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१८ जुलाई २०१२अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवलों में कई बड़े सम्मान हासिल कर चुके 40 साल के फाती आकिन जर्मन शहर हैम्बर्ग में इंडिया वीक में शिरकत करने पहुंचे. फाती अपनी फिल्म खुद लिखते हैं, खुद निर्देशन करते है और प्रोड्यूसर भी वही होते हैं. 'सोल किचन' से वह दर्शकों को हंसाते हुए गंभीर कर देते हैं तो 'हेड ऑन' और 'द एज ऑफ हेवन' जैसी फिल्मों से बता देते हैं कि आए दिन लोग अन्याय से गुजर रहे हैं.
उनके भीतर व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा है, इन्हीं भावनाओं को वह परदे पर उतार देते हैं. डॉयचे वेले ने हैम्बर्ग में फाती आकिन से खास बातचीत की.
डॉयचे वेले: फाती आप पश्चिम के एक मशहूर निर्देशक हैं. आपकी फिल्में बहुत भावुक होती हैं. ऐसा क्या है जो आपके भीतर जल रहा है?
फाती आकिन: मुझे नहीं पता. हां मैं अंदर से जलता हूं. हर व्यक्ति अंदर से जलता है. हर इंसान की जिंदगी एक जलती मोमबत्ती की तरह है. देर सबेर उसकी लौ खत्म होनी ही है. मैं भी उसी मोमबत्ती की तरह हूं. मैं नहीं देख सकता हूं कि मेरी रोशनी कैसी है. मैं जो करता हूं पूरी मोहब्बत से करता हूं. शायद इसी वजह से मेरे काम को पहचान मिली है.
डॉयचे वेले: फाती, कला के क्षेत्र में अक्सर लेखक, फिल्मकार या पेंटर अपने आपको ही एक तीसरे व्यक्ति की तरह उतार देते हैं. आपकी फिल्मों में भी क्या हम फाती आकिन को देखते हैं?
फाती आकिन: हां. मैं जो भी लिखता हूं या जो भी बनाता हूं, उसमें मैं होता हूं. मैं जो महसूस करता हूं, जो देखता हूं या मेरे अंदर जो इच्छाएं या सवाल हैं, जो सपने हैं, जो गुस्सा है, भवनाएं हैं. ऐसे सपने जो मैं हकीकत में नहीं कर सकता हूं वो मैं सिनेमा में करता हूं. यह मेरे लिए सपने की तरह है. लोग कहते हैं कि फिल्म निर्माताओं की दृष्टि गजब की होती हैं. मैं कहता हूं मेरे सपने ऐसे हैं.
डॉयचे वेले: आपको अब तक अपने काम में क्या कमियां लगती हैं?
फाती आकिन: मैं अपनी फिल्म बहुत तकनीकी नजरिये से देखता हूं. कैसे क्या लिखा गया है, क्या मैं उससे संतुष्ट हूं. कई बार लिखने की तकनीक को लेकर मैं हमेशा कड़ा रहता हूं. कैमरा कहां लगाया जाए, ये बात मुझे परेशान करती है. जब मैं अपने काम की आलोचना करता हूं तो मैं तकनीकी पहलू की बात करता हूं. जो मैं करता हूं दिल से करता हूं लिहाजा मैं तकनीकी कमियां निकालता हूं. कई बार लगता है कि मैं क्या करना चाहता था और मैं जो किया है वो उतना शानदार नहीं है.
डॉयचे वेले: बीते तीन साल में आपने कोई फिल्म नहीं बनाई?
फाती आकिन: हां, मुझे इसकी याद मत दिलाइये.
डॉयचे वेले: लेकिन आपके बाजू काफी दुरुस्त दिखते हैं. आपने बॉक्सिंग सीखी, अब आप कितने अच्छे बॉक्सर हैं.
फाती आकिन: हां, मैं नौ राउंड तक बॉक्सिंग करने लगा था. बहुत अच्छी तरह. मैं पेशेवर मुक्केबाजों के साथ खेलने लायक हो गया था. लेकिन जनवरी में मेरे घुटने का ऑपरेशन हुआ. तब से मैंने मुक्केबाजी छोड़ रखी है. मैं दौड़ भी नहीं पा रहा हूं. मुझे बॉक्सिंग करने से मना किया गया है, बॉक्सिंग के लिए मजबूत घुटने होना बहुत जरूरी है. पैरों से आपके मुक्के में जान आती है. बॉक्सिंग तो बंद है लेकिन सुबह घर पर दंड जरूर लगाता हूं.
डॉयचे वेले: आप एक फिल्म निर्माता हैं लेकिन जब आप फिल्म नहीं बनाते हैं या आराम करते हैं तो हर दिन की जिंदगी कैसी रहती है?
