लॉटरी में बच्चा जीतने का मौका
११ जुलाई २०११'विन ए बेबी' नाम से मशहूर इस गेम को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. हालांकि ब्रिटेन के गैम्बलिंग कमीशन ने इसे 30 जुलाई से शुरू करने की अनुमति दे दी है. 20 पाउंड का टिकट खरीद कर कोई भी इसमें भाग ले सकता है. हर महीने एक विजेता के पास 25 हजार पाउंड यानी 17 लाख रुपये की रकम जीतने का मौका है. इसके जरिए वह देश के पांच टॉप क्लिनिकों में से किसी एक में जाकर टेस्ट ट्यूब बेबी (आईवीएफ) तकनीक से अपने जिंदगी में खुशिया भर सकता है.
इस लॉटरी में कुंवारे, पुरूष समलैंगिक, उम्रदराज खिलाड़ी या फिर वे मां बाप भी शामिल हो सकते हैं जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं. अगर आईवीएफ तकनीक नाकाम रहती है तो लॉटरी जीतने वालों को प्रजनन संबंधी सर्जरी, दान दिए अंडाणु और शुक्राणु या किराए की कोख से बच्चे के जन्म की सुविधा की पेशकश भी की जा सकती है. विजेता इनमें से अपनी पसंद का इलाज चुन सकता है.
विजेताओं को इलाज से पहले फाइव स्टार होटल में रखा जाएगा. उन्हें मोबाइल फोन और निजी सहायक भी दिए जाएंगे. इस लॉटरी को शुरू करने वाली कमीले श्ट्राशन खुद भी प्रजनन संबंधी इलाज करा चुकी हैं. उनका कहना है कि वह ऐसे लोगों की इच्छा पूरी करना चाहती हैं जिनके बच्चे नहीं हुए हैं.
लेकिन कुछ मेडिकल और जातीय समूह इस गेम की निंदा कर रहे हैं और गैम्बलिंग कमीशन ने कहा कि इस मुद्दे पर थोड़ी और छानबीन करनी होगी. ब्रिटेन में प्रजनन संबंधी नियामक संस्था का कहना है कि आईवीएफ तकनीक को एक इनाम के तौर पर रखना गलत और पूरी तरह से अनुचित है. यह उस चीज की अहमियत को कम करता है जो बहुत से लोगों की जिंदगी का मुख्य हिस्सा है.
कमेंट ऑन रिप्रोडक्टिव एथिक्स नाम के संगठन से जुड़ी जोसेफीने क्विंटावाले का कहना है, "एक इंसानी जिंदगी के वजूद में आने को सिर्फ एक लॉटरी तक सीमित नहीं कर देना चाहिए. इसके लिए मानवीय प्रजनन की जरूरत होती है." गैम्बलिंग कमीशन ने कहा है कि उसने इस मुद्दे पर आ रही प्रतिक्रियाओं को देखा है लेकिन उसके पास इसमें हस्तक्षेप करने या लॉटरी शुरू करने के लिए दिए गए लाइसेंस को खत्म करने का अधिकार नहीं है. सिर्फ सरकार ही ऐसा कर सकती है.
ब्रिटेन में हर सात में से एक जोड़ा प्रजनन संबंधी समस्याओं का शिकार है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2008 में 40 हजार मरीजों ने आईवीएफ तकनीक को अपनाया जिसके नतीजे में 15 हजार बच्चों का जन्म हुआ.
रिपोर्टः रॉयटर्स/ए कुमार
संपादनः एन रंजन