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'सोवियत सेनाओं जैसी अमेरिका की वापसी'

२ जनवरी २०१३

तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी सोवियत फौजों की वापसी जैसी ही है. अमेरिका अगले साल वहां से हट रहा है, जबकि सोवियत संघ ने 1989 में अफगान धरती छोड़ी थी.

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तस्वीर: Reuters

तालिबान के चरमपंथी लड़ाकों ने "क्विक ग्लांस एट 2012" नाम से एक दस्तावेज ईमेल से भेजा है जिसमें कहा गया है कि गठबंधन सेना अब लड़ने की इच्छा पूरी तरह खो चुकी है और व्यवहारिक रूप से निकलने और वापस लौटने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है. तालिबान ने कहा, "हम बिना किसी गलती के कह सकते हैं कि 2012 अफगानिस्तान पर कब्जे के लिए बिल्कुल वैसा ही है जैसा 1986 सोवियत संघ के कब्जे के लिए था."

1986 को सोवियत सेनाओं के लिए अफगानिस्तान में उनकी 10 साल की मौजूदगी के लिहाज से मोटे तौर पर बदलाव का वक्त माना जाता है, जब मुजाहिदिन के हमलों ने रूसी सेनाओं को रक्षात्मक रुख अपनाने पर विवश कर दिया और आखिरकार 1989 में उन्हें जाना पड़ा.

Afghanistan Lokale Polizei
तस्वीर: SHAH MARAI/AFP/Getty Images

तालिबान ने इस दस्तावेज में यह भी लिखा, "जब अमेरिका ने वियतनाम में भारी तबाही देखी तो उन्होंने जीत का एलान करने और वहां से भागने का फॉर्मूला लगाया. यहां वे अफगानिस्तान के हाथ में सुरक्षा सौंप कर भागने का फॉर्मूला लगा रहे हैं. वास्तव में वे अफगानिस्तान से ठीक वैसे ही भागना चाहते हैं जैसे कि वे वियतनाम से भागे थे."

नाटो की गठबंधन सेना 11 साल से अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों से लड़ रही है. 2013 में सैनिकों की संख्या 30 हजार घटा दी गई और 2014 में युद्धक अभियान को पूरी तरह बंद करने का फैसला किया गया है. करीब एक लाख की तादाद में अंतरराष्ट्रीय सेना अब भी अफगानिस्तान में मौजूद है जो वहां की राष्ट्रीय सेना और पुलिस को प्रशिक्षण दे कर स्थिरता लाने की कोशिश में जुटी है. इस बीच अफगान सरकार ने कुछ मध्यस्थों को नियुक्त कर तालिबान के साथ शांति वार्ता शुरू करने की कोशिश की है.

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तस्वीर: AP

गठबंधन नेताओं का कहना है कि अफगानों ने अब 75 फीसदी सैन्य जिम्मेदारियों को संभाल लिया है हालांकि अमेरिका उनसे 2014 के बाद भी एक छोटी सेना बनाए रखने की संभावना पर बातचीत कर रहा है. तालिबान ने अपने दस्तावेज में यह भी कहा कि एक वाक्य में कहा जा सकता है ,"2012 में आक्रमणकारियों का रफूचक्कर होना शुरू हो गया है."

नाटो और अमेरिकी अधिकारियों ने इस हफ्ते भी कहा कि स्थानीय सैनिकों और पुलिस को जिम्मेदारी सौंपने का काम सफलता से आगे बढ़ रहा है. राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी कहा है कि कुछ ही दिनों में अफगान सुरक्षा बल देश की करीब 90 फीसदी आबादी को अपनी सुरक्षा में ले लेंगे. हालांकि जानकारों ने चेतावनी दी है कि नाटो की सेना के जाने के बाद बड़े पैमाने पर गृह युद्ध छिड़ सकता है.

एनआर/एजेए (एएफपी)

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