1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आईटी, भारत, चीन, एशिया

४ जनवरी २०१२

60 के दशक में आईटी की दुनिया में धीरे से रखा भारत का कदम बीते पचास सालों में बड़ी छलांग बन गया और जब विकसित देश मंदी की आंच से कराह रहे हैं तब भी यह कुलांचे भरता मुस्कुरा रहा है.

https://p.dw.com/p/13dYz
तस्वीर: dpa

तो क्या इस मुस्कुराहट के पीछे सब कुछ ठीक है यही जानने के लिए डॉयचे वेले के अरुण चौधरी ने बात की माइक्रोसॉफ्ट के भारत प्रमुख भाष्कर प्रमाणिक से जो बीते 40 सालों में भारतीय आईटी जगत के अंदर बाहर की हर हलचल से जुड़े रहे हैं.

डॉयचे वेलेः जिन 40 सालों से आपका भारत के आईटी उद्योग से नाता रहा है उनकी तरफ पीछे मुड़ कर देखें तो भारत में आईटी सेक्टर के विकास के प्रमुख दौर कौन से हैं?

भाष्कर प्रमाणिक: वास्तव में देखा जाए तो तीन प्रमुख पड़ाव हैं, सबसे पहले 70 के दशक का मध्य दौर जब आईबीएम यहां से चला गया, उसके बाद 1975 से लेकर 1990 तक का दौर जब स्थानीय उद्योग विकसित हुआ और फिर उसके बाद 90 में आर्थिक सुधारों के लागू होने की 20वीं सदी जिसमें भारत आईटी में दुनिया भर के लिए बाजार बन गया जिसमें भारतीय कंपनियों और भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ ही दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अस्तित्व में आईं.

इस वक्त भारत के आईटी उद्योग की क्या समस्या है?

शुरुआत सॉफ्टवेयर और सेवाओं से करते हैं जिसके लिए भारत जाना जाता है. 88 अरब डॉलर के भारतीय आईटी उद्योग में करीब 60 अरब डॉलर कारोबार विदेशों के लिए है और बाकी करीब 28 अरब डॉलर का कारोबार स्थानीय है. अब अगर निर्यात बाजार की बात करें तो मेरे विचार से भारत ने दो क्षेत्रों में काफी प्रगति की है उनमें पहला है बीपीओ उद्योग और दूसरा कंप्यूटरों का उपयोग, विकास और रखरखाव उद्योग. इनके अलावा आउटसोर्सिंग के मामले में भी तेजी आ रही है. इस तरह से भारतीय कंपनियों ने दुनिया भर के बाजारों में सेंध लगाई है. पहले अमेरिका फिर पश्चिमी यूरोप और अब एशिया प्रशांत क्षेत्र.

मेरे ख्याल से पिछले 20 सालों में जो सफल मॉडल रहा है उसे में लीनियर मॉडल कहूंगा जिसमें मूल रूप से सॉफ्टवेयरों का विकास इस लिहाज से किया गया कि आपके पास कितने लोग हैं. जिसमें बहुत कुछ कीमतों में फर्क पर आधारित था. अब यह बदल गया है. अब प्रक्रिया ज्यादा कुशल हो गई है और इस लिए विदेश के साथ ही देश के भीतर भी काम हो रहा है. कंपनियों ने इस पर मजबूत पकड़ बना ली है. सेवाओं के स्तर में काफी सुधार हुआ है. अब विशुद्ध रूप से केवल एप्लिकेशन, विकास और रखरखाव की बात नहीं हो रही. कई बार तो इसमें पूरी तरह से आउटसोर्सिंग होती है. कई मामलों में कई दूसरे क्षेत्रों में भी सलाह दी जा रही है और उसके बहुत अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं. इसलिए मैं कहूंगा कि समय के साथ इस उद्योग ने काफी प्रगति की है और अपना महत्व बढा़या है. यह प्रक्रिया जारी है.

