माली में अफ्रीकी सेना तैनात होगी
२१ दिसम्बर २०१२गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आम सहमति से यह प्रस्ताव पारित हुआ. अफ्रीकी नेतृत्व वाली इस फौज का नाम एएफआईएसएमए रखा गया है और इसका कार्यकाल एक साल तय किया गया है. इस फौज को "सभी जरूरी उपाय" के लिए अधिकार दिए गए हैं जिससे माली की सरकार अपने उत्तरी इलाकों को आतंकवादियों, चरमपंथियों और हथियारबंद गुटों के कब्जे से निकाल कर अपने नियंत्रण में ले सके. "सभी जरूरी उपाय" एक कूटनीतिक कोड है जो सेना के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
बल प्रयोग के अधिकार के साथ ही इस प्रस्ताव में इस बात पर भी खासा जोर है कि समस्या के लिए राजनीतिक हल ढूंढने की कोशिश होनी चाहिए. फ्रांस के तैयार प्रस्ताव ने यूरोपीय संघ के देशों और संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सदस्य देशों को भी अधिकार दिया है कि वे माली की सशस्त्र सेना को प्रशिक्षण और सहयोग दे सकें.
जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने कहा कि जर्मन सेना ऐसे मिशन में सहयोग के लिए भेजी जा सकती है लेकिन वो युद्धक कार्रवाइयों में भी शामिल हों, ऐसी संभावना नहीं है. फ्रांस ने पहले ही इस योजना को सहयोग देने का वचन दिया है लेकिन उसने भी युद्धक सेना भेजने से साफ इनकार किया है.
पश्चमि अफ्रीकी देशों का आर्थिक समुदाय संयुक्त राष्ट्र पर इस बात के लिए दबाव डाल रहा है कि वह उत्तरी माली में विद्रोहियों का सामना करने के लिए 3000 सैनिकों का दस्ता भेजने की मंजूरी दे दे. इन विद्रोहियों में कुछ अल कायदा के नेटवर्क से भी जुड़े हैं.
पिछले साल मार्च में माली तब अराजकता में घिर गया जब सेना के एक कैप्टेन के नेतृत्व में सेना में विद्रोह हुआ और राष्ट्रपति को हटा दिया गया. सेना में उत्तरी इलाके पर कब्जे की कोशिशों में जुटे विद्रोहियों से निबटने के तरीकों पर नाराजगी थी. महज कुछ ही दिनों के सत्ता शून्य का इस्तेमाल कर विद्रोहियों ने देश के उत्तरी हिस्से को अपनी मुट्ठी में कर लिया.
एनआर/ (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी)