पाकिस्तान में तालिबान के सामने जिन्ना
६ नवम्बर २०१२सत्ताधारी गठबंधन की पार्टी मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) का कहना है कि 14 नवंबर को होने वाला जनमत संग्रह अनौपचारिक है. पार्टी सिर्फ यह जानने की कोशिश कर रही है कि 17.62 करोड़ आबादी वाले पाकिस्तान की जनता के मन में चल क्या रहा है. केंद्र में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के साथ गठबंधन सरकार चला रही एमक्यूएम मलाला यूसुफजई के मुद्दे को जनमत संग्रह से जोड़ रही है. सिंध प्रांत के युवा मामलों के मंत्री और एमक्यूएम नेता फैसल सब्जवरी कहते हैं, "जनमत संग्रह के जरिए हम जानना चाहते हैं कि हमारे देश के लोग और महिलाएं तालिबान का पाकिस्तान चाहते हैं या फिर मोहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान."
पहले जनमत संग्रह 8 नवंबर को होना था, लेकिन सुरक्षा कारणों के चलते इसकी तारीख आगे बढ़ाई गई है. पार्टी के मुताबिक रक्षा एक्स्पो की वजह से पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम नहीं हो सके. नाम न बताने की शर्त पर एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि जनमत संग्रह की कोशिशों के बीच पार्टी के दफ्तरों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट सिंध की प्रभावशाली पार्टी है. पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में इसकी अच्छी पकड़ है.
पार्टी ने देश के डॉक्टरों, इंजीनियरों, वकीलों, बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, पत्रकरों, कारोबारियों, छात्रों और किसानों से जनमत संग्रह में भाग लेने का आग्रह किया. एमक्यूएम संयोजन समिति के नेता डॉक्टर फारुख के मुताबिक देश अंदरूनी और बाहरी खतरों से घिरा है. एक तरफ आतंकवादी और ड्रोन हमले संप्रभुता को चुनौती दे रहे हैं तो दूसरी तरफ आतंकवादी हरकरतों की वजह से दुनिया में मुल्क की छवि खराब हो चुकी है. चरमपंथी मस्जिदों, दरगाहों, फकीरों और स्कूलों पर हमले कर रहे हैं. पुलिस और सेना से भी नहीं डर रहे हैं. एमक्यूएम का आरोप है कि पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी कराची में इस वक्त 25 आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं.
राह सही या गलत
जिन्ना को पाकिस्तान में कायदे आजम कहा जाता है. ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान में हालात काफी बदल गए. जिन्ना की अगुवाई में मुस्लमानों के लिए पाकिस्तान नाम का देश बनाया गया. 1947 में भारत से अलग होने के जिन्ना ने पाकिस्तान को एक धर्मनिपरेक्ष लोकतांत्रिक देश बनाने की कोशिश की. 1948 में जिन्ना का निधन हो गया. 1956 में पाकिस्तान को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान कर दिया गया.
सब्जवारी कहते हैं, "कायदे आजम ने आस्था, जाति और धर्म का भेदभाव किए बिना यह देश हर किसी के लिए बनाया. हमें वही पाकिस्तान चाहिए." आजादी के 65 साल बाद अपनी पहचान को तलाशने की कोशिश में एमक्यूएम ने लोगों से कहा है कि वह जनमत संग्रह में भाग लें. देश भर में पार्टी के दफ्तरों में मतदान का इंतजाम किया गया है. एमएसएस और ईमेल के जरिए लोग अपनी राय जाहिर कर सकते हैं.
तालिबान की गोली का शिकार होने वाली स्कूली छात्रा मलाला यूसुफजई का उदाहरण देते हुए पार्टी ने कहा, "हम यह इसलिए कर रहे हैं ताकि मासूम जिंदगियां, हमारे स्कूल और हमारी उदार जीवनशैली बचाई जा सके."
कराची की फैजल ऊर्दू यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग के प्रमुख डॉक्टर तौसिफ अहमद खान कहते हैं, "निश्चित रूप से जनमत संग्रह कराया जाना एक बड़ा कदम है. आज मुल्क को इसकी जरूरत है. जिस तरह से हमले बढ़ रहे हैं, हालात खराब हो रहे है, उस लिहाज से इस जनमत संग्रह को एक शुरुआती उम्मीद कहा जा सकता है."
अकेली पार्टी क्या करेगी
डॉक्टर तौसिफ यह भी स्वीकार करते हैं कि अकेले एमक्यूएम के सामने आने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, "इस तरह की कोशिशें लोगों को साथ लाने का एक तरीका हैं. इन कोशिशों से आवाम को साथ लाया जा सकता है. कराची में एमक्यूएम मजबूत है. यहां विश्वविद्यालयों, कामगारों और अन्य जगहों पर उसका बड़ा आधार है, लेकिन ऐसे वक्त में जब पूरे मुल्क में कई मुद्दों को लेकर मायूसी हो, अकेली पार्टी से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. अगर सारी पार्टियां साथ आकर ऐसी मुहिम छेड़ती हैं तो निश्चित रूप से उसका असर पड़ेगा." 2009 के चुनाव के बाद मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान की चौथी बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
अल कायदा के प्रभाव वाले चरमपंथी संगठन बीते कुछ सालों से पाकिस्तान में मस्जिदों और दरगाहों पर हमले कर रहे हैं. चरमपंथी फकीरों और दरगाहों को ठुकराते हैं. लाहौर और पेशावर जैसे शहर आए दिन चरमपंथियों का निशाना बन रहे हैं. हैरानी की बात है कि तालिबान अब तक कराची से दूर है. कराची में तालिबान ने आम शहरियों पर कोई बड़ा हमला नहीं किया है. कराची में बड़ी संख्या में पठान रहते हैं. एमक्यूएम का आरोप है कि तालिबान कराची से ही चंदा जमा करता है. लेकिन अब यह आशंका प्रबल हो रही है कि तालिबान कराची और हैदराबाद जैसे शहरों पर भी निशाना साध सकता है. डॉक्टर तौसिफ कहते हैं, "कराची में वैसे ही हालात बहुत अच्छे नहीं. दो गुटों के बीच आए दिन हिंसा होती रहती है. इस हिंसा के बीच एमक्यूएम के जनमत संग्रह का एलान करना नई परेशानियां खड़ी कर सकता है. हो सकता है कि तालिबान कराची में सक्रिय हो जाएं."
रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी)
संपादनः आभा मोंढे