प्रेस की आजादी में नेपाल भी भारत से बेहतर
३ मई २०१२मीडिया कार्यकर्ताओं का आरोप है कि भारत सरकार मीडिया को ठीक करने के नाम पर विवेक खोती जा रही है. 2011 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स को आपत्तिजनक सामग्री हटाने का निर्देश दिया. इसके बाद केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ने फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को चेतावनी देते हुए कहा कि आपत्तिजनक सामग्री नहीं हटाई गई तो कड़े कदम उठाए जाएंगे.
'आपत्तिजनक सामग्री' का मामला कॉमनवेल्थ और 2जी घोटालों के बाद सामने आया. अदालत से ढेरों बार फटकार खाने के बाद सीबीआई हरकत में आई. विधायिका की तरफ से इसमें कोई पहल नहीं की गई. सोशल मीडिया पर इस बारे में खूब चर्चा हुई.
निशाना जब सीधे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर साधा जाने लगा तो कांग्रेस के कुछ नेता असहज हो गए. सोशल मीडिया पर फंदा डालने की तैयारी हुई. मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था द हूट की संपादक सेवांती निनान कहती हैं, "पिछले साल गूगल ने बताया कि उन्हें भारत सरकार ने कहा है कि कुछ नेताओं की आलोचना से जुड़ी चीजें हटाएं."
भारतीय मीडिया पर फंदा
मई 2010 में सूचना तकनीक विभाग ने चुपके से सोशल नेटवर्किंग साइट्स के लिए नए नियम बना दिए. नियम के मुताबिक आपत्तिजनक चीजों के बारे में सूचना मिलने के 36 घंटे के भीतर उसे हटाया जाना चाहिए. सेवांती निनान के मुताबिक "भारत सरकार आलोचना को लेकर तेजी से असहनशील होती जा रही है."
भारत में मीडिया की भूमिका पर भी बहस जारी है. चुनाव के दौरान कई अखबारों पर पैसा लेकर खबर छापने के आरोप लगते हैं. टेलीविजन मीडिया लोगों का भरोसा खोता जा रहा है. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ढहता दिखाई पड़ रहा है. कई मीडिया घरानों के बीच अश्लीलता परोसने की जैसे होड़ सी मची हुई. कुछ टेलीविजन चैनलों के बड़े संपादकों के लिए भारत का मतलब सिर्फ क्रिकेट, सिनेमा, टीवी सीरियल, अंधविश्वास और महानगरों की खबरें हैं. ढांचे को बिना दुरुस्त किए मीडिया को खुद को ठीक करने का एक मौका दिया गया, जिसमें वह असफल हुआ. टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट और रीडरशिप जैसी बातें अब भी मूल्यांकन का आधार बनी हुई है.
अब सरकार एक ऐसा बिल लाने जा रही है जिसके माध्यम से मीडिया को सीमित कठघरे में रख दिया जाएगा. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा मानने पर किसी भी मीडिया घराने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. भारतीय कानून आयोग के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी कहते हैं, "यह एक सेंसरशिप है. आज के दिन और इस जमाने में आप ऐसा कानून कैसे ला सकते हैं. यह असंवैधानिक है."
दूसरे देशों में भी खराब हालत
विकास कर रहे या पिछड़े देशों में मीडिया के लिए हालात बुरे हैं. पत्रकारों के संगठन रिपोटर्स विद आउट बॉडर्स की प्रेस फ्रीडम रैकिंग में 179 देशों पर नजर डाली गई है. रिपोर्ट कहती है कि, "लोगों में मिस्र को लेकर काफी उम्मीदें थी. लेकिन अब मिस्र हमारी सूची में नीचे आ गया है. वहां की सैन्य सरकार ने आपातकालीन कानूनों के सहारे मीडिया की आजादी को सीमित कर दिया है." दूसरे अरब देशों में भी हालात संतोषजनक नहीं हैं.
सूची में ऐसे देशों का भी जिक्र है जहां प्रेस की आजादी के नाम पर बहुत कम प्रयास हो रहे हैं, "निश्चित रूप से इरीट्रिया पत्रकारों के लिए सबसे बुरी जगह है. वहां पत्रकार सरकारी मीडिया के लिए लिख रहे हैं. वह वहीं छाप रहे हैं जो मंत्रालय कह रहे हैं. जो ऐसा नहीं करता वह जेल जाता है."
रिपोटर्स विद आउट बॉडर्स ने चीन पर भी चिंता जताई है. एशिया में पत्रकारों को जेल भेजने के मामले में चीन सबसे आगे है. लेकिन इसके बावजूद चीन में हलचल हो रही है. डॉयचे वेले के ब्लॉग अवॉर्ड में हिस्सा लेने बर्लिन आए ब्लॉगर जेरेमी गोल्डकॉर्न ने कहा, "इंटरनेट और वाइबो जैसे विकल्प चीन के इतिहास में पहली बार लोगों को इस तरह अपनी बात रखने का अवसर दे रहे हैं." हालांकि बीजिंग इंटरनेट पर भी कड़ी नजर रखता है.
मेक्सिको और अफगानिस्तान में पत्रकार सेना या विद्रोहियों या फिर माफियाओं के हाथों मारे जा रहे हैं. ब्राजील जैसे विकासशील देश में जनवरी से अब तक चार पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. हाल ही में भ्रष्टाचार के कुछ मामलों के सामने लाने वाले ब्लॉगर की हत्या कर दी गई. इस दौरान भारत में भी दो पत्रकारों की हत्या की गई. रूस का मीडिया कई धड़ों में बंटा हुआ है. सरकार की करीबी मानी जाने वाली मीडिया कंपनियां बहुत अमीर हैं.
पत्रकारों की स्थिति यूरोप में अच्छी है. इस साल शीर्ष देशों की सूची में आठ देश हैं. इनमें फिनलैंड, नॉर्वे, इस्टोनिया, नीदरलैंड्स, ऑस्ट्रिया, आइसलैंड, लक्जमबर्ग और स्विटजरलैंड हैं. जर्मनी 16वें स्थान पर है. प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 131वें स्थान पर है. बांग्लादेश और नेपाल भी इस मामले में नई भारत से बेहतर हैं.
रिपोर्टः मुरलीकृष्णन, मार्को म्यूलर, ओ सिंह
संपादनः एन रंजन