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मोटापे को भूखा मारने वाली दवा

१२ नवम्बर २०११

एक ऐसी दवा बनाई गई है कि जो मोटोपे वाली कोशिकाओं में खून की सप्लाई को रोक सकती है. मोटे बंदरों पर इसका प्रयोग किया गया तो वे पतले हो गए. अमेरिकी वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि यह दवा इन्सानों पर भी काम कर सकती है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

एडिपोटाइड नाम की इस दवा का काम करने का तरीका मोटापा घटाने के लिए अब तक बनाई गई सभी दवाइयों से अलग है. अब तक उपलब्ध दवाएं आमतौर पर भूख को कम करने का काम करती हैं और मेटाबोलिज्म को बढ़ा देती है ताकि चर्बी घटे और मोटापा कम हो.

टेक्स यूनिवर्सिटी में एंडरसन कैंसर सेंटर की डॉक्टर रेनाटा पासक्वालिनी की रिसर्च मशहूर पत्रिका साइंस में छपी है. डॉ. पासक्वालिनी बताती हैं, "इन्सानों के लिए तैयार हो जाने पर यह दवा मोटापा घटाने का ऐसा तरीका पेश करेगी जिसमें जमा हो चुकी चर्बी को बिना सर्जरी के हटाया जा सकेगा."

कैसे काम करती है एडिपोटाइड

यह दवा रक्त वाहिकाओं की सतह पर प्रोटीन्स पर चिपक जाती है. यही प्रोटीन्स मोटापे वाली कोशिकाओं को खाना देते हैं. प्रोटीन्स पर चिपकी यह दवा एक सिंथेटिक मॉलीक्यूल जारी करती है. इससे कोशिकाओं के कत्ल की कुदरती प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिससे मोटापे वाली कोशिकाएं घटने लगती हैं.

Gefrorene Erfrischung in Japans Hitze
बंदरों पर सफल रहा प्रयोगतस्वीर: AP

इस दवा का चूहों पर प्रयोग किया जा चुका है. चूहों का वजन 30 फीसदी तक कम हो गया. नया अध्ययन 15 बंदरों पर किया गया. ये बंदर उसी तरह मोटे हुए थे जैसे इन्सान होते हैं, यानी बहुत कम व्यायाम और बहुत ज्यादा खाने से. उनमें से 10 बंदरों को दवा दी गई और पांच बंदरों को नियंत्रण में रखा गया. रिसर्च खत्म होने पर दवा लेने वाले बंदरों का वजन औसतन 38.7 फीसदी घट चुका था जबकि नियंत्रित बंदरों के वजन में 14.8 फीसदी की कमी आई. दवा लेने वाले बंदरों के पेट के नीचे जमी चर्बी 27 फीसदी तक कम हुई.

अध्ययन के दौरान बंदर सेहतमंद और चौकस रहे. जो साइडइफेक्ट्स देखे गए, उनमें ज्यादा मात्रा में पेशाब और थोड़ी डिहाईड्रेशन दर्ज की गई. ये दोनों किडनी में समस्या के संकेत हैं. लेकिन ये स्थाई नहीं थे और दवा की मात्रा पर निर्भर थे.

अब क्या होगा

अब वैज्ञानिक प्रोस्टेट कैंसर का इलाज करा रहे मोटे इन्सानों पर इस दवा के प्रयोग की तैयारी कर रहे हैं. रिसर्च में साथ देने वाले डॉ. वादिह अरप कहते हैं, "मोटापा कैंसर होने का बड़ा खतरा है. ठीक वैसे ही जैसे तंबाकू होता है. और दोनों से ही छुटकारा पाया जा सकता है. जब कैंसर के मोटे मरीजों पर कीमोथेरेपी या रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है तो नतीजे और ज्यादा खराब होते हैं."

प्रयोग के दौरान मरीजों को लगातार 28 दिनों तक इस दवा के इंजेक्शन दिए जाएंगे. अरप बताते हैं, "सवाल यह है कि अगर हम उनका वजन कम कर दें और उससे जुड़े खतरे दूर कर दें तो क्या उनका कैंसर बेहतर हो सकता है."

अमेरिका में एक तिहाई से ज्यादा लोगों का वजन सामान्य से ज्यादा है. और एक चौथाई मोटे हैं. इस वजह से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें होने का खतरा भी ज्यादा है. इनमें डायबिटीज, दिल के रोग, हाई ब्लड प्रेशर, लिवर की बीमारियां और कुछ कैंसर भी हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एएफपी/वी कुमार

संपादनः ओ सिंह

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