Flash-Galerie Indien Billig Tablet Computer
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दूसरी बात जो मुझे महसूस होती है वो यह है कि एक प्रॉडक्ट के नजरिए से भारतीय आईटी उद्योग काफी कमजोर है. सच तो यह है कि हमने ओरैकल, माइक्रोसॉफ्ट या एसएपी के जैसी एक भी कंपनी नहीं बनाई. हां कुछ मामलों में इंफोसिस जैसी कंपनी बहुत सफल रही है जैसे कि फिनैकल बैंकिंग सिस्टम. इसी तरह की कुछ कंपनियों ने ईआरपी (इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) जैसे पैकेज बनाए हैं. टैली जैसी कंपनियां भी खूब सफल हो रही है जिन्होंने फायनेंशियल अकाउंटिंग के लिए पैकेज तैयार किए जो छोटे और मझले स्तर के उद्योगों के लिए हैं. पर मोटे तौर पर इस तरह की कंपनियों और उनके बनाए सामानों की संख्या बहुत कम है. यही वो क्षेत्र है जिस पर अब आईटी उद्योग की नजर है जहां इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि ज्यादा सामान बनाया जाए और बड़े बाजार को सेवा दी जाए.

दुनिया भर में जो आर्थिक मंदी रही है उसने भारतीय आईटी उद्योग पर क्या असर डाला है?

आईटी उद्योग के नजरिए से देखें तो अब तक जो कुछ भी मैंने अपने सहयोगियों से सुना है उससे तो यही लगता है कि कोई खास असर नहीं हुआ. दरअसल पिछली तिमाही के जो कुछ भी नतीजे रहे हैं वो चाहे, इन्फोसिस के हों, कॉग्निजेंट के या फिर टीसीएस के मेरे ख्याल से विकास की दर काफी अच्छी रही है. इसके साथ ही एक सच्चाई यह भी है कि इस समय एक्सचेंज की दर काफी नीचे आ गई है इससे निर्यात करने वाली कंपनियों को फायदा हो रहा है. अब तक तो सामान्य रूप से यही अहसास है कि कोई खास असर नहीं होगा.

Flash-Galerie Callcenter Innenansicht
तस्वीर: picture alliance/dpa

एशियाई नजरिए से देखें तो आईटी उद्योग में भारत अपने प्रतिद्वंदियों के सामने कहां टिकता है?

आईटी उद्योग को साफ साफ पता है कि यह केवल कीमतों में अंतर के आधार पर विकास नहीं कर सकता क्योंकि हर वक्त ऐसी स्थिति रहेगी जब कोई दूसरा देश ऐसा होगा जहां कीमतें कम होंगी. ऐसे में महत्वपूर्ण कामों में दक्षता हासिल करने पर ही ध्यान देना होगा. अगर आप फिलीपींस के बारे में सोचें जहां फिलहाल सबसे बड़ा बीपीओ होने का दावा किया जा रहा है पर वहां भी कॉल सेंटर के नजरिए से और बहुत कुछ है. भारत के बीपीओ वास्तव में बहुत आगे निकल आए हैं और पूरी आउटसोर्सिंग प्रक्रिया कर रहे हैं.

मेरा ख्याल है कि भारत का आईटी उद्योग अब बहुत आगे बढ़ गया है जबकि फिलीपींस जैसे देशों में सिर्फ कम खर्च वाले काम हो रहे हैं. चीन का मामला पूरी तरह से अलग है. चीन के पास इतना बड़ा घरेलू बाजार है और इसके साथ ही उसने अपने बाजारों को बचा कर भी रखा है. चीनी कंपनियों को अपने दरवाजे पर ही बाजार मिल जाता है. इसके अलावा चीन में बहुत सारा काम जापान, एशिया प्रशांत और कोरिया के लिए भी होता है. माइक्रोसॉफ्ट जैसी दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बारे में सोचें तो हमारे पास शोध और विकास के लिए बहुत बड़ा केंद्र है.

रिपोर्टः अरुण चौधरी/एन रंजन

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी