कराची हमले से जर्मन प्रेस चिंतित
२८ मई २०११म्युनिख से प्रकाशित दैनिक ज्यूडडॉएचे त्साइटुंग में ध्यान दिलाया गया है कि कराची में 15 घंटों तक जारी लड़ाई में 14 लोगों की जान गई. प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इसे कायराना आतंकवादी हमला कहा. अखबार में आगे कहा गया है:
आतंक से लड़ने के सरकार और अवाम के इरादे पर इससे आंच नहीं आएगी. इन लफ्जों का लोगों पर अब कोई असर नहीं पड़ता है - वे मायूस हैं. बाजारों और मस्जिदों पर हमले अब रोजमर्रा का हिस्सा हैं. उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं कि वह आतंकवाद से निपट सकेगी और आतंकवाद विरोधी संघर्ष में वे खुद को अमेरिका की कठपुतली महसूस करते हैं. बिन लादेन को मार गिराए जाने के बाद पाकिस्तान के रखवाले के तौर पर सेना की इज्जत काफी हद तक घट चुकी थी. अब उस पर यकीन और भी कम हो गया है.
कराची के हमले पर एक दूसरे लेख में कहा गया है कि चरमपंथियों के लिए लोगों, यहां तक कि हमवतनों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं, खासकर अगर वे सैनिक हों. चरमपंथियों की नजर में वे अमेरिकी दुश्मन के पिट्ठू बन चुके हैं. इस लेख में कहा गया है:
लेकिन पाकिस्तान कहीं गहरी एक खाई में है. सत्ता से जुड़ा तबका समझता है कि अफगानिस्तान में युद्ध खत्म होने के बाद तालिबान को तुरुप का पत्ता बनाना ही चालाकी, यहां तक कि जरूरी है. लेकिन चरमपंथियों को काबू में लाकर उन्हें पाकिस्तानी और अफगान धड़ों में बांटना मुमकिन नहीं रह गया है. वे अपने ढर्रे पर चल रहे हैं, जिसके चलते परमाणु अस्त्रों वाले देश पाकिस्तान का वजूद खतरे में है. कराची की आग से यह फिर साबित हो गया है.
ऐसा लगता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में खटाई से पेइचिंग-इस्लामाबाद धुरी का सिक्का चल पड़ा है. दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की चीन यात्रा की ओर ध्यान दिलाया गया है. आगे कहा गया है:
पाकिस्तान की नजर से ऐसी दोस्ती अच्छी है, क्योंकि आने वाले सालों में दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर विश्व स्तर पर चीन का राजनीतिक महत्व बढ़ने वाला है. चीन पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझीदार और हथियारों व परमाणु तकनीक की आपूर्ति करने वाला देश है. चीन पूंजी, प्राकृतिक विपदाओं में राहत और सैनिक मदद मुहैया कराता है. इसके अलावा हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत की पैरवी करता है, इसलिए मानवाधिकारों के सवाल पर कोई तंग करने वाली चेतावनी भी नहीं मिलने वाली है.
बर्लिन के अखबार टागेसत्साइटुंग में कहा गया है कि इसके बदले चीन भारत के मुकाबले पाकिस्तान को खड़ा करना चाहता है. साथ ही चीन को उम्मीद है कि इस्लामाबाद से अच्छे संबंधों के बल पर अपने शिनचियांग प्रांत में स्वतंत्रता की कोशिश कर रही इस्लामपंथी ताकतों पर काबू पाया जा सकेगा. और कराकोरम हाइवे से होकर चीन पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादार तक पहुंच सकता है और फिर मध्य पूर्व के तेल वाले देश उससे ज्यादा दूर नहीं होंगे. इस बंदरगाह को चीन ने ही तैयार किया है, अखबार का कहना है :
पाकिस्तान-चीन दोस्ती पर अमेरिका की प्रतिक्रिया विरोधाभास से भरी है. रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने पाकिस्तान की भावनाओं के प्रति समझ दिखाते हुए कहा है कि अमेरिका के पास इसका कोई सबूत नहीं है कि सरकारी हलकों को बिन लादेन के छिपने की जगह के बारे में पता था. साथ ही अमेरिका के विशेष दूत मार्क ग्रॉसमैन और सीआईए के उप प्रमुख माइकेल मोरेल इस्लामाबाद पहुंचकर संबंधों को सुधारने की कोशिश में हें. लेकिन कुछ सीनेटर नाराज हैं और वे पाकिस्तान के लिए अरबों की अमेरिकी मदद पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अध्यक्ष दोमिनिक स्ट्रॉस कान के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी के नाम पर बहस तेज हो गई है. इस सिलसिले में मोंटेक सिंह अहलूवालिया के नाम की भी चर्चा की जा रही है. इस सिलसिले में दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में कहा गया है:
योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में वह भारत की आर्थिक नीति के लौहपुरुष माने जाते हैं. सारी दुनिया में वित्तीय हलकों में उनकी इज्जत है. वह मुद्रा कोष, विश्व बैंक और जी20 में काम कर चुके हैं. लेकिन औपचारिक रूप से उनमें एक कमी है : 67 वर्ष की उम्र में वह भारत की राजनीति के लिए आदर्श हो सकते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रधान के पद के लिए अधिकतम उम्र की सीमा 65 वर्ष है.
क्या आर्थिक क्षेत्र में भारत जल्द चीन की बराबरी कर लेगा? दोनों देशों के जानकार कहेंगे, नहीं. लेकिन फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में भारत की कुछ खूबियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया है :
चीन के मुकाबले भारत की संभावित खूबियों के सिलसिले में चार बातें सामने आती हैं: ब्रिटिश वैधानिक प्रणाली की विरासत, लोकतंत्र, अंग्रेजी भाषा और आबादी की एक बेहतर उम्र. यूरोप व जापान की तरह समृद्ध होने से पहले चीन की आबादी बूढ़ी होती जा रही है. अगले दो दशकों में भारत चीन की बढ़त को पाट नहीं पाएगा. जब चीन बूढ़ा नजर आएगा, भारत की घड़ी आएगी.
संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न/उभ
संपादन: ओ सिंह