बंदरों के जीन से एड्स का टीका
५ मई २०११शोधकर्ताओं ने ह्रेसस बंदरों के एक बड़े दल को टीका लगाया और फिर उनमें एसआईवी वायरस डाला. दो हफ्तों तक ऐसा किया गया. आधे बंदरों को संक्रमण हुआ और आधों को नहीं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन आधे बंदरों को संक्रमण नहीं हुआ उनमें खास जीन पाया जाता है. इस जीन का नाम टीआरआईएम 5 रखा गया है.
शोधकर्ताओं में इससे उम्मीद जगी है कि ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस, एचआईवी से बचने के लिए टीका बनाने में मदद मिल सकेगी. एचआईवी वायरस से ही एड्स की बीमारी होती है. हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर और मुख्य शोधकर्ता नोर्मन लेट्विन कहते हैं, "हमें इस तथ्य पर बहुत आश्चर्य है. लेकिन यह बताता है कि मनुष्यों में भी ऐसा जीन हो सकता है. यह कुछ में नहीं होता लेकिन ऐसा जीन बीमारी से बचाने में सहायक है. इसलिए हमें सिर्फ टीके से डाली गई एंटीबॉडीज पर ही नजर नहीं रखनी है लेकिन उन लोगों के जीन्स पर भी ध्यान देना है जिन्हें यह टीका लगाया गया. क्योंकि बंदरों से मिला यह डाटा संकेत देता है कि दोनों ही बीमारी से बचने में सहायक हो सकते हैं."
साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन नाम के जरनल में यह शोध प्रकाशित किया गया है. 2009 में थाईलैंड में एचआईवी से बचने के लिए एक टीके का प्रयोग किया गया था जिससे 31.2 फीसदी खतरा कम हो गया था. लेकिन तीन साल बाद इस टीके का प्रभाव कम हो गया. शोधकर्ता कहते हैं,"थाई वैक्सीन ट्रायल से हमने दिखाया कि उपलब्ध तकनीकों के साथ एचआईवी संक्रमण को ठीकठाक तरीके से रोका जा सकता है. अगर हम उम्मीद जगाने वाले इस डेटा को बंदरों में पाए गए डाटा से जोड़ दें तो हो सकता है कि टीकाकरण से अच्छी एंटीबॉडी प्रतिक्रिया मिले. हो सकता है कि अगली पीढ़ी में हमें 50-60 फीसदी सुरक्षा शायद लंबे समय तक मिल सके."
एड्स रोग का अभी तक कोई टीका नहीं बन सका है. 1981 से अब तक ढाई करोड़ लोगों की जान इससे जा चुकी है और दुनिया भर में करीब 3 करोड़ 30 लाख लोग एड्स से संक्रमित हैं.
रिपोर्टः एएफपी/आभा एम
संपादनः एन रंजन