नेपाल में स्कूलों के विदेशी नाम पर पाबंदी
६ अगस्त २०१२नेपाल सरकार ने सोमवार को साफ कर दिया कि वह अपने यहां के सेकेंडरी स्कूलों को ऑक्सब्रिज, व्हाइट हाउस और नासा जैसे नाम रखने पर पाबंदी लगाने जा रही है. सरकार को डर है कि देश के स्कूलों से नेपाली संस्कृति गायब हो रही है. लोगों को शायद सरकार की मंशा का पहले से ही अहसास था. पाबंदी लगने के साथ ही विरोध भी शुरू हो गया. देश भर में विदेशी नामों वाले स्कूलों के छात्र और युवा स्कूल के बाहर जमा हो कर सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं.
नेपाल के शिक्षा मंत्री जनार्दन नेपाल ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमने स्कूलों को अपना नाम नेपाली में बदलने के लिए सूचना दे दी है. यहां के कानून में यह साफ लिखा गया है लेकिन कुछ स्कूल इस नियम को तोड़ रहे हैं. उन लोगों को नाम बदलने के लिए बहुत वक्त दिया गया लेकिन अब इसमें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा." जनार्दन नेपाल ने यह नहीं बताया कि नाम बदलने की आखिरी समय सीमा कब तक है.
नेपाल में पढ़ाई लिखाई पर खर्च होने वाले पैसे का करीब 25 फीसदी विदेशी सरकारों और राहत एजेंसियां देती हैं. यहां का सालाना शिक्षा बजट करीब 65 अरब रुपये का है. पैसे की कमी से जूझ रहे स्कूल दान और छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पश्चिमी देशों के प्रतिष्ठित नामों पर स्कूल का नाम रख देते हैं. एक अनुमान है कि केवल काठमांडू में ही करीब 250 स्कूल ऐसे हैं जिनके नाम यूरोप और अमेरिका के सम्मानित महापुरुषों, संस्थाओं या जगहों के नाम पर हैं. आइंस्टाइन एकेडमी और पेंटागन कॉलेज कुछ इसी तरह के उदाहरण हैं.
पिछले महीने ही संयुक्त राष्ट्र ने नेपाल के स्कूलों में फैल रही हिंसा पर गहरी चिंता जताई थी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि उग्रवादियों की हिंसा से बच्चों का जीवन और शिक्षा का अधिकार खतरे में पड़ गया है. स्थानीय मीडिया ने कई राजनीतिक दलों की छात्र शाखाओं पर काठमांडू के कॉलेज में कंप्यूटरों को नुकसान पहुंचाने और राजधानी की कई स्कूलों के बसों में आग लगाने का आरोप लगाया है. दक्षिण में चितवन और पूर्वी इलाके के शहर धारन में भी ऐसी घटनाओं की खबर मिली है. आग लगाने वाले स्कूलों के विदेशी नाम का विरोध कर रहे थे.
यूनीसेफ के मुताबिक नेपाल के केवल 46 फीसदी लड़के और 38 फीसदी लड़कियां ही सेकेंडरी स्कूल तक जा पाते हैं. सेकेंडरी स्कूल के आगे पढ़ाई करने वालों की तादाद तो और भी कम है. ज्यादातर युवा बहुत कम पढ़े लिखे और बदलती अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने में अक्षम साबित हो रहे हैं. अगर लोगों को शिक्षा के जरिए ताकतवर बना कर देश के लिए भविष्य तय करना हो, तो नेपाल इसमें काफी पीछे रह जाएगा. मौजूदा नीतियां और राजनीतिक दखलंदाजी भी शिक्षा का भला करने में नाकाम हो रही हैं.
एनआर/एमजी (एएफपी)