विदेश नीति पर घरेलू मुद्दे भारी
२३ अक्टूबर २०१२सोमवार को जब अमेरिका में सूरज उगा तब उन देशों में भी लोग बेसब्री से राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों की टीवी पर होने वाली बहस के इंतजार में थे जहां सूरज डूब चुका था. छह नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले दोनों नेताओं को आखिरी बार एक दूसरे के सामने आ कर विदेश नीति पर बहस करनी थी. दोनों नेताओं का ध्यान चीन अमेरिका के जटिल रिश्तों और उसके आर्थिक नतीजों पर था. इस दौरान चीन के उभरने से अमेरिकी नेतृत्व वाले एशियाई देशों के गठबंधन के मन में पैदा हो रहे असुरक्षा के सवाल पर बहुत कम चर्चा हुई.
फ्लोरिडा के बोका रेटॉन में 90 मिनट तक चली बहस में मानवाधिकार, अमेरिका के दुश्मनों को चीन की मदद और अमेरिका के जापान और फिलीपींस जैसे सहयोगी देशों के साथ चीन के समुद्री विवादों का जिक्र तक नहीं हुआ. सिर्फ इतना ही नहीं दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जल्दी ही होने वाले नेतृत्व के बदलाव और चीन की आर्थिक मंदी पर भी कोई चर्चा नहीं हुई जिसका भारी असर अमेरिका के निर्यात पर हो सकता है.
ओबामा ने अपनी सरकार के जरिए चीन को अंतरराष्ट्रीय कारोबारी नियमों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश का जिक्र करते हुए कहा कि चीन, "विपक्षी होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय में प्रमुख साझीदार भी है, अगर वह नियमों का पालन करता रहे." कारोबार में बराबरी न होने की वजह से अमेरिकी नौकरियों को होने वाले नुकसान के बारे में बताते हुए ओबामा ने कहा, "कारोबारी नियमों के उल्लंघन पर हमने चीन के खिलाफ ज्यादा मामले उठाए...पिछली सरकार ने अपने दो कार्यकालों में भी इतना नहीं किया और हमने जितने मामले उठाए उन सब में हमारी जीत हुई."
ओबामा के प्रतिद्वंद्वी रोमनी ने चुनाव अभियान में अब तक चीन के खिलाफ काफी कड़ा रुख अपनाया है. उन्होंने माना, "हम चीन के सहयोगी हो सकते हैं. हमें किसी भी रूप में विपक्षी होने की जरूरत नहीं." लेकिन राष्ट्रपति और उनके प्रतिद्वंद्वी ने जल्दी ही चीन के सवाल को घरेलू मुद्दों की ओर मोड़ दिया. रोमनी ने कहा, "चीन के साथ हमारे कारोबार में भारी असंतुलन है और इस साल यह पिछले साल की तुलना में भी ज्यादा रहा है. इसलिए हमें यह समझना होगा कि हम हार नहीं मान सकते और हर साल अपनी नौकरियों को खोते नहीं रह सकते."
ओबामा ने कहा कि चीन से आगे रहने के लिए शिक्षा और रिसर्च में निवेश करना होगा. ओबामा के मुताबिक, "लंबे समय के लिए चीन से मुकाबला करने के लिए हमें यह तय करना होगा कि हम अपने घरेलू कारोबार का ख्याल रख रहे हैं." इसके साथ ही ओबामा ने रोमनी के खिलाफ उन आरोपों को दोहराया भी कि उन्होंने ऐसी कंपनियों में निवेश किया है जो नौकरियां चीन में भेज रही हैं. ओबामा ने यह भी कहा कि अमेरिका को शिक्षा और रिसर्च की जरूरत है जो रोमनी के बजट में मुमकिन नहीं है. उधर रोमनी ने कहा कि ओबामा के सरकारी खर्चे और रक्षा बजट में कटौती ने चीन की नजर में अमेरिका को कमजोर कर दिया है.
रोमनी ने चीन को अपनी मुद्रा की कीमत घटाने से रोकने के लिए भी कहा, जिसकी वजह से चीनी निर्यात अमेरिका की तुलना में काफी सस्ता हो जाता है. रोमनी ने चीन को "मुद्रा का जुगाड़ु" कहा. चीन ने हाल के दिनों में अपनी मुद्रा की कीमत कुछ बढ़ाई है लेकिन रोमनी का कहना है कि इसे और ज्यादा करने की जरूरत है.
चीन के अलावा दूसरे अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों नेताओं ने इस्रायल का बचाव किया और दोनों इस मामले में एक दूसरे से बड़ा बनने की कोशिश करते दिखे. रोमनी और ओबामा दोनों ने इस बात पर सहमति जताई कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए सैनिक हमला आखिरी उपाय होगा. रोमनी ने कहा, "अगर इस्रायल पर हमला किया गया तो हम मदद करेंगे. और न सिर्फ कूटनीतिक और सांस्कृतिक रूप से बल्कि सैन्य रूप से भी." ओबामा ने भी कहा, "इस्रायल पर हमला हुआ तो मैं उनकी मदद के लिए खड़ा होउंगा"
ओबामा ने रोमनी के साथ ईरान के मुद्दे पर असहमतियों का जिक्र करते हुए कहा, "रोमनी के साथ मेरी असहमति इस बात पर है कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अकसर यह कहा है कि हमें समय से पहले सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए. मेरे ख्याल से यह गलत होगा क्योंकि जब भी मैं युवा पुरुष महिलाओं को नुकसान के रास्ते पर भेजता हूं तो हमेशा यही चाहता हूं कि यह आखिरी कदम होना चाहिए. उधर रोमनी ने कहा कि ओबामा इस्रायल के उतने करीबी दोस्त नहीं रहे हैं. रोमनी ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा इस्रायल एक बार भी नहीं गए.
सीरिया के मामले पर रोमनी ने ओबामा को यह कह कर मुश्किल में डाला कि राष्ट्रपति बशर अल असद अभी भी सत्ता में बने हुए हैं और खूनी संघर्ष में हजारों लोगों की जान जा चुकी है. रोमनी ने कहा कि सीरिया पर कार्रवाई में अमेरिका को नेतृत्व संभालना चाहिए और सहयोगियों के साथ मिल कर विपक्षी नेताओं को मजबूत करना चाहिए. जवाब में ओबामा ने कहा, "मुझे पूरा भरोसा है कि असद के दिन अब गिने चुने हैं. लेकिन हम विपक्षियों को भारी हथियार नहीं दे सकते जिसके लिए बार बार रोमनी सलाह दे रहे हैं."
एनआर/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)