मकड़ी के जाल से बनी 'बुलेट प्रूफ' त्वचा
३ सितम्बर २०११स्पाइडर सिल्क और मानव त्वचा से बनी खास त्वचा पर नीदरलैंड्स की फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में कम गति से राइफल से गोली चलाई गई. प्रयोग में पता चला कि बुलेट प्रूफ त्वचा धीमी गति वाली गोली को रोकने में कामयाब रही. एम्स्टर्डम के दक्षिण-पश्चिम शहर लाइडेन के एक संग्रहालय में इस बहुत ही असामान्य विज्ञान परियोजना का प्रदर्शन किया गया है.
वैज्ञानिकों ने मानव त्वचा के एक टुकड़े को मकड़ी के जाल के साथ आनुवंशिक रूप से संयोजन करके तैयार किया है. यह अद्वितीय संयोजन त्वचा को एक .22 कैलिबर राइफल की गोली के खिलाफ बुलेट प्रूफ बना देता है.
अब जैकेट नहीं त्वचा ही बुलेट प्रूफ
यह खास त्वचा टाइप 1 मानक वाली बुलेट प्रूफ जैकेट की तरह काम करती है. इसका मतलब यह है कि खास त्वचा 329 मीटर प्रति सेंकेंड की रफ्तार से चलने वाली 2.6 ग्राम की गोली को रोकने में सक्षम है. इस रोचक उपलब्धि की खोज डच वैज्ञानिक यालिला एसाइदी ने की है.
उनके मुताबिक वह आण्विक जीव विज्ञान के अमेरिकी प्रोफेसर रैंडी लुइस से प्रेरित हैं. रैंडी लुइस ने बकरी के जीन संवर्धित दूध से हल्के फाइबर का निर्माण किया है, जो बुलेट प्रूफ की तरह काम कर सकता है.
एसाइदी ने लुइस से संपर्क किया और नीदरलैंड्स में अपने साथी वैज्ञानिकों के साथ एक ऐसी मानव त्वचा बनाई जो कम गति से चलने वाली गोली को रोकने में सक्षम है. एसाइदी की इस खोज को फिलहाल लाइडेन के एक संग्रहालय में रखा गया है. यह प्रदर्शनी जनवरी 2012 तक चलेगी. डॉयचे वेले ने कलाकार और वैज्ञानिक यालिला एसाइदी से इस खास खोज पर बातचीत की.
डॉयचे वेले: आपने सफलतापूर्वक मानव त्वचा के साथ स्पाइडर सिल्क को मिलाया है?
यालिला एसाइदी: हां, यह आपकी कल्पना को तुरंत जकड़ लेता है. मैंने सोचा इस नए आविष्कार का जनता, दर्शकों के लिए क्या मतलब होगा? और क्यों न इसका इस्तेमाल सीधे मनुष्यों पर हो? इस दुनिया में हम अपने आपको सुरक्षित करने के लिए कितना आगे जाना चाहते हैं?
डॉयचे वेले: आपने मकड़ी के जाल के बारे में कैसे सोचा और इसका प्रयोग गोली के साथ क्यों किया?
यालिला एसाइदी: मैंने जब पिछले साल जीनोमिक्स का अवॉर्ड जीता तो उसमें मुझे इनामी राशि के तौर पर 25,000 यूरो भी मिले, जिसके बाद मैं इस योजना पर काम शुरू कर पाई. मैंने अमेरिका में रैंडी लुइस से संपर्क स्थापित किया और उनको मानव त्वचा को बुलेट प्रूफ बनाने की योजना के बारे में बताया. लुइस को मेरा आइडिया पसंद आया और वे भी इस योजना में शामिल हो गए. बाद में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में तैयार मकड़ी के जाल के सैंपल भेजे. इसका निर्माण बड़ी मात्रा में नहीं होता है.
फिर मैंने और साथियों की तलाश शुरू की जैसे लाइडेन का त्वचा विज्ञान विभाग जो मानव त्वचा का निर्माण करती है. इसके अलावा नीदरलैंड्स फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट को भी साथ मिलाया. हम सबने साथ मिलकर काम किया. रैंडी ने स्पाइडर सिल्क भेजा, त्वचा विज्ञान विभाग ने मकड़ी के जाल को मानव त्वचा के ऊपरी भाग और अंदरूनी भाग में समायोजित किया. इसके बाद नीदरलैंड्स की फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट में हमने इस पर गोली चलाकर परीक्षण किया. गोली चलाने और टक्कर की स्थिति की फोटोग्राफी भी की गई.
डॉयचे वेले: नीदरलैंड्स की फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट ने असली गोली के साथ परीक्षण किया. आखिर इसका क्या मकसद था?
यालिला एसाइदी: यह कोई पागलपन नहीं था. हमें यह साबित करना था कि यह वाकई में काम करता है. लेकिन मानव त्वचा की कोशिकाओं को मकड़ी की कोशिकाओं के साथ मिलाया जाए तो क्या यह काम करेगा. धीमी गति से चलाई गोली इस पर काम कर गई.
डॉयचे वेले: क्या त्वचा और मकड़ी के जाल को साथ बुना जाता है?
यालिला एसाइदी: हां, यह एक सैंडविच की तरह है. डर्मिस और एपिडर्मिस के बीच स्पाइडर सिल्क को रखा जाता है. स्पाइडर सिल्क प्राकृतिक तरीके से गल जाता है.
डॉयचे वेले: आप इस क्षेत्र में एक कलाकार हैं. क्या अपने आपको कलाकार मानती हैं या फिर वैज्ञानिक या फिर दोनों ही ?
यालिला एसाइदी: मुझे नहीं लगता कि मैं अपने आपको सिर्फ कलाकार या सिर्फ वैज्ञानिक मानती हूं. मैं अंतर्विषयक में विश्वास रखती हूं.
इंटरव्यू: साइरस फारीवर/आमिर अंसारी
संपादन: महेश झा