'विश्व में अकेला नहीं है ईरान'
१ सितम्बर २०१२अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस बैठक को पश्चिमी देशों की राजनयिक हार बताया है. ईरान में दो दिन के सम्मेलन में मिस्र के नए राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून मौजूद थे. कूटनीति पर शोध कर रही संस्थाओं का कहना है कि इस बैठक से ईरान ने साबित कर दिया है कि उसके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब भी साझेदार हैं और वह पूरी तरह अकेला नहीं है.
हालांकि बैठक के ही दौरान अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए ने ईरान पर नई रिपोर्ट जारी की जिसमें बताया गया है कि ईरान अपने यूरेनियम संवर्धन केंद्रों को बढ़ा रहा है, आईएईए के जांचकर्ता सही तरह से जान नहीं पा रहे हैं कि ईरान ने परमाणु परीक्षण किए हैं या नहीं. इसी दौरान बान की मून ने ईरानी नेताओं से कहा कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र और आईएईए के प्रस्तावों को मानना पड़ेगा, नहीं तो ईरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से और अलग हो सकता है और अमेरिका या इस्राएल से उस पर हमला होने का खतरा बढ़ सकता है.
यात्रा की आलोचना
बान की मून की ईरान यात्रा की कड़ी आलोचना हो रही है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने दौरे के जरिए ईरान में मानवाधिकार और उसके परमाणु कार्यक्रम के मुद्दों को आगे बढ़ाने की कोशिश की. बान ने कहा, "मुझे कूटनीति की ताकत पर पूरा विश्वास है, बातचीत और बहस पर भरोसा है. मैंने तेहरान में बिलकुल यही किया." इससे पहले अमेरिका और इस्राएल ने बान की निंदा करते हुए कहा था कि वे ईरान में गुटनिरपेक्ष देशों की बैठक में जाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में ईरान की पूछ को फायदा पहुंचा रहे हैं. लेकिन बान का कहना है कि उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता आयातोल्लाह खमेनेई और राष्ट्रपति अहमदीनेजाद से मुलाकात कर देश में बदलाव को बढ़ावा देने की कोशिश की है. साथ ही उन्होंने बैठक में पहुंचे सीरियाई प्रधानमंत्री वाएल अल हलकी और विदेश मंत्री वालिद अल मुआलम से अपील की कि वे अपने देश में अंतरराष्ट्रीय राहत संगठनों को आने की अनुमति दें.
लेकिन 2012 की बैठक गुटनिरपेक्ष देशों के बजाय ईरान और सीरिया पर बहस तक सीमित रह गई. दो दिन के बैठक में 120 देशों ने ईरान के शांतिपूर्वक परमाणु ऊर्जा उत्पादन का समर्थन किया और एक फलिस्तीनी राष्ट्र के गठन को सहयोग देने की बात कही.
ईरान ने सम्मेलन की मेजबानी करके यह साबित तो किया है कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अकेला नहीं है लेकिन अमेरिकी संगठन रैंड कॉर्प में शोधकर्ता अलीरजा नादेर कहते हैं कि गुटनिरपेक्ष देशों की बैठक से ईरान की छवि बेहतर नहीं होती है क्योंकि ईरान और बाकी नाम देशों के बीच संबंध भी बहुत अच्छे नहीं है. मिसाल के तौर पर भारत ने खुद ईरान से तेल नहीं खरीदने का फैसला किया है.
गुटनिरपेक्ष देशों की अगली बैठक 2015 में वेनेजुएला की राजधानी काराकास में होगी.
एमजी/एएम(एएफपी, रॉयटर्स)