सिर्फ बेटे की चाहत पर लगाम लगाए एशिया
१५ जून २०११संयुक्त राष्ट्र की पांच एजेंसियों ने संयुक्त बयान में कहा है, "लिंग के आधार पर बच्चों का चुनाव करना न केवल भेदभाव की संस्कृति को जाहिर करता है बल्कि इसे बढ़ावा भी देता है. इस पर तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए. समाज और देश के सभी लोगों को और सरकार को भी महिला अधिकारों के इस मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करनी चाहिए."
हालात सुधारें देश
एजेंसियों ने कहा है कि महिलाओं पर इस बात का बहुत दबाव है कि वे लड़के पैदा करें. बयान में कहा गया, "इससे न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके मन पर बुरा असर पड़ता है बल्कि उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है जहां उन्हें लड़कियों को कम महत्व देकर लड़कों को प्राथमिकता देनी होती है."
एशियाई देशों में हालात कुछ इस तरह है के हैं कि अगर वे लड़के पैदा करने में विफल होती हैं तो उन्हें तलाक भी दे दिया जाता है. एजेंसियों ने कहा, "देश की यह प्रतिबद्धता है कि इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई जाए और महिलाएं सुरक्षित रहें. उनकी जान पर न बन आए. उन्हें सुरक्षित गर्भपात या अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पर्याप्त विकल्प मौजूद हों."
यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन, मानवाधिकार उच्चायोग और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने एशिया के कई देशों में लड़कों को मिलने वाली प्राथमिकता पर ताजा स्टडी के बाद यह बयान जारी किया है.
चीन भारत में चिंता
चीन में ताजा जनगणना बताती है है कि पिछले 10 साल में 100 लड़कियों पर 118.06 लड़के पैदा हुए हैं. भारत की स्थिति कोई ज्यादा अच्छी नहीं है जहां कन्या भ्रूण नालियों में फेंक दिए जाते हैं. ताजा आंकडे बताते हैं कि भारत में एक हजार पुरुषों पर सिर्फ 914 लड़कियां हैं. यह अनुपात 1947 के बाद से अब तक का सबसे कम है.
2011 की जनगणना के मुताबिक 62 करोड़ 37 लाख पुरुष हैं जबकि 58.65 करोड़ महिलाएं हैं. हरियाणा में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. वहां हजार पुरुषों पर केवल 861 महिलाएं हैं. केरल में महिलाओं की संख्या काफी है. वहां प्रति एक हजार पुरुषों पर 1,058 महिलाएं हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
संपादनः वी कुमार