संगीत से सराबोर ओलंपिक
१० अगस्त २०१२इटली के ऑपेरा से लेकर धमाकेदार म्यूज तक, इस साल के ओलंपिक संगीत का एक भी सुर कभी न भूलने वाली सौगात बन कर आया. शुरुआत और समापन क्या, हर लम्हे के लिए तैयार खास संगीत लोगों को लुभाता गया.
2001 में लंबी दूरी की रेस के लिए बड़े स्टेज पर ड्रमर के साथ एथलेटिक्स स्टेडियम में पहुंचा संगीत अब तक काफी लंबा सफर तय कर चुका है. तब वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान कनाडा के एडमोन्टॉन में इसकी शुरुआत हुई थी. लंदन ओलंपिक ने पूर्व एथलीटों के इंटरव्यू को शामिल कर इसे ऐतिहासिक बना दिया है. ओलंपिक के संगीत ने लोगों के जश्न के लिए वो सामान जुटाया है कि इसकी गूंज आकाश से गुजरते जेट विमानों के शोर पर भी भारी पड़ती है. शनिवार को जेसिका एन्निस, ग्रेग रुदरफोर्ड और मो फाराह ने ब्रिटेन के लिए सोने का जुटाया तब ऐसा ही नजारा हुआ. स्मार्टफोन और सोशल नेटवर्क के साथ चलती दुनिया के नसीब में ऐसे लम्हे कम ही आते हैं.
पिछले एथलेटिक्स मुकाबलों की तुलना में इस तरह से लंदन ओलंपिक काफी आगे निकला. 400 मीटर की बाधा दौड़ में रिकॉर्ड बनाने वाले बिर्टेन के क्रिस अकाबुसी इस वक्त के सामने 1980 को पाषाण युग कहते हैं, "जब मैं मुकाबले में था तब तो जुरासिक पार्क जैसा था." उन दिनों मुकाबला देखने वाले दर्शकों को केवल अनाउंसर की आवाज ही सुनाई देती थी जिसमें तरह तरह के निर्देश भरे होते थे. अब तो मैदान में मनोरंजन का पूरा सामान मौजूद है.
इस तरह के आयोजन पर अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने थोड़ी बहुत ना नुकुर की थी लेकिन बाद में वो भी तैयार हो गए. महासंघ के प्रवक्ता निक डेविस ने कहा, "एथलेटिक्स समुदाय थोड़ा रुढ़िवादी है लेकिन एक बार कुछ शुरू हो जाए तो फिर पीछे नहीं हटता."
बुधवार को 10 मुकाबलों वाले डेकाथलॉन में ऊंची कूद के दौरान 45 मिनट तक लोग ताली बजाते रहे शोर मचाते रहे, खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाते रहे. इसके अलावा भी कोई न कोई संगीत एथलीटों में जोश जगाने के लिए स्टेडियम में बजता रहता है. शुरुआत से ही संगीत का विशेष ध्यान रखा जा रहा है और यह जिम्मेदारी लंदन ओलंपिक आयोजन समिति उठा रही है. यहां बजने वाले संगीत का 95 फीसदी हिस्सा ब्रिटेन पुराने दिग्गजों द किंक्स, द व्हू औऱ रोलिंग स्टोन्स का है. इसके अलावा द क्लैश, द जैम और न्यू ऑर्डर भी खूब बज रहे हैं. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि इस बार के ओलंपिक में ब्रिटेन के शानदार प्रदर्शन के पीछे न सिर्फ आबोहवा बल्कि लगातार बजते इस ब्रिटिश संगीत की भी बड़ी भूमिका है.
संगीत बजने में कोई दिक्कत न हो इसके लिए आयोजकों ने पहले से ही सोच समझ कर ज्यादा से ज्यादा आवाज झेलने की क्षमता वाले स्टेडियम बनवाए. स्टेडियम के आर्किटेक्ट रॉड शियर्ड ने कुछ दिन पहले बताया, "हम चाहते थे कि दर्शकों तक एथलीटों की गंध पहुंचे और एथलीट दर्शकों की आवाज सुन सकें. एथलीट अपने ध्यान में इतने मग्न होते हैं कि उनके लिए भीड़ की आवाज न सुनना बहुत आसान है. इसलिए हमने इसे इतना तेज बनाया कि वो इसका फायदा उठा सकें." आयोजन समिति इस बार में पहले ही मन बना चुकी थी और उनके पास इसकी पक्की वजहें भी थी. शियर्ड ने बताया, "हमारी कोशिश थी कि दर्शकों को खेल के जितना करीब मुमकिन हो, ला सकें. इस तरह से वो लगातार जुड़े रहते हैं, जब वो ज्यादा जुड़ेंगे तो ज्यादा शोर भी करेंगे. ऐसे में आवाज सतह से वापस लौट कर आती है. हमने छतों को ऐसा बनाया कि आवाज वापस लौटे."
ओलंपिक का संगीत निश्चित रूप से दर्शकों का मन बहला रहा है लेकिन इससे भी अच्छी बात यह है कि ज्यादातर एथलीट भी इसे सुन कर ताजा दम हो रहे हैं. संगीत की धुनों के बीच 10 हजार मीटर की दौड़ जीतने वाले फाराह कहते हैं, "माहौल सचमुच कुछ अलग था. वह लगातार गूंज रहा था और मुझे लगा जैसे किसी ने 10 कप कॉफी पिला दी हो. मैं जोश में भर गया और जान गया कि मुझे कुछ करना है."
हालांकि बहुत से लोगों के लिए भीड़ मचाते शोर और लगातार बजता संगीत एकदम नया अनुभव है. डिसक्स थ्रो में सोना जीतने वाले जर्मन खिलाड़ी रॉबर्ट हार्टिंग कहते हैं कि 800 मीटर की रेस से इतना ज्यादा शोर आ रहा था कि उनके लिए ध्यान लगा पाना मुश्किल हो रहा था. हालांकि दिगेल कहते हैं कि शोर कुछ ऐसा है कि खिलाड़ियों को इसकी आदत हो जाएगी. मतलब साफ है अगला ओलंपिक और ज्यादा गूंजेगा.
एनआर/ओएसजे (डीपीए)