दोस्ती की मुश्किल तलाश में हू और ओबामा
१९ जनवरी २०११मानवाधिकार या तिब्बत के सवाल पर चीन की आलोचना कोई नई बात नहीं है. लेकिन चीनी राष्ट्रपति की अमेरिका यात्रा एक ऐसे समय में हो रही है, जबकि दोनों देशों के बीच आर्थिक सवालों पर पेचीदे मतभेद बने हुए हैं और साथ ही, कई राजनीतिक व आर्थिक सवालों पर अमेरिका को चीन की सदाशयता की जरूरत है.
कल शाम को राष्ट्रपति बराक ओबामा और हू जिंताओ ने व्हाइट हाउस में एक निजी डिनर के दौरान पहली बातचीत की. आज दोनों की प्रेस कांफ्रेंस होने वाली है. इस बीच चीनी टेलिविजन पर एक साक्षात्कार में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलैरी क्लिंटन ने कहा है कि दुनिया की नंबर एक और नंबर दो आर्थिक ताकत होने के नाते दोनों देशों की एक विशेष जिम्मेदारी है. उत्तर कोरिया और ईरान के परमाणु कार्यक्रमों से विश्व में स्थायित्व के लिए पैदा हो रहे खतरे के मद्देनजर उनकी एक विशेष जिम्मेदारी है. यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है जब तय होगा कि दोनों देशों के बीच सहयोग किस तरह आगे बढ़ता है. वैसे उत्तर कोरिया पर दबाव बढ़ाने के मामले में चीन कोई खास उत्साह नहीं दिखा रहा है.
वैसे आर्थिक सवाल और उन पर दोनों देशों के बीच मतभेद कहीं अधिक जटिल हैं और इस बीच उनका आयाम राजनीतिक होता जा रहा है. अमेरिका की मांग है कि चीन अपनी मुद्रा युआन की कीमत बढ़ाए, ताकि उसके उत्पादों की कीमत अमेरिका में बढ़े और द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका के 270 अरब डॉलर के विशाल घाटे को किसी हद तक पाटा जा सके. ख़ासकर अमेरिकी कांग्रेस में ऐसी मांग तेज हो गई है.
दूसरी ओर, चीन भी अमेरिका की आर्थिक व सुरक्षा नीति से खुश नहीं है. खासकर ताइवान के लिए अमेरिकी हथियारों की बिक्री से वह बेहद नाराज है. माना जा रहा है कि हू-ओबामा शिखर भेंट में चीन की ओर से इसी सवाल को सबसे अधिक महत्व दिया जाएगा.
मानव अधिकार और तिब्बत के सवाल अमेरिका की ओर से मीडिया के सामने नाप-तौलकर उठाए जाएंगे, लेकिन द्विपक्षीय संबंधों में उनकी शायद ही कोई खास भूमिका होगी. प्रदर्शन जरूर होंगे, जैसा कि वाशिंगटन में देखने को मिला. लेकिन चीनी नेता भी अब धीरे-धीरे इनके आदी होते जा रहे हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उ भट्टाचार्य
संपादन: एन रंजन