मार्च में हथियारों की संधि पर वार्ता
२५ दिसम्बर २०१२इस साल जुलाई में 70 अरब डॉलर के वैश्विक कारोबार के नियमन के लिए नई संधि पर बातचीत अमेरिका की वजह से टूट गई थी. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को आशंका थी कि चुनाव प्रचार के दौरान रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी उन पर हमला कर सकते हैं. हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने इससे इनकार किया लेकिन ओबामा प्रशासन नवंबर हुए चुनावों से पहले परंपरागत हथियारों पर यूएन संधि का समर्थन करता नहीं दिखना चाहता था.
हाल में स्कूल में हुए हत्याकांड पर प्रतिक्रिया के कारण आलोचना के केंद्र में आया नेशनल राइफल एसोसिएशन (एनआरए) हथियारों के व्यापार पर संधि का विरोध करता है. संगठन ओबामा प्रशासन पर संधि ठुकराने के लिए दबाव डाला. लेकिन पिछले महीने ओबामा की जीत के बाद अमेरिकी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की निरस्त्रीकरण समिति के दूसरे सदस्यों के साथ संधि को अंतिम रूप देने पर बातचीत फिर शुरू करने का समर्थन किया है. सोमवार को 193 देशों वाली महासभा ने बातचीत का अंतिम दौर शुरू करने के प्रस्ताव को पास कर दिया.
प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने वाले देशों अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कोस्टा रिका, फिनलैंड, जापान, केन्या और ब्रिटेन के विदेश मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर बातचीत जारी रखने के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, "यह इस बात का साफ संकेत था कि यूएन सदस्यों का बड़ा बहुमत एक मजबूत, संतुलित और प्रभावी संधि चाहता है जो परंपरागत हथियारों के अंतरराष्ट्रीय ट्रांसफर के लिए उच्चतम संभव साझा वैश्विक मानक तैयार करे."
संयुक्त राष्ट्र के 133 सदस्य देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि 17 देशों ने मतदान नहीं किया. कुछ देश मतदान में आए ही नहीं. यूएन अधिकारियों के अनुसार ऐसा क्रिसमस की छुट्टियों के कारण हुआ. वोट के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन राजनयिकों का कहना है कि अमेरिका ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जैसा उसने पिछले महीने यूएन निरस्त्रीकरण समिति में किया था. पिछले महीने के मतदान में भाग नहीं लेने वालों में रूस, सउदी अरब, सीरिया, सूडान, बेलारूस, क्यूबा और ईरान शामिल थे.
हथियारों की बिक्री करने वाले छह प्रमुख देशों में रूस अकेला था जिसने पिछले महीने निरस्त्रीकरण समिति में हुए मतदान में भाग नहीं लिया था. ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के अलावा चीन और अमेरिका ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया था जिसे महासभा ने सोमवार को भारी बहुमत से पास किया.
हथियारों के कारोबार पर संधि की बातचीत हो रही है, इसकी प्रमुख वजह अमेरिका है. वह हथियारों का दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी है. दुनिया भर में 40 फीसदी हथियार वहीं से जाता है. राष्ट्रपति बनने के बाद बराक ओबामा ने 2009 में अमेरिकी नीति बदल कर समझौते का समर्थन करने का फैसला किया. ओबामा प्रशासन ने विरोधियों को यह समझाने की कोशिश की है कि इस समझौते का अमेरिका के अंदर हथियार रखने या उसकी बिक्री पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि यह सिर्फ निर्यात के लिए लागू होगा.
लेकिन एनआरए के कार्यकारी उपाध्यक्ष वायन लापियेर ने जुलाई में संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों से कहा कि उनका संगठन समझौते के खिलाफ है. एनआरए के लॉबी विंग की वेबसाइट पर कहा गया है, "नागरिकों द्वारा हथियारों की मिल्कियत को शामिल करने वाले किसी समझौते का एनआरए पूरी ताकत से विरोध करेगा." लापियेर के बयान का अमेरिका के बहुमत सीनेटरों और 130 कांग्रेस सदस्यों ने समर्थन किया और राष्ट्रपति ओबामा से कहा कि वे समझौते का विरोध करते हैं. इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि हथियार लॉबी ने अपना रुख बदला है.
इसी महीने न्यूटाउन में हुई गोलीबारी में 20 बच्चों की मौत के बाद साफ नहीं है कि क्या एनआरए को अब भी अमेरिकी सांसदों के बीच उतना समर्थन मिलेगा. समझौते का लक्ष्य परंपरागत हथियारों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियंत्रण है. इसमें युद्धपोत, टैंक और मशीनगन जैसे हथियार शामिल हैं. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि वे ऐसी संधि चाहते हैं जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हथियारों के अवैध कारोबार को रोके लेकिन वैध कारोबार के देशों के अधिकार की रक्षा करे. समझौते पर अंतिम फैसला आम सहमति से लिया जाएगा, इसलिए कोई भी देश उसे वीटो कर सकता है. दूसरी ओर मार्च में होने वाली संधि का राष्ट्रीय संसदों द्वारा अनुमोदन भी जरूरी होगा.
एमजे/ओएसजे (रॉयटर्स)