पाक पत्रकार की हत्या से जर्मन प्रेस की बेचैनी
१० जून २०११ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के ठीक एक महीने बाद पाकिस्तान में हुए ड्रोन हमले में अल कायदा के महत्वपूर्ण नेता इलियास कश्मीरी की भी मौत की खबर आई है. समाचार पत्र नॉय त्स्युरषर त्साइटुंग का कहना है कि रणनीति तैयार करने वाले खतरनाक कमांडर कश्मीरी की मौत अल कायदा के लिए एक करारी चोट है. एक लेख में कहा गया है:
अब अल कायदा के अन्य नेताओं को गंभीर रूप से अपनी सुरक्षा की चिंता करनी पड़ेगी. वैसे पाकिस्तान की सेना अब भी उत्तरी वजीरिस्तान में अभियान छेड़ने से कतरा रही है, जहां से चरमपंथियों के कई गिरोह हमले की तैयारियां करते हैं. लेकिन जहां तक खुफिया सूचनाओं की जांच और ड्रोन हमलों का सवाल है, लगता है कि अमेरिका को भारी सफलता मिल रही है. साथ ही वे पाकिस्तान की जमीन पर आंतकवादियों का पीछा करने के लिए तैयार लगते हैं. पिछले महीनों के दौरान अमेरिका ने सीमावर्ती इलाकों में कई चोटी के आतंकवादियों को खत्म किया है, हालांकि हर बार पाकिस्तान की ओर से उनकी कड़ी आलोचना की गई है. लेकिन अन्य चरमपंथियों के विपरीत कश्मीरी को पाकिस्तानी सेना भी दुश्मन समझती थी, और इसलिए इस बार शायद ही किसी आलोचना की उम्मीद है.
बर्लिन के समाचार पत्र डेर टागेसश्पीगेल का भी मानना है कि पाकिस्तान भी कश्मीरी से पल्ला छुड़ाना चाहता था. समाचार पत्र का कहना है :
पिछले हफ्ते मारे गए पत्रकार सलीम शहजाद ने रिपोर्ट दी थी कि 22 मई को कराची में नौसेना के हवाई बेड़े पर आंतंकी हमले के पीछे कश्मीरी और उसके शागिर्दों का हाथ था. उन्हे मुखबिरों से मदद मिली थी. इस रिपोर्ट के छपने के दो दिन बाद शहजाद को तकलीफें देकर मार डाला गया. जबकि कुछ लोग खुफिया सेवा आईएसआई को इस कत्ल के लिए जिम्मेदार मानते हैं, कुछ दूसरे लोगों का ख्याल है आईएसआई के अंदर अल कायदा से हमदर्दी रखने वालों ने यह काम किया है. अगर ऐसी बात है तो इसका मतलब यह होगा कि सुरक्षा तंत्र के अंदर एक खतरनाक सत्ता संघर्ष चल रहा है. बिन लादेन और अन्य आतंकवादी नेताओं की मौत से पाकिस्तान की सेना में विभेद बढ़ सकता है. और अमेरिका व पाकिस्तान अन्य आतंकवादी नेताओं को भी निशाना बनाना चाहते हैं. अफगानिस्तान ने संकेत दिया है कि तालिबान के मुखिया मुल्ला ओमर इस बीच आईएसआई के हाथों में आ चुके हैं.
मारे गए पत्रकार सलीम शहजाद एशिया टाइम्स ऑनलाइन के पाकिस्तान ब्यूरो चीफ थे और इटली की न्यूज एजेंसी एडीएनक्रोनोस के लिए भी काम करते थे. पाकिस्तान के सबसे हिम्मती रिपोर्टरों में उनकी गिनती थी और आतंकवादियों के बारे में उन्हें गहरी जानकारी थी. यह जानकारी देते हुए डेर टागेसश्पीगेल में कहा गया है कि आतंकवादियों के साथ सेना व आईएसआई के संबंधों के बारे में वे काफी कुछ जानते थे. लेख में पूछा गया है कि क्या इसीलिए उन्हें मरना पड़ा? आगे कहा गया है:
इसे "सिर्फ और एक हत्या" नहीं कहा जा सकता. बहुतों की राय में यह कत्ल और यातनाओं की गवाही देने वाले लाश के जरिये पत्रकारों और आलोचकों को चेतावनी दी गई है. बोस्टन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर आदिल नजम का कहना है कि यह पूरे समाज को खामोश कर देने की कोशिश है. पाकिस्तान की सरकार मीडिया के लोगों का बचाव करने में किस कदर नाकाम है यह इसी से साफ हो गया है कि उसने पत्रकारों को अपनी हिफाजत के लिए बंदूक साथ रखने की इजाजत दे दी है. चारों ओर इस फैसले का मखौल उड़ाया जा रहा है.
एक खतरनाक जिंदगी जी रहे थे सलीम शहजाद - बर्लिन के दैनिक डी वेल्ट का कहना है. एक लेख में कहा गया है:
पत्रकारों के लिए खतरा बढ़ गया है. पहले कबायली इलाके उनके लिए खतरनाक माने जाते थे. लेकिन इस्लामाबाद को सुरक्षित माना जाता था. दैनिक डॉन के सीरिल अलमेइदा कहते हैं, "यहीं से शहजाद को गायब किया गया" और न्यूजलाइन की सायरा इरशाद खान कहती हैं, "पत्रकारों के बीच बेहद गुस्सा है, लेकिन डर भी."
पाकिस्तान के बाद अब भारत. योग गुरु रामदेव के अभियान को बलपूर्वक खत्म करने के सरकारी कदम के बारे में समाचार पत्र फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग का कहना है:
पिछली गर्मी से ही भारत सरकार भ्रष्टाचार के एक के बाद दूसरे मामले में फंसती जा रही है, लेकिन विपक्ष की सारी कोशिशें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कुर्सी हिला न सकी. अब दो गुरु यह काम कर रहे हैं, जिनके चेले योग के सामूहिक कार्यक्रम और अनशन में भाग लेते हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष तेज करने की मांग करते हैं.
और समाचार पत्र नॉय ज्यूरिशर साइटुंग का कहना है:
अब दाढ़ीवाले योगी को राजनीति का चस्का लगा है. देस में लंबे समय से कायम भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए उन्होंने शनिवार को दिल्ली में आमरण अनशन शुरू किया. उन्होंने एक लोकप्रिय मुद्दे को उठाया है. लेकिन उनकी मांगें, मसलन भ्रष्ट अधिकारियों को फांसी देना, या 500 और 1000 रुपये के नोट रद्द कर देना, न सिर्फ यथार्थ से दूर हैं, बल्कि असंवैधानिक भी.
संकलनः आना लेमन/उभ
संपादनः ए जमाल