नए तिब्बती प्रधानमंत्री ने कमान संभाली
८ अगस्त २०११हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में शपथ लेने वाले सांग्ये ने कहा कि उनकी निर्वासित सरकार अहिंसक तरीके से चीन से तिब्बत को 'सच्ची स्वायत्तता' दिलाने के लिए काम करती रहेगी. निर्वासित तिब्बतियों की सरकार धर्मशाला से ही काम करती है. तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद 1959 में दलाई लामा और उनके हजारों अनुयायी यहां आकर बस गए.
कभी तिब्बत न जाने वाले सांग्ये ने कहा, "तिब्बत में कोई समाजवाद नहीं है. तिब्बत वैसा स्वर्ग नहीं है जैसा हो सकता था. यह त्रासदी है. चीन को यह बात जाननी चाहिए." सांग्ये अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ हैं और हार्वर्ड में पढ़े हैं. उनका कहना है कि तिब्बतियों का संघर्ष चीन के खिलाफ नहीं है बल्कि चीन सरकार की कट्टरपंथी नीतियों के खिलाफ है.
बातचीत को तैयार
सांग्ये ने कहा कि निर्वासित सरकार किसी समय और कहीं भी चीन सरकार के साथ बात करने को तैयार है. भारत में एक शरणार्थी बस्ती में पैदा होने वाले सांग्ये ने सभी तिब्बतियों और खासकर युवाओं से अपील की कि वे आलोचना और निराशावादी रवैये से दूर रहते हुए एकजुट हो कर काम करें.
सांग्ये ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह अगले 50 साल तक तिब्बत के आंदोलन को चलाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि निर्वासित सरकार के हालिया लोकतांत्रिक चुनाव चीन सरकार के लिए संदेश हैं कि तिब्बती आंदोलन किसी तरह कमजोर नहीं हो रहा है. सांग्ये ने निर्वासन में और चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में रहने वाले लोगों को एकजुट करने का संकल्प लेते हुए कहा, "हमारा समय आएगा. अगर हम एकजुट हैं तो नाकाम नहीं होंगे."
चीन सरकार का कहना है कि वह निर्वासित नेता के साथ कोई बातचीत नहीं करेगा. निर्वासन में लगभग एक लाख 40 हजार तिब्बती रहते हैं. इनमें से एक लाख भारत के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं. 60 लाख तिब्बती तिब्बत में रहते हैं.
अपने भाषण में सांग्ये ने भारतीय लोगों और सरकार के प्रति आभार जताया. उन्होंने भारत सरकार से अपील की कि भारत और चीन के बीच तिब्बत को अहम मुद्दा माना जाए.
बड़ी भूमिका
सांग्ये तिब्बतियों की नई पीढ़ी से संबंध रखते हैं. मार्च में वह निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री चुने गए. उनकी भूमिका को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि दलाई लामा राजनीतिक जिम्मेदारियों से अलग हो चुके हैं. सांग्ये को निर्वासित सरकार के कामकाज को धार्मिक रुझान से हटा कर लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करना है. अभी तक दलाई लामा तिब्बतियों के लिए आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर नेतृत्व दे रहे थे.
1968 में दार्जिलिंग में पैदा हुए सांग्ये को बड़ी जिम्मेदारी निभानी है. वह अपने शुरुआती दिनों में तिब्बत की आजादी के समर्थक रहे हैं. लेकिन वक्त के साथ वह चीनी शासन के तहत सार्थक स्वायत्तता की दलाई लामा की मांग के नजदीक आते गए.
सांग्ये का कहना है कि प्रधानमंत्री के नाते उनके सामने दो मुख्य लक्ष्य हैं. पहला तिब्बत की राजधानी ल्हासा में दलाई लामा की वापसी का रास्ता साफ करना और दूसरा तिब्बती लोगों की पहचान और गरिमा की बहाली और संरक्षण. वह महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला का उदाहरण देते कहते हैं कि अहिसंक आंदोलन बरकरार रह सकता है और जब तक विश्वास है तो जीत भी मिलेगी.
गाय के कर्जदार
सांग्ये भारत को अपना दूसरा घर मानते हैं. वह अकसर अपने इंटरव्यू में खुद को उस गाय का कर्जदार मानते हैं जिसे बेचकर उनकी शिक्षा का प्रबंध किया गया और उस नाइट स्कूल का जिक्र करना भी वह नहीं भूलते जहां उन्हें दस साल तक चावल और दाल मिलता था.
तिब्बती शरणार्थी अधिकारियों की मदद से सांग्ये ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की. उसके बाद उन्हें 1995 में हार्वर्ड में पढ़ने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. वहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानून में डॉक्टरेट की और फिर रिसर्च फेलो बन गए.
उनकी डॉक्टरेट थीसिस का विषय था, विपत्ति में लोकतंत्र: क्या निर्वासित व्यवस्था कोई उपाय है? तिब्बत की निर्वासित सरकार की केस स्टडी. हार्वर्ड में 11 साल गुजारने के बाद सांग्ये मई 2001 में धर्मशाला चले गए जहां तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय है.
परिवार से दूर
सांग्ये की पत्नी और बेटी अमेरिका में ही रहेंगी. एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में सांग्ये ने माना कि परिवार से दूर रहना आसान नहीं है लेकिन अपनी नई भूमिका के लिए उन्हें कुछ कुरबानियां देनी होंगी. नए प्रधानमंत्री को सार्वजनिक कार्यालय का बहुत कम अनुभव है लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय कानून के जानकार हैं और व्यापक राजनीतिक और कूटनीतिक भूमिका के लिए पूरी तरह तैयार हैं. चीनी विद्वानों से भी उनका काफी संपर्क रहा है.
निर्वासित सरकार को मान्यता नहीं है, लेकिन वह ही निर्वासित तिब्बतियों का ख्याल रखती है. वह तिब्बती बौद्ध धर्म और संस्कृति को संरक्षित रखने, मानवाधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने और दलाई लामा के शब्दों में तिब्बत की 'सच्ची स्वायत्तता' के लिए काम करती है.
रिपोर्टः डीपीए/ए कुमार
संपादनः महेश झा