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मुश्किल चौराहे पर पाकिस्तान

१७ जनवरी २०१३

देश के अंदर हिंसा. फौज का सीमा पर भारत से तनाव. अदालत का सरकार से तनाव और कादरी की धूम. आम चुनाव से ठीक पहले पाकिस्तान ऐसी जगह खड़ा है, जहां से हर रास्ता मुश्किल नजर आता है. क्या पहली बार सरकार कार्यकाल पूरा कर पाएगी.

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तस्वीर: DW/ S. Raheem

ऊपर से तालिबान का बढ़ता प्रभाव और आर्थिक मोर्चे पर नाकामी. पाकिस्तान किधर जा रहा है. डॉयचे वेले के उर्दू विभाग के प्रमुख अल्ताफुल्लाह खान का कहना है, "यह बेहद अराजकता की स्थिति है."

पाकिस्तान की सरकार भारत के साथ सैनिक झड़पों और क्वेटा में शियाओं के कत्लेआम से जूझ ही रही थी कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. प्रधानमंत्री अशरफ पर लंबे वक्त से भ्रष्टाचार के दाग थे. फिर चुनाव से ठीक पहले फैसला क्यों आया. अल्ताफुल्लाह खान कहते हैं, "अदालत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. उसके फैसलों पर सवाल नहीं किया जा सकता. लेकिन इसकी टाइमिंग को लेकर असमंजस जरूर है."

Pakistan Ministerpräsident Raja Pervez Ashraf in Islamabad Nationalfeiertag
प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की गिरफ्तारी के हुक्म जारी हुएतस्वीर: dapd

चुनाव की सरगर्मी

पाकिस्तान में मार्च में चुनाव होने हैं. लेकिन सरकार ने अभी तक तारीखों का एलान नहीं किया है. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार इसे टालने की कोशिश करना चाहती है ताकि कोई अंतरिम व्यवस्था हो जाए. विरोधी पार्टियों की मांग है कि तारीखें तुरंत बताई जाएं. 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद कोई भी सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है. पहली बार ऐसा होता दिख रहा था लेकिन पूरा राष्ट्र अचानक चारों तरफ से दबाव में आ गया है. पर सूचना मंत्री कमर जमां कैरा दिलासा देने की कोशिश कर रहे हैं, "सभी पार्टियां चुनाव आयोग से खुश हैं और चुनाव वक्त पर ही कराए जाएंगे."

लंबे अर्से से कनाडा में रह रहे धार्मिक नेता ताहिरुल कादरी के पाकिस्तान लौटने के साथ ही वहां सियासी उठापटक शुरू हो गई है. कादरी के समर्थन में हजारों लोगों की भीड़ जमा हो रही है और रिपोर्टें हैं कि उन्हें पाकिस्तानी फौज का समर्थन हासिल है. कादरी भले ही भीड़ जुटाने में कामयाब हो रहे हों और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का विरोध कर रहे हों लेकिन उन्हें विपक्षी पार्टियों का सहयोग नहीं मिल रहा है. पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नवाज शरीफ ने साफ कर दिया है कि वह कादरी का समर्थन नहीं करेंगे, लिहाजा राजनीतिक तौर पर कादरी अलग थलग पड़ जाएंगे.

Pakistan Long March Tahir ul Qadri in Islamabad
पाकिस्तान फौज हमेशा की तरह सवालों के घेरे मेंतस्वीर: DW/ S. Raheem

सत्ता को फायदा

इन सबका फायदा अंत में सत्ताधारी पीपल्स पार्टी को ही मिलेगा क्योंकि कादरी सिर्फ विपक्ष के वोटों में ही दरार पैदा कर सकते हैं. अल्ताफुल्लाह खान का कहना है कि सियासी पार्टियां कादरी के इस पूरे आंदोलन को दबाने में सक्षम हैं, "कादरी से किसी सियासी करिश्मे की उम्मीद नहीं की जा सकती है. लेकिन उनके सामने आने से यह बात साबित हुई है कि पाकिस्तान के लोग जिंदा हैं, जागरूक हैं. वे एक बार फिर लोकतंत्र के लिए उठ खड़े होने को तैयार हैं."

आरोप यह भी लग रहे हैं कि पाकिस्तानी फौज की इस "साजिश" में अदालत का भी योगदान है और इसी वजह से प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई ऐसे वक्त में की गई है. कादरी ने मौजूदा संसद को भंग करने की अपील की है और सेना तथा अदालत के सहयोग से अंतरिम सरकार बनाने की मांग की है. उनका कहना है कि राष्ट्र में फौरन बड़े बदलावों की जरूरत है, नया चुनाव आयोग बनाया जाए और भ्रष्ट नेताओं पर पाबंदी लगाई जाए. हालांकि विरोधी पार्टियों ने भी इस मांग को ठुकरा दिया है और कादरी अकेले पड़ गए हैं. नवाज शरीफ का कहना है, "लोगों को संविधान से इतर मांग नहीं करनी चाहिए."

Pakistan Lahore Demonstration Langer Marsch
ताहिरुल कादरी के पाकिस्तान आने के बाद सियासी सरगर्मी तेज हुईतस्वीर: DW

क्या कादरी पाकिस्तानी फौज और अदालत की मिली जुली किसी साजिश का हिस्सा हैं, अल्ताफुल्ला खान इस बात से इनकार करते हैं, "पाकिस्तानी फौज हमेशा से बेहद मजबूत रही है. उसे अपनी ताकत के लिए किसी सहयोग की जरूरत नहीं. लेकिन अगर अदालत भी किसी शिकंजे में पड़ जाता है, तो फिर पाकिस्तान का भविष्य बहुत खराब है. गृह युद्ध की स्थिति भी आ सकती है."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

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