मंगल पर जीवन नहीं
१२ जून २०१२वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल पर मिलने वाली मीथेन गैस ग्रह से टकराए उल्कापिंडो के कारण पैदा हुई है और जीवन से नहीं आई है. जर्मनी के माइंज शहर के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है. नीदरलैंड्स और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने जर्मन शोधकर्ताओं के साथ मिलकर यह प्रयोग किया.
मंगल के वातावरण पर नौ साल पहले मीथेन यानी CH4 पाई गई और तब सोचा गया कि यह धरती के बाहर जीवन का संकेत हो सकता है.
इस नए प्रयोग के नतीजे नेचर मैगजीन में छापे गए हैं. टीम ने लिखा है कि उन्होंने उल्कापिंड के टुकड़ों पर मार्स की सतह जैसी स्थितियां पैदा करके पराबैंगनी प्रकाश डाला और तब इन टुकड़ों से गैस के अणु बने. टीम के सदस्य फ्रांक केपलर ने कहा, "मीथेन मंगल की सतह पर उल्कापिंडो के छोटे छोटे कणों के कारण बनती है. इसके लिए ऊर्जा ताकतवर पराबैंगनी रेडिएशन से मिलती है."
कहां से आई मीथेन
काफी समय से मंगल पर मीथेन के बारे में अटकलें लगाई जा रही थी. इसमें से एक विचार ऐसा था कि मंगल पर कुछ ऐसे सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं जो मीथेन बनाते हैं और इसलिए वहां जीवन की संभावना भी व्यक्त की गई थी.
ज्वालामुखी को भी इस गैस के बनने का एक कारण माना जा रहा था. बताया जाता है कि मंगल पर हर साल 200 से 300 टन मीथेन गैस बनती है.
माइंज के साथ उट्रेष्ट और एडिनबरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मर्किसन धूमकेतू के टुकड़ों पर अल्ट्रावॉयलेट लाइट डाल कर यह साबित किया कि उल्कापिंड के पत्थरों से कार्बन टूट कर मीथेन बनता है, "धरती के विपरीत मंगल पर ओजोन की परत नहीं है. इसके कारण हमारे यहां पराबैंगनी विकीरण नहीं पहुंचते. जबकि मार्स का वायुमंडल इतना विरल है. इससे टकराने वाले उल्कापिंड जलते नहीं हैं."
1969 में ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में एक उल्कापिंड मर्किसन आ गिरा था. इसमें काफी कार्बन है. इसकी संरचना कुछ वैसी ही है जैसी कि मंगल पर गिरे हुए उल्कापिंड की होती है.
4.6 अरब साल पहले के इस उल्कापिंड के टुकड़े को जैसे की पराबैंगनी विकीरण में लाया गया इससे मीथेन निकलने लगी. केपलर ने रिपोर्ट में यह भी कहा कि मंगल पर मीथेन के बनने के और भी कारण हो सकते हैं.
एएम/आईबी (एएफपी)