भारतीय एनजीओः नोटों से जेब भरो ऑर्गनाइजेशन
१० मई २०११इंजीनियर दीपक शर्मा आनंद जन सेवा नाम के संगठन को लगातार पैसे देते रहे. 2009 में स्थापित किया गया संगठन नई दिल्ली में गरीब और बुजुर्गों की मदद के लिए बनाया गया. शर्मा कहते हैं, "संगठन के प्रमुख आकर गरीबों में खाना बांटते थे. वे निचले वर्गों के कुछ परिवारों को शादियों के आयोजन के लिए पैसे देते थे और बुजुर्गों के लिए तीर्थ यात्राओं का आयोजन करते थे.. वे इतने धार्मिक और विश्वसनीय इंसान थे, सारे पड़ोसी उनका समर्थन करते थे." कुछ दिनों बाद एनजीओ ने स्थानीय लोगों से निवेश के लिए पैसे लेना शुरू किया. निवेशकों से कहा गया कि उन्हें उनकी जमा की गई राशि का दुगुना पैसा वापस मिलेगा. शर्मा के परिवार के एक सदस्य ने 1,000 रुपये दिए और उन्हें वापस 2,000 मिले. शर्मा ने खुद 10,000 निवेश किए और उन्हें 20,000 वापस मिले. शर्मा कहते हैं, "इस वक्त सोचने में अजीब लगता है कि एक एनजीओ ऐसा काम कर रहा था. लेकिन यह काफी अच्छा था और हमें हमारा पैसा समय पर मिल जाता." शर्मा ने फिर स्कीम में एक लाख रुपये डालने का फैसला किया. इसके कुछ ही हफ्तों बाद आनंद जन सेवा पूरी तरह ठप हो गया. कई निवेशक संगठन के कार्यालय पहुंचे जहां उन्होंने तोड़ फोड़ मचाई और पुलिस से भी भिड़े. शर्मा ने अपने पैसों की वापसी के लिए कोर्ट में मामला दर्ज किया है. संगठन के प्रमुख के खिलाफ अब अरबों रुपयों के घोटाले के आरोप हैं. वे अब पुलिस हिरासत में हैं.
चोरों की तरह समाज सेवा?
पिछले साल राष्ट्रीय लेखापरीक्षण प्राधिकरण ने रिपोर्ट जारी किया जिसके मुताबिक पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण पर काम कर रहे एनजीओ को जितना पैसा दिया है, उसमें से केवल 3.5 संगठनों ने अपना काम पूरा किया है. 2003 से लेकर 2008 तक मंत्रालय ने 30 करोड़ से ज्यादा रुपये इन संगठनों को दिए. इसमें से केवल एक करोड़ 17 लाख रुपयों का हिसाब किताब पूरा है. रिपोर्ट के मुताबिक लेखापरीक्षक बाकी एनजीओ से संपर्क करने में असफल रहे. अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल चैरिटीज एड फाउंडेशन के मुताबिक भारत में 12 लाख एनजीओ हैं, जिनमें 27 लाख लोग काम करते हैं. इस 'उद्योग' में हर साल 200 अरब से ज्यादा रुपये कमाए जाते हैं. क्रेडिबिलिटी अलायंस के रॉबर्ट देक्वाद्रोस का कहना है कि भारत में एनजीओ के लिए पंजीकरण के मानक बहुत पुराने हैं. क्रेडिबिलिटी एनजीओ के साथ मिल कर पैसों की जिम्मेदारी पर काम करती है. अलायंस के शुरू होने के बाद 400 संगठनों ने इसमें सदस्यता ली. देक्वाद्रोस कहते हैं, "जब हमने अच्छे प्रशासन (गुड गवर्नेंस) और वित्तीय जिम्मेदारी के मानकों के बारे में बात कही तो 250 संगठनों ने अपने नाम वापस ले लिए...कई संगठन चोरों की तरह काम करते हैं."
समाज सेवा से बड़ी रिश्तेदारी
एक और परेशानी यह भी है कि कई संगठन सरकार से लोगों तक पैसा पहुंचाने की जिम्मेदारी लेते हैं. कर्मयोग डॉट ऑर्ग चला रहे विनय सोमानी का कहना है, "कई बार सरकारी अधिकारी अपने रिश्तेदारों से एनजीओ खुलवाते हैं ताकि उन्हें भी कुछ पैसे मिल जाएं." सोमानी कहते हैं कि सरकार को एनजीओ के जरिए अपने काम कराना बंद करना चाहिए. इस बीच पर्यावरण मंत्रालय ने गैर सरकारी संगठनों को पैसे देने पर रोक लगाई है. मंत्रालय में काम कर रहे एआर चड्ढा कहते हैं कि वे पैसों के दुरुपयोग को लेकर शिकायतों की जांच कर रहे हैं. लेकिन दीपक शर्मा जैसे लोग आसानी से इन स्कीमों में फंस जाते हैं. उनका कहना है, एक लाख रुपये तीन महीनों की तनख्वाह थी और अब शायद ही उन्हें यह पैसे मिलेंगे.
रिपोर्टः एएफपी/एमजी
संपादनः ए जमाल