बोझ कम विश्वास पक्काः विजेंदर सिंह
१४ अप्रैल २०१२शनिवार को ओलंपिक का टिकट कटा कर देश लौटे विजेंदर ने कहा कि थोड़ा दबाव कम होने की उन्हें खुशी है. बोझ खत्म हो गया है और विश्वास लौट आया है. एशियन क्वालिफिकेशन मैचों में कांस्य पदक जीत कर विजेंदर ने लंदन का मौका जीत लिया.
यह पूछने पर कि सेमीफाइनल में हारने के बाद क्या उन्हें लंदन की उम्मीद कम होती नजर आई उन्होंने कहा, "देखिए मेरा लक्ष्य लंदन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना था लेकिन मैंने अपने हर मुक्के पर 100 फीसदी दिया है. मुझे नहीं लगता कि मेरा प्रदर्शन खराब था. मैंने उस मुक्केबाज को हराया जिसने बाद में सोना जीता. वह मेरा दिन नहीं था. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूंगा."
ओलंपिक में जीत की उम्मीदों के साथ विजेंदर पर सात सदस्यों वाली टीम के वरिष्ठ सदस्य होने की जिम्मेदारी भी है. "बॉक्सिंग वैसे तो अकेले का खेल है लेकिन हम अपने अनुभवों को साझा करते हैं. उन्हें मेरी तरफ से जो सहयोग चाहिए होगा मैं दूंगा. मैं सीनियर खिलाड़ी की भूमिका निभाने और दबाव में डूबने के लिए तैयार हूं."
कितने ओलंपिक मेडल भारत जीत सकता है, इस पर विजेंदर ने कहा कि कम से दो की उम्मीद रखना गलत नहीं होगा. "हम दो की कोशिश करेंगे". लेकिन कोच गुरबख्श सिंह ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा, "यह मेडल्स के बारे में बोल रहे हैं, मैंने कुछ नहीं कहा है."
इस पर विजेंदर ने हंस कर जवाब दिया, "अगर हम मेडल के बारे में सोचेंगे ही नहीं तो वो हमें मिलेंगे कैसे. हमें विश्वास रखना ही होगा कि हम ओलंपिक पदक जीतेंगे. लेकिन हमें वास्तविकता पर ध्यान देना होगा. धीमा और सधा हुआ ही रेस जीतता है. पिछली बार हमें एक पदक मिला. तो हमें धीरे धीरे आगे जाना होगा. शायद अगले ओलंपिक में हमारा लक्ष्य चार या पांच पदक जीतने का हो. भारतीय मुक्केबाजी की टीम फिलहाल एकदम बढ़िया है. टीम के किशोर खिलाड़ी दिखाते हैं कि भारत में मुक्केबाजी का भविष्य उज्जवल है. वे निश्चित ही अच्छा करेंगे. मैं भी दबाव झेलने और वरिष्ठ खिलाड़ी होने की जिम्मेदारी पूरी करूंगा."
एएम/आईबी (पीटीआई)