुर्की में वह जितने कुत्तों को बचाते हैं, वे आखिरकार फ्रांस, हॉलैंड या जर्मनी पहुंच जाते हैं.

लारखिल कहते हैं, "पूर्व में कुत्ते या तो औजार के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं या फिर वे अपने जिंदगी के खुद रखवाले होते हैं." पूर्वी समाजों में बहुत से लोग कुत्तों को परिवार में रखने के बारे में नहीं सोचते, भले ही कइयों को उनसे लगाव हो. वह कहते हैं कि ऐसा ही रवैया सरकारों में भी दिखता है.

रिपोर्टः सोनिया अंगेलिका दीएन/ए कुमार

संपादनः ए जमाल

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