फाती आकिन: आप (हंसते हुए) बार बार मुझे बीते तीन सालों की याद मत दिलाइये. वैसे आराम नहीं मिलता है. बीते तीन साल में मैंने कई कहानियां लिखी हैं. वैसे मेरे दो बच्चे हैं. मैं परिवार वाला आदमी हूं. मेरे माता पिता ने मुझे बहुत प्यार दिया. ऐसा ही प्यार मैं अपने बच्चों को देता हूं.
डॉयचे वेले: जर्मनी में विदेशियों की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा तुर्क मूल के लोगों का है. उनका इस समाज में घुलना मिलना आलोचना के केंद्र में रहता है. क्या आपको लगता है इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना है?
फाती आकिन: मुझे लगता है कि यहां कई जर्मनी हैं. एक जर्मनी यहां है, आप भारत से हैं, मैं तुर्की का हूं. हम जर्मनी में हैं, जहां भारतीय फिल्म सप्ताह चल रहा है. एक ये जर्मनी है. लेकिन जर्मनी में एक कोना नस्लवाद का भी है. मैं नहीं जानता कि यह कितना बड़ा है. यह कम संख्या में है, एनपीडी जैसी पार्टियां बहुत बड़ी नहीं हैं. लेकिन बीते सालों जैसे नव नाजियों ने हत्याएं कीं, उसके बाद जब उन्हें पकड़ा गया तो पता चला कि जर्मनी की गुप्तचर सेवा ने सारी फाइलें नष्ट कर दीं. इसका मतलब है कि कहीं न कहीं स्टेट भी इन हत्याओं में शामिल हैं. इसीलिए मैं नहीं कह सकता कि यह कितना बड़ा है. अब मैं चीजों में साजिश देखने लगता हूं.
जर्मनी दुनिया के सबसे धनी देशों में है, क्योंकि हम हथियार भी बेचते हैं. नैतिकता कहां रह जाती है. जर्मनी में कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां मुझे घर जैसा लगता है. कई जगहें हैं जो मुझे ठीक नहीं लगतीं.
डॉयचे वेले: फाती आपकी और अनुराग कश्यप की दोस्ती कितनी गहरी है?
फाती आकिन: अनुराग को मैं बहुत पंसद करता हूं. उसकी बड़ी बड़ी आंखें बहुत कुछ सोखती रहती हैं. दुनिया में कई बीज बिखरे पड़े हैं, वो उन्हें उठाता है और खिला देता है. जिंदगी चलती रहती है, अनुराग इसका बहुत अच्छा उदाहरण हैं. वह असल सिनेमा प्रेमी हैं. फिल्म बनाने से उन्हें बहुत प्यार है और वे बहुत ईमानदार हैं. अगर फिल्म बनाना फुटबॉल है तो अनुराग भारतीय नहीं हैं, वह स्पेनिश हैं. वो सबसे बहुत अदब से मिलते हैं. चाहे आस पास कोई भी हो वह उसे मेज पर बुला लेते हैं और माहौल बना देते हैं. उनमें प्रतिस्पर्द्धा की भावना नहीं है.
डॉयचे वेले: अनुराग से मिलने से पहले भारतीय सिनेमा को आप कैसे जानते थे?
फाती आकिन: वैसे मैं भारतीय सिनेमा के बारे में पहले बहुत कम जानता था. वह भी डांस और गानों की वजह से. लेकिन हां, एक फिल्म थी. उसके नाम का अनुवाद है, चेन ऑफ मेमोरीज, 70 के दशक की.
डॉयचे वेले: यादों की बारात.
फाती आकिन: हां, वो फिल्म मुझे बहुत पंसद है. वो मेरी पंसद की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. मैंने काफी पहले वो फिल्म देखी. मुझे गैंग्स ऑफ वासेपुर भी अच्छी लगी. इसमें एक सधी कहानी है. अनुराग ने अच्छी फिल्म बनाई है. वह बॉलीवुड में खेल रहे हैं. वो बॉलीवुड से आते हैं और उसके हर तत्व का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा मीरा नायर की सलाम बॉम्बे, वाटर और मॉनसून वेडिंग भी मुझे अच्छी लगी. अनुराग की वजह से मैं भारतीय सिनेमा को समझ रहा हूं. वो समय समय पर मेरे लिए डीवीडी भेजते रहते हैं.
डॉयचे वेले: फाती, बहुत बहुत शुक्रिया इस बातचीत के लिए.
इंटरव्यूः ओंकार सिंह जनौटी, हैम्बर्ग
संपादनः महेश झा