बादाम खाने से नहीं टैक्सी चलाने से बढ़ता है दिमाग
१२ दिसम्बर २०११डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए परिक्षा देनी पड़ती है और हर कोई इसे पास भी नहीं कर पाता, लेकिन टैक्सी चलाने के लिए? पश्चिमी देशों में अक्सर टैक्सी ड्राइवर बनने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है. और खास तौर से लंदन में टैक्सी ड्राइवर बनने का मतलब केवल ट्रैफिक के नियमों को याद करना ही नहीं होता, बल्कि हर गली-सड़क का नाम भी याद करना होता है. वैज्ञानिकों की मानें तो ये ड्राइवर अपने दिमाग का आम इंसान से ज्यादा प्रयोग करते हैं.
दरअसल इन ड्राइवरों को सैलानियों को ध्यान में रखते हुए सभी पर्यटनस्थलों और साथ ही दस किलोमीटर के घेरे में करीब 25 हजार सड़कों के नाम याद करने होते हैं. लंदन के ड्राइवरों ने इसे 'नॉलेज' यानी ज्ञान का नाम दिया है. इस ज्ञान को हासिल करने में चार साल का वक्त लग जाता है और आधे ही लोग इसे ठीक तरह से ग्रहण कर पाते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवर केवल लाइसेन्स ही प्राप्त नहीं करते हैं, बल्कि वे अपना दिमाग भी बाकियों की तुलना में ज्यादा इस्तेमाल करते हैं.
बढ़ता है ग्रे मैटर
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के न्यूरोसाइंटिस्ट्स के एक दल ने पाया कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवरों के मस्तिष्क में 'ग्रे मैटर' अन्य ड्राइवरों की तुलना में ज्यादा था. रिपोर्ट लिखने वाली एलेनोर मेगवायर ने डॉयचे वेले को बताया, "हम जानते हैं कि मस्तिष्क का वह हिस्सा जो रास्ते याद करने में हमारी मदद करता है उसे हिपोकैम्पस कहा जाता है. सिर्फ वे ड्राइवर जो टेस्ट पास कर सके - जो 'नॉलेज' हासिल कर सके - सिर्फ उन्हीं के मस्तिष्क में हमें कुछ बदलाव दिखे और ये बदलाव खास तौर से हिपोकैम्पस में देखे गए."
एलेनोर मेगवायर की टीम ने 79 ड्राइवरों पर प्रयोग किए. इन में से केवल 39 ही टेस्ट पास कर सके. इसके अलावा अन्य 31 लोगों को भी प्रयोग में शामिल किया गया. सभी 110 लोग एक ही आयु वर्ग के और एक जैसे बौद्धिक स्तर के थे. इन सब के मस्तिष्क का एमआरआई किया गया. परिणाम एक जैसे ही दिखे. लेकिन फिर तीन चार साल बाद जब दोबारा स्कैन किया गया तब परिणाम अलग दिखे. जिन लोगों ने टेस्ट पास किया था उनके मस्तिष्क में हिपोकैम्पस का आकार बढ़ गया था.
रिपोर्ट: अमेंडा प्राइस/ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा