चीन में मुनाफे, कूटनीति का हथियार बना सोना
१८ जनवरी २०११2010 में चीन में सोने का उत्पादन 330 टन रहा. दक्षिण अफ्रीका के बाद चीन दुनिया में सोने का सबसे बड़ा उत्पादक बना. लेकिन चीन में अब सोने की घरेलू मांग इतनी बढ़ गई है कि वह सोना आयात कर रहा है. चीन में 2002 से ही सोने की कारोबार शुरू हुआ और नौ साल बाद चौंकाने वाले नतीजे सामने आ रहे है. बाजार विश्लेषक चेन यिकुन कहते हैं, ''शुरुआत में यह कारोबार सुस्त था लेकिन अब शंघाई का गोल्ड एक्सचेंज दुनिया में सबसे बड़ा है.''
कारोबार के इतर आम चीनी नागरिक भी सोने की खरीदारी में बड़ी दिलचस्पी ले रहे हैं. आर्थिक मंदी और मुद्रा के गिरते उठते रेट के बीच लोग सोने की अहमितय महसूस करने लगे हैं. पिछले दस साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम कम से कम चार गुना बढ़े हैं. सोने में पैसा लगाने वालों को सोने के अलावा इतना बढ़िया और सुरक्षित रिटर्न और कहीं नहीं मिला. जमीन या मकान खरीदना सोना खरीदने की तुलना में ज्यादा महंगा है. सोने में चमक की एक वजह यह भी है.
लोग जितना ज्यादा सोना खरीदेंगे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें उतनी ही ऊपर जाएंगी. जाहिर है 20 या 30 साल बाद उस सोने को बेचने पर मुनाफा भी बढ़िया होगा. कच्चे तेल की कीमतों में पिछले 10 साल में 13.5 फीसदी बढोत्तरी हुई है. सोने की कीमत दस साल में सिर्फ चार फीसदी उपर गई है. इस लिहाज से चीनी विश्लेषक सोने को सस्ता और अच्छे निवेश का रास्ता मानते हैं.
इस बात की जानकारी नहीं है कि चीन कितना सोना आयात करता है. लेकिन 2010 के पहले नौ महीनों में हॉन्गकॉन्ग के रास्ते 88 टन सोना चीन पहुंचा. इस सोने का सबसे बड़ा खरीदार चीन का केंद्रीय बैंक है. अमेरिका के साथ चीन हर मोर्चे पर प्रतिस्पर्द्धा कर रहा है. सरकारी बैंक को मुद्रा युद्ध की स्थिति में सोने के भंडार का अहसास है.
चेन यिकुन कहते हैं, ''मई 2009 में सेंट्रल बैंक ने बताया कि उसका स्वर्ण मुद्रा भंडार 600 टन से बढ़कर 1045 टन पहुंच गया है. इसके बाद यह और भी ज्यादा बढ़ चुका होगा. चीन सरकार को चिंता है कि अमेरिकी सरकार को दिया गया पैसा वह कभी नहीं देख सकेगी. यही वजह है कि सरकार स्वर्ण भंडार को इतना महत्व दे रही है.'' वैसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में सभी देश युद्ध के दौरान व्यापार करने या दूसरी मुद्रा के अपार प्रभाव से बचने के लिए स्वर्ण मुद्रा भंडार का सहारा लेते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: महेश झा