नेपाल के सामने फिर राजनीतिक गतिरोध
१६ अगस्त २०११खनल ने रविवार को इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति ने उनसे आम सहमति वाली सरकार बनने तक पद पर बने रहने को कहा है. यादव ने कहा कि अगर 21 अगस्त तक आम सहमति नहीं बन पाई तो वह चुनाव कराने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करेंगे जिसके बाद बहुमत वाली सरकार बनने का रास्ता साफ होगा.
फरवरी में प्रधानमंत्री पद संभालने वाले खनल ने कहा कि विभिन्न पार्टियों की तरफ से समर्थन न मिलने के चलते वह इस्तीफा दे रहे हैं क्योंकि इससे संविधान का मसौदा तैयार करने का काम पूरा नहीं हो रहा है. साथ ही पूर्व माओवादी विद्रोहियों के साथ शांति वार्ता भी आगे नहीं बढ़ रही है.
सरकार के सामने 31 अगस्त तक संविधान का मसौदा तैयार करने की समयसीमा है, लेकिन पूर्व गुरिल्ला लड़ाकों के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है. यह समयसीमा दो बार बढ़ाई जा चुकी है. 2006 में गृह युद्ध खत्म होने के बाद इन लोगों को शिविरों तक सीमित कर दिया गया है. 2006 में हुई शांति संधि के मुताबिक अगर निश्चित समयसीमा तक संविधान का मसौदा तैयार नहीं हुआ तो इससे पैदा होने वाली राजनीतिक स्थिरता की वजह से शांति प्रक्रिया पटरी से उतर जाएगी.
पूर्व गुरिल्लाओं पर मतभेद
शांति प्रक्रिया का सबसे बड़ा मुद्दा 19,000 माओवादी लड़ाकों को सेना का हिस्सा बनाना है. लेकिन सैन्य नेतृत्व और विपक्षी नेपाली कांग्रेस पार्टी इसके हक में नहीं हैं. एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (यूएमएल) के नेता झालानाथ खनल के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा ने कहा, "उन्होंने आखिरी मिनट तक आम सहमति बनाने की कोशिश की, लेकिन पार्टियां संविधान के मसौदे और शांति प्रक्रिया पर सहमत ही नहीं हुईं, इसलिए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा."
नेपाल में दस साल तक चले गृह युद्ध के बाद 2006 में शांति संधि हुई लेकिन निर्वाचित सांसद नया संविधान तैयार करने में नाकाम रहे. सात महीनों तक नेपाल में कोई प्रधानमंत्री नहीं रहा. फिर फरवरी में खनल ने प्रधानमंत्री पद संभाला, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद फिर राजनीतिक गतिरोध पैदा हो गया. 2008 के चुनावों में माओवादी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरे जिसके बाद पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड प्रधानमंत्री चुने गए.
फिर गतिरोध
खनल ने तीन पार्टियों वाले गठबंधन का नेतृत्व किया जिसमें माओवादी भी शामिल थे. लेकिन वह पहले ही साफ कर चुके थे कि अगर शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर सहमति नहीं हुई तो वह इस्तीफा दे देंगे. पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक निष्क्रियता की वजह से गृह युद्ध के बाद देश में सुधार और विकास की प्रक्रिया खतरे में पड़ गई है. बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि गृह युद्ध खत्म होने के बाद उनकी जिंदगी बेहतर होगी.
601 सदस्यों वाली संसद के ताजा चुनाव कराने के लिए नए संविधान की जरूरत है. संविधान का मसौदा तैयार करने की समयसीमा को दो बार बढ़ाया जा चुका है. सात महीनों तक जब देश में प्रधानमंत्री को चुनने की कोशिशें नाकाम रहीं तो 2010 में संविधान सभा के लिए तय समयसीमा को पहली बार बढ़ाया गया. उस समय प्रधानमंत्री चुनने की 16 बार की गई कोशिशें नाकाम रहीं.
मुश्किल आगे की डगर
मासिक राजनीतिक पत्रिका मूल्यांकन के संपादक झलक सुबेदी का कहना है कि मध्यपंथी नेपाली कांग्रेस अगली सरकार का नेतृत्व कर सकती है. यह इस वक्त संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. वह कहते हैं, "लेकिन मुझे नहीं लगता कि अगली सरकार तीन महीनों से ज्यादा चल पाएगी. माओवादी पार्टी के कट्टरपंथी धड़े की वजह से पूरी प्रक्रिया की रफ्तार सुस्त हो गई है. यह धड़ा शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिशों में रोड़े अटका रहा है."
सुबेदी खबरदार करते हैं कि अगर राजनीतिक उथल पुथल जारी रही तो इसके गंभीर परिणाम होंगे क्योंकि लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है. उनके मुताबिक, "हो सकता है कि कुछ समूह प्रदर्शन कर लोगों की हताशा का फायदा उठा सकते हैं जिससे देश अस्थिर हो सकता है."
नेपाल में 2008 में संसद ने 240 साल पुरानी हिंदू राजशाही को खत्म करने को मंजूरी दी. उसके बाद हिंदू राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बन गया.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम