पर्थ में पहले दिन ही हार गई टीम इंडिया
१३ जनवरी २०१२ऑस्ट्रेलिया अगर चाहे तो जल्दी छुट्टी कर दे ताकि टीम इंडिया के जिन सदस्यों ने पर्थ की सैर नहीं की है, उन्हें साइट सीइंग का मौका मिल जाए. हो सकता है कि वह थोड़ी थोड़ी देर पर सांस लेने का मौका देता रहे क्योंकि अभी एक मैच और खेलना है और हो सकता है कि दूसरे दिन ऐसा तूफान खड़ा कर दे कि यह मैच सबसे कम वक्त में पूरा हो जाने वाला टेस्ट बन जाए.
भारतीय मीडिया और फेसबुक पर जो चुटकुले चल रहे हैं, उनमें कहा जा रहा है कि अपने घर पर कंगारू भी शेर होते हैं. शेर कौन है पता नहीं, लेकिन कम से कम भारतीय क्रिकेट टीम विदेशी धरती पर चूहा तो साबित हो ही गई है. ऐसा नहीं है कि 161 रन पर आउट होने वाली टीम मैच जीत नहीं सकती. लेकिन अगर वह 149 तक दूसरी टीम का एक विकेट भी न ले पाए, तब तो उसका हारना पक्का है. क्रिकेट में करिश्मे होते हैं लेकिन हर रोज नहीं.
सिर्फ 69 गेंद में धड़धड़ा कर शतक ठोंक देने वाले कंगारू ओपनर डेविड वार्नर भी मानते हैं कि भारत की हार तो हो चुकी है. वार्नर कहते हैं, "अब वक्त बताएगा कि हम 4-0 से जीतते हैं या 3-0 से. हमने जिस तरह की शुरुआत की है, उससे हमें यह तो लग ही रहा है कि यह मैच हमारी पकड़ में आ गया है." भारत को सिर्फ 161 पर आउट करने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने पहले दिन का खेल खत्म होने तक बिना किसी नुकसान के 149 रन बना लिए हैं.
पहले दो टेस्ट चार चार दिन में निपटा देने वाली टीम इंडिया ने शायद तीसरे मैच को दो दिन में ही खत्म करने का मंसूबा बना लिया है. दिन भर के खेल के बाद सुनने में अटपटा लग सकता है लेकिन सच तो यह है कि भारत ने इतनी खराब शुरुआत नहीं की थी. वह तो लंच के बाद बंटाधार हो गया. शुरू में आउट होने वाले बल्लेबाज पर्थ की धूप वाली दुपहरी में उंघना चाह रहे होंगे लेकिन उनके साथियों ने सपना तोड़ दिया. लंच के बाद वे सारे ढह गए. जल्दी आउट होकर एकाध दिन आराम करने का ख्वाब पूरा नहीं हुआ और मैदान में उतर कर फील्डिंग करनी पड़ी.
ऊपर से वार्नर ने ऐसा दौड़ाया कि छक्के छूट गए. पर्थ तो हाथ से निकल चुका है. लेकिन क्रिकेट के दीवानों का क्या कहिए. उन्हें तो अभी भी भारतीय टीम से कुछ आस लगी होगी. और कहने के लिए अभी एडिलेड का मैच तो बचा हुआ है. और हां, सचिन तेंदुलकर का सौवां शतक भी तो पूरा होना है. क्रिकेट खेलने की वजहें भले खत्म हो रही हों, क्रिकेट देखने की वजहें बाकी हैं.
लेखः अनवर जे अशरफ
संपादनः एन रंजन