नेपाली महिलाओं को दुनिया का सलाम
७ अप्रैल २०११हिमालय की गोद में बसा नेपाल का छोटा सा शहर पोखरा. शहर में अस्पताल है, स्कूल है, इंटरनेट की सुविधा भी है. लेकिन महिलाओं को आज भी यहां रसोई और घर से जोड़कर देखा जाता है. शहर से बाहर निकलते ही वे सिर पर घास ढोती या खेती करती या फिर गाय बकरियां चराती हुईं दिखती हैं.
लेकिन इस समाज के इस ताने बाने में अब हलचल है. लक्की, डिक्की और निक्की, ये तीन बहनें पोखरा और नेपाल की महिलाओं में नए किस्म का भरोसा भर रही हैं. 1990 के दशक के मध्य में तीनों बहनों ने अपनी ट्रैकिंग एजेंसी खोलने का फैसला किया. वह आए दिन महिला पर्यटकों की आप बीती सुनती थीं. कई महिलाओं से पुरुष ट्रैकिंग गाइडों ने शराब पीकर बदतमीजी की. इन कहानियों ने लक्की, डिक्की और निक्की को अपनी ट्रैकिंग एजेंसी खोलने का विचार दिया. यह सोच आई और फिर गई नहीं. ट्रैकिंग एजेंसी खुली. शुरुआत में स्थानीय लोगों ने तीनों बहनों का बेहद खराब ढंग से मजाक उड़ाया. कहा कि ट्रैकिंग की आड़ में वे देह व्यापार कर रही हैं.
मुश्किलें कम नहीं
मुश्किलों के बारे में डिक्की कहती हैं, ''कई बार हमें डाइनिंग रूम में पुरुष गाइडों वाले कमरे में ही सोना पड़ता था. वह एक चुनौती की तरह होता था क्योंकि कई बार वे नशे में धुत्त रहते थे और कई तरह की बातें कहते थे. ऐसी स्थिति में काफी डर लगता था.''
परंपरावादी नेपाल में महिलाओं के बिजनस चलाने को सामान्य बात नहीं माना जाता है. डिक्की कहती हैं कि अजनबी पर्यटकों के साथ कई हफ्तों तक हिमालय के निर्जन इलाकों में घूमने को और भी बुरा समझा जाता है. पैदल यात्रा के दौरान अब भी कई बार स्थानीय लोग उनका तिरस्कार करते हैं.
डिक्की कहती हैं, ''जब हम नमस्ते कहते हैं तो वे अनसुना कर देते हैं. जब हम चाय की दुकान पर जाते हैं तो लोग हंसकर हमारा मजाक उड़ाते हैं, उन्हें यह बात हजम ही नहीं होती कि एक महिला गाइड हो सकती है. वे सोचते हैं कि यह काम सिर्फ पुरुष कर सकते हैं. हमारे समाज में पुरुष जहां चाहें वहां जा सकते हैं. लोग चाहते हैं कि महिलाएं घर से बाहर न निकलें.''
कई पुरस्कार
स्थानीय लोग भले ही कुछ भी कहें या सोचें. दुनिया तीनों बहनों को कर्मठ मानती है और अच्छी नजरों से देखती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रैवल एजेंसियां 3 सिस्टर्स को शानदार बताती हैं. भरोसेमंद पर्यटन के लिए तीनों बहनों को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं. चर्चाएं होने के बाद काम भी बढ़ा है और अब तीन बहनें अन्य महिलाओं को भी अपनी ट्रैकिंग एजेंसी से जोड़ रही हैं.
2008 से थ्री सिस्टर्स के लिए काम कर रही चित्रा कहती हैं, ''मेरा भाई ट्रैकिंग पर जाया करता था. इसका शौक मुझे भी था. मेरी एक दोस्त ने बताया कि थ्री सिस्टर्स से जुड़कर मैं भी ऐसा कर सकती हूं. इसलिए मैं इससे जुड़ गई.''
बदलाव की बयार
सामाजिक ढांचे की वजह से अब भी बहुत ज्यादा महिलाएं इससे जुड़ नहीं पा रही हैं. कुछ महिलाएं नहीं चाहती हैं कि उनकी बेटियां थ्री सिस्टर्स से जुड़ें. एक अन्य महिला गाइड कहती हैं कि शुरुआत में काफी मानसिक कठिनाई होती है. कुंवर कहती हैं, ''मेरे रिश्तेदार और पड़ोसी खुश नहीं थे. घर से बाहर निकलकर खुले मैदानों में घूमना वाकई में अलग है. घर वालों को पता नहीं होता कि आप कहां और क्या कर रहे हैं. कई बार मुश्किलें होती थीं.''
लेकिन कुंवर के पति और ससुराल वाले सकारात्मक रहे. कुंवर के पति खुद एक गाइड हैं. परिवार के सहयोग ने कुंवर में आजादी की भावना और आत्मविश्वास भरा. कुंवर और चित्रा की देखा देखी अब अन्य लोग भी उत्साहित होने लगे हैं. कई माता पिता चाहने लगे हैं कि उनकी बेटियां गाइडिंग के बारे में सोचें.
डिक्की कहती हैं, ''यह एक बड़ा बदलाव है. पहले जब हम इस प्रोग्राम के लिए महिलाओं से आगे आने को कहते थे तो शायद ही कोई आती थी. लेकिन अब घरवाले ही हमारे पास आते हैं और कहते है मेरी बेटी को भी ले लीजिए और अपने जैसा बना दीजिए. उन्हें लगने लगा है कि महिलाएं भी यह काम कर सकती हैं.''
नेपाल में हिमालय की वादियां अब भी वैसी ही हैं, पोखरा की शांत झील भी वैसी ही है, लेकिन तीन बहनों से शुरू हुई थ्री सिस्टर्स एडवेंचर ट्रैकिंग में अब 100 से ज्यादा महिलाएं हैं. बदलाव इसी को कहा जाता है. गरीब महिलाएं घर से निकलकर पर्यटन के क्षेत्र में भविष्य बना रही हैं और नेपाल के पिछड़े इलाकों में अलग किस्म की क्रांति हो रही है.
रिपोर्टः शेरपम शेरपा/ओ सिंह
संपादनः आभा एम