फेसबुक और ट्विटर सिर्फ बच्चों का खेल नहीं
२ सितम्बर २०११जर्मनी में रहने वाले क्लाउस श्मॉल्त्स को नई चीजें सीखने में कोई गुरेज नहीं है. 2004 में उन्होंने पहली बार एक लैपटॉप खरीदा. उस समय उनकी उम्र 65 साल थी. कोलोन में रहने वाले श्मॉल्त्स को तब तक कंप्यूटर या इंटरनेट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. आज वह फेसबुक पर दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क में रहते हैं, स्काइप के जरिए उनसे बातें करते हैं और ईबे पर ऑनलाइन शॉपिंग भी करते हैं.
श्मॉल्त्स मानते हैं कि वक्त बदल गया है और अब वह इस बात का इंतजार नहीं कर सकते कि कब उनके नाती-पोते फोन कर के उन्हें कहेंगे कि वे उन्हें मिलने आ रहे हैं. इसलिए अपने बच्चों के करीब रहने के लिए उन्होंने खुद ही मेहनत करना बेहतर समझा, "मैंने सोचा कि अगर मैं वक्त के साथ नहीं चलूंगा तो मैं ही पीछे रह जाउंगा और अपने बच्चों और नाती-पोतों से संपर्क खो दूंगा, वो भी सिर्फ इसलिए कि मैं उनकी जबान नहीं बोलता." आज कल नौजवान चैटिंग की ही जबान बोलते हैं, जिसे श्मॉल्त्स ने भी बखूबी सीख लिया है.
और कोई चारा नहीं
हेंड्रिक श्पेक जर्मन शहर काइजर्सलाउटेर्न की यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लाइड साइंसेस में डिजिटल मीडिया के प्रोफेसर हैं. उनका मानना है कि बूढ़े लोगों के पास न्यू मीडिया को अपनाने के अलावा कोई चारा भी नहीं है, "अगर वे अपने बच्चों से संपर्क में रहना चाहते हैं तो उन्हें इन चीजों का इस्तेमाल करना ही होगा." रोजगार के अवसरों के कारण आज कल लोग अपना पूरा जीवन एक ही जगह पर नहीं बिता पाते हैं. कुछ सालों के अंतराल पर नौकरी बदलने के कारण शहर भी बदल जाता है और कई बार देश भी. ऐसे में बच्चों के साथ संपर्क बनाए रखने का यही एक तरीका बचता है. साथ ही स्मार्ट फोन और टेबलेट पीसी के आने के बाद नौजवान अकसर ऑनलाइन ही रहते हैं. साथ ही फोन करना महंगा पड़ सकता है, लेकिन चैटिंग लगभग मुफ्त में की जा सकती है.
जर्मनी में 2008 में 60 से अधिक उम्र वाले लोगों में केवल 2 प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे. 2010 में यह संख्या बढ़ कर लगभग 25 प्रतिशत हो गई और 2011 में करीब 35 प्रतिशत. इन में से दस प्रतिशत लोग सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल भी करते हैं. एक शोध के अनुसार इंटरनेट में और किसी एज ग्रुप में इतनी तेजी से बढ़त नहीं देखी गई है.
खास तरह की वेबसाइट्स
बूढ़े लोगों के लिए कुछ खास तरह की वेबसाइट्स भी शुरू हुई, लेकिन वे लोगों को अपनी ओर खींच नहीं पाईं. herbstzeit.de और platinnetz.de जैसी वेबसाइट्स पर ये लोग अपनी ही उम्र के लोगों को ढूंढ कर उनसे दोस्ती कर सकते थे. पर बुजुर्गों की इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखी. लेकिन stayfriends.de ने उन्हें अपनी ओर खूब आकर्षित किया. इस सोशल नेट्वर्किंग साइट पर लोग अपने बचपन के दोस्तों को ढूंढ सकते हैं. स्कूल का नाम और साल देने पर उन्हें अपने पुराने साथियों की जानकारी मिल सकती है. यह साइट साल 2002 से चल रही है. इसे बनाने वाले मिशेल लिनडेनबर्ग साइट की कामयाबी का राज बताते हैं, "हम अपने यूजर से 'तुम' नहीं, बल्कि 'आप' कर के बात करते हैं और डेटा प्राइवेसी का भी हम पूरा ध्यान रखते हैं.
मिले बिछड़े बच्चे
क्लाउस श्मॉल्त्स जैसे लोगों के लिए ऐसी साइट्स एक वरदान जैसी हैं. सोशल नेट्वर्किंग के जरिए उनकी मुलाकात अपनी दो बिछड़ी बेटियों से हुई. उनकी ये दोनों बेटियां विवाहेत्तर संबंध से हुईं. परिवार के डर से उन्होंने इनसे संबंध तोड़ दिया. लेकिन जब उन्होंने wer-kennt-wen.de पर अपनी प्रोफाइल बनाई तो उनकी बेटियों ने उन्हें ढूंढ ही लिया. उनकी पत्नी बारबरा उन्हें माफ कर चुकी हैं और उन्हें भी इस बात की खुशी है कि आखिरकार बेटियां अपने पिता से मिल पाईं. श्मॉल्त्स के लिए जैसे उनका सपना सच हो गया हो, "मेरी हमेशा यह ख्वाहिश थी कि मैं अपने सभी बच्चों को क्रिसमस के दिन एक साथ देख सकूं."
रिपोर्ट: आरने लिष्टेनबेर्ग/ ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा