मौसमी बीमारियों पर ध्यान दें दवा कंपनियां
१५ अक्टूबर २०१०जिनेवा में जारी की गई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप के तमाम देश खराब मौसम के कारण पनपने वाले मियादी बुखार, मलेरिया, निमोनिया और हैजा जैसी बीमारियों से सबसे ज्यादा जूझते हैं. इसके अलावा मौसम के जीवनशैली पर पड़ने वाले असर के कारण मधुमेह भी अपने पैर पसार रहा है.
इससे सर्वाधिक प्रभावित होने वाले निर्धन आय वर्ग के लोगों को खासा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. एक अनुमान के मुताबिक यह नुकसान सालाना अरबों डॉलर हो सकता है. संगठन ने इन्हें उपेक्षित ट्रॉपिकल डिजीस का नाम देते हुए इस पर जारी अपनी पहली रिपोर्ट में दवा कंपनियों से इन बीमारियों को बेअसर करने वाली कारगर दवाएं बनाने पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने को कहा है.
इस जलवायु की वजह से होने वाले 17 तरह के संक्रमण से हृदयरोग और अंधेपन का खतरा भी बढ़ रहा है जो मौत का कारण भी बनता है. ऐसे में दवा कंपनियों को सरकारों और दानदाताओं से मिलने वाले फंड में भी बढ़ोतरी की जानी चाहिए. रिपोर्ट के अनुसार इन बीमारियों का इलाज बहुत मंहगा नहीं है फिर भी उपलब्धता का अभाव इस नुकसान का कारण बनता है. मच्छर से फैलने वाले डेंगू बुखार के विकासशील देशों के बाद अब विकसित देशों में फैलने पर डब्ल्यूएचओ ने चिंता जताई है. लातिन अमेरिकी देशों में इसी तरह के बुखार से एक करोड़ लोग बीमार हो चुके हैं.
संगठन के महानिदेशक मार्ग्रेट चांग ने रिपोर्ट में कहा है कि ट्रॉपिकल डिजीस से दुनिया भर में करोड़ों लोग पीड़ित हो रहे हैं और लाखों लोग इसके खतरे की जद में हैं. हालांकि चांग ने कई बड़ी दवा कंपनियों द्वारा एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिकी देशों में इन बीमारियों से पीड़ित गरीब तबकों में दवाओं के मुफ्त वितरण करने की तारीफ की लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इससे निपटने के लिए अभी भी अधिक काम करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि दुनिया भर की दवा कंपनियों को इस दिशा में सहयोग की अलग अलग अपने स्तर पर की जा रही पहल के बजाए एक साथ मिलकर डब्ल्यूएचओ के हाथ मजबूत करने चाहिए. इसके लिए दवा कंपनियों को साझा कार्यक्रम बनाकर काम करना चाहिए तभी इसके परिणाम देखे जा सकेंगे.
रिपोर्टः रायटर/निर्मल
संपादनः वी कुमार