राजनीति की भेंट चढ़े रिटेल सुधार
२८ नवम्बर २०११तीन दिन के विचार मंथन के बाद भारत सरकार ने फैसला वापस लेने का पहला संकेत सोमवार दोपहर दिया. सरकार ने शर्त लगाते हुए कहा कि विदेशी खुदरा व्यापारियों को 30 फीसदी सामान छोटे भारतीय उद्योगों से लेना होगा. इससे पहले यह कहा गया था कि खुदरा व्यापारी दुनिया में कहीं से भी माल खरीद सकते हैं.
सरकार मंगलवार को प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की बैठक बुला सकती है ताकि संसद में जारी गतिरोध को खत्म किया जा सके. सरकार इस मुद्दे पर संसद में वोटिंग टालना चाहती है. अगर रिटेल के फैसले पर वोटिंग हुई और सरकार हार गई तो शर्मिंदगी वाली स्थिति पैदा हो जाएगी. सरकार के पास संसद में मामूली बहुमत है. मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी वोटिंग कराना चाहती है.
सरकार की दो सबसे बड़ी सहयोगी पार्टियों तृणमूल कांग्रेस और डीएमके ने भी साफ कहा कि रिटेल में एफडीआई का फैसला वापस लिया जाना चाहिए. विपक्षी पार्टियां पहले ही फैसले का विरोध कर रही हैं. सोमवार को एक बार फिर संसद की कार्रवाई रिटेल विरोध की वजह से पूरे दिन के लिए टाल दी गई.
दरअसल बीते गुरुवार को भारत सरकार ने आर्थिक सुधारों की तरफ एक बड़ा कदम उठाया. कैबिनेट ने खुदरा क्षेत्र में मल्टी ब्रांड वाली विदेशी रिटेल कंपनियों को 51 फीसदी निवेश की अनुमति दे दी. सिंगल ब्रांड वाली विदेशी कंपनियों को 100 फीसदी निवेश की इजाजत दे दी. गुरुवार के फैसलों से यह साफ हो गया था कि भारत में वाल मार्ट और टेस्को जैसे बड़ी रिटेल कंपनियां आएंगी. एप्पल का भी रास्ता साफ हुआ.
लेकिन विरोध की आंच इतनी तेज है कि सरकार को पलटना पड़ रहा है. बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि वह अपने राज्यों में विदेशी रिटेलरों को नहीं घुसने देंगे. कांग्रेस को छोड़ बाकी राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि विदेशी रिटेलरों के आने से देश के छोटे कारोबारी तबाह हो जाएंगी.
लेकिन ऐसा पूरी तरह सही नहीं है. महंगाई की मार से जूझ रहे भारत को इस वक्त निवेश की जरूरत है. विदेशी रिटलरों के आने से बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी. ग्राहकों को अच्छा सामान मिलेगा और कीमतें भी नीचे आएंगी. भारत में महंगाई का एक कारण यह भी है कि ज्यादातर सामान कई कड़ियों से गुजरता हुआ ग्राहक तक पहुंचता है. रिटेल स्टोर इन कड़ियों को खत्म करेंगे.
विपक्ष के तर्क बहुत धारदार नहीं हैं. लेकिन रिटेल के नाम पर शुरू हुआ विरोध इस कदर फैल चुका है कि 1991 में भारत में बड़े आर्थिक सुधार करने वाले मनमोहन सिंह 20 साल बाद बड़ा कदम उठाने में हिचक महसूस करने लगे हैं. 2012 में कई बड़े राज्यों में चुनाव भी होने हैं. भ्रष्टाचार और मंहगाई ने पहले ही सरकार के आत्मविश्वास को हिलाया हुआ है.
रिपोर्ट: एएफपी, पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल