पाकिस्तानी सहयोग से होते हैं अमेरिकी ड्रोन हमले
२३ जनवरी २०१२इसी महीने की 10 तारीख को हुआ ड्रोन हमला और फिर दो दिन तक उसकी जांच, यह दोनों देशों की साझा कार्रवाई थी. कबायली इलाके के एक रक्षा सूत्र ने रॉयटर्स को यह जानकारी दी. अमेरिकी सैनिक जमीन पर निशानदेही के लिए पाकिस्तानी सेना का इस्तेमाल करते हैं. दोनों तरफ से किया जा रहा सहयोग उनके बीच आए तनाव को कम करने की कोशिश है. तनाव की इस डोर का सिरा पिछले साल लाहौर में अमेरिकी कान्ट्रैक्टर के हाथों दो लोगों की जान जाने के बाद से शुरू होता है. वैसे राजनीतिक स्तर पर चाहे जो चल रहा हो सेना अपने स्तर पर लगातार सहयोग का रुख अपनाए हुए है. नाम न बताने की शर्त पर एक पाकिस्तानी अधिकारी ने रॉयटर्स से कहा, "हमारे काम का रिश्ता, राजनीतिक रिश्ते से अलग है. यह ज्यादा काम का है."
ड्रोन हमले में पाकिस्तानी सहयोग
अमेरिकी और पाकिस्तानी सूत्रों ने रॉयटर्स को बताया कि 10 जनवरी को हुए हमले का निशाना असलम अवान था. असलम पाकिस्तान के एबटाबाद जिले के रहने वाला है. यह वही जिला है जहां ओसामा बिन लादेन छिप कर रह रहा था. अधिकारियों ने बताया कि अमेरिकी ड्रोन के हमले में उसे निशाना बनाया गया. खबरों में पता चला है कि सीमांत प्रांत उत्तरी वजीरिस्तान के मीरनशाह में एक परिसर पर यह हमला किया गया.
इस हमले ने कबायली इलाके में आठ हफ्ते से चले आ रहे ड्रोन हमलों के अघोषित विराम को खत्म कर दिया. हमले में मदद करने वाले पाकिस्तानी फौजियों ने अभी इस बात की पुष्टि नहीं की है कि असलम अवान मारा गया है. हालांकि अमेरिकी अधिकारी कह रहे हैं कि वो मारा गया है. यूरोपीय अधिकारियों के मुताबिक असलम ने लंदन में वक्त बिताया था और पाकिस्तान लौटने से पहले उसने ब्रिटिश चरमपंथियों से भी रिश्ते जोड़ लिए थे.
रॉयटर्स को जानकारी देने वाले सूत्र ने बताया कि वह उत्तर और दक्षिण वजीरिस्तान में निशानदेही करने वालों का एक नेटवर्क चलाता है. इसी सूत्र से पहली बार यह जानकारी भी सामने आई है कि अमेरिकी और पाकिस्तानी सेना का सहयोग किस तरह से काम करता है. उसने बताया कि पाकिस्तानी एजेंट संदिग्ध आतंवादियों पर निगाह रखते हैं और उनकी गतिविधियों और संपर्कों का खाका खींचते रहते हैं. उसने कहा, "हम खुफिया सूत्रों का एक नेटवर्क चलाते हैं. इसके साथ ही हम उनके मोबाइल और सेटेलाइट फोन पर भी नजर रखते हैं. इसके अलावा हम अपने अमेरिकी और ब्रिटिश दोस्तों की मदद से भी कार्रवाइयों पर निगाह रखते हैं." पाकिस्तानी अधिकारी अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ अपने सूत्रों से जुटाई जानकारी के आधार पर कार्रवाई और निशाने की प्राथमिकता तय करते हैं. दोनों पक्षों के बीच अकसर आमने सामने बैठ कर बातें होती है.
सूत्र ने हालांकि इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि यह बैठकें कहां होती हैं. एक बार जब निशाना तय कर लिया जाता है तो उस पर निशान लगा दिया जाता है. उसके बाद नेटवर्क अमेरिकी ड्रोन ऑपरेशन चला रहे अधिकारियों के साथ सहयोग कर उन पर हमले कराता है. उसने बताया कि अमेरिकी ड्रोन हमले के अड्डे फिलहाल काबुल के बाहर बगराम में हैं. निशाना तय करने के बाद मिसाइलों के दगने में बमुश्किल दो से तीन घंटे लगते हैं.
पाकिस्तान की दुखती रग, ड्रोन हमला
इस बात की पुष्टि तो नहीं हो सकी लेकिन एक सूत्र का दावा है और इसके अलावा अमेरिकी जानकार भी कहते रहे हैं कि पिछले दिनों में ड्रोन हमले का कोई बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. अमेरिकी अधिकारी शिकायत करते हैं कि ड्रोन हमले से पहले पाकिस्तानी अधिकारियों को जानकारी दी गई. लेकिन नतीजा यह भी हुआ कि पाकिस्तान अधिकारियों ने आतंकवादियों को इसकी खबर कर दी और वो भाग निकले. ड्रोन हमला सरकार और आम लोगों के बीच नाराजगी की एक बड़ी वजह है. पाकिस्तान के लोग इस हमले को उनकी संप्रभुता पर हमला मानते हैं.
10 जनवरी के हमले से पहले आखिरी बार 16 नवंबर को हमला हुआ था. 24 पाकिस्तान सैनिकों को मारने वाले नाटो हमले से ठीक 10 दिन पहले. दोनों देशों के रिश्ते उसके बाद बेहद तनावपूर्ण हो गए. अमेरिका, अफगानिस्तान की जंग को खत्म करने में पाकिस्तान को बेहद अहम मानता है. कुछ अमेरिकी और पाकिस्तान अधिकारियों का कहना है कि दोनों पक्ष रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. रिश्ते बेहतर करने के लिए मुमकिन है कि ड्रोन कार्यक्रम में कुछ स्थायी बदलाव किए जाएं. इससे इन हमलों में कमी आएगी. जब कोई आतंकवादी किसी घर या परिसर में पनाह लेता है तो उस परिसर को बम से उड़ा दिया जाता है. उस आतंकी के साथ पनाह देने वाला परिवार भी खत्म हो जाता है. सेना का मानना है कि पनाह देने वाले भी उतने ही कसूरवार हैं. हालांकि हर बार यह सच नहीं होता.
न्यू अमेरिका फाउंडेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट का कहना है कि 2004 से 16 नवंबर 2011 के बीच हुए 283 दर्ज हमलों में करीब 1,717 से लेकर 2,680 लोगों की मौत हुई. इनमें मरने वाले बेगुनाह लोगों की तादाद 293 से 471 के बीच है यानी मारे गए कुल लोगों के करीब 17 फीसदी. हालांकि ब्रुकिंग इस्टीट्यूट का कहना है कि मरने वालों की तादाद कहीं ज्यादा है. यह संस्थान तो मानता है कि हर एक आतंकवादी के पीछे 10 या उससे ज्यादा आम नागरिकों की मौत हुई है. पाकिस्तानी हुक्मरान भी मानते हैं ड्रोन हमले में ज्यादातर बेगुनाह लोग शिकार बने हैं.
इन सबके बावजूद पाकिस्तान चुपके चुपके इन हमलों का समर्थन कर रहा है. 2009 में अमेरिका की कुर्सी संभालने के बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा का इस कार्यक्रम पर विशेष ध्यान रहा है. विकीलीक्स से जारी एक खुफिया दस्तावेज तो इस बात की भी तस्दीक करती है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने फरवरी 2008 में उस वक्त अमेरिकी सेना की सेंट्रल कमांड के प्रमुख रहे विलियम जे फैलन से उत्तरी और दक्षिण वजीरिस्तान पर 24 घंटे ड्रोन से निगरानी रखने को कहा था. सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रमुख भी ड्रोन कार्यक्रम का समर्थन करते हैं.
रिपोर्टः रॉयटर्स/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह