हरिद्वार में मनी ग्रीन दिवाली
२७ अक्टूबर २०११पटाखों के शोर और धुएं के गुबार से दूर लोगों ने पहाड़ और नदी के साए में बसे शहर में साधारण तौर पर दीए जलाए. भारत के अलग अलग राज्यों के अलावा विदेशों में काम करने वाले भारतीय और विदेशी नागरिक भी यहां मौजूद थे. उन्होंने इस दिवाली के जरिए लोगों में पर्यावरण सुरक्षा की भावना को भी जगाने की कोशिश की.
इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पांड्या ने कहा, "गंगा नदी के तट पर दिवाली मनाना अद्भुत है. अगर हम इस दिवाली में शांति के संदेश के साथ पर्यावरण सुरक्षा की भावना भी जगा सकें तो बेहतर होगा."
दिवाली बढ़ाता प्रदूषण
भारत में हर साल दिवाली के मौके पर वायु प्रदूषण 10 से 20 फीसदी तक बढ़ जाता है. इसके बाद प्रण लिया जाता है कि अगली दिवाली में पटाखे नहीं छोड़े जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता. पटाखों में 75 प्रतिशत पोटाशियम नाइट्रेट, 15 प्रतिशत कार्बन और 10 फीसदी सल्फर होते हैं. इनमें एक साथ आग लगने की वजह से सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे खतरनाक गैस बनते हैं और वातावरण में मैगनीज और काडमियम जैसे पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है. इसका न सिर्फ पर्यावरण पर खराब असर पड़ता है, बल्कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस की बीमारी वाले लोगों का बुरा हाल हो जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि भारत के कई हिस्सों में दिवाली के वक्त सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा 200 फीसदी तक बढ़ जाती है. डॉक्टरों का कहना है कि दिवाली के वक्त 26 फीसदी नए लोग खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत करते हैं. इन्हें लगभग चार महीने तक इलाज कराना पड़ता है. इसी तरह आंखों में जलन और नाक बहने की शिकायत करने वाले मरीजों की तादाद 20 फीसदी बढ़ जाती है.
वातावरण का बुरा हाल
हाल की रिपोर्टों में सामने आया है कि दिवाली के दौरान होने वाला पर्यावरण प्रदूषण लंबे वक्त तक रहता है और मुंबई की हवा हाल के दिनों में 30 फीसदी ज्यादा प्रदूषित हो गई है. भारत के राष्ट्रीय वायु निगरानी कार्यक्रम के आंकड़े भी बताते हैं कि हाल के सालों में हाल बुरा हुआ है. हालांकि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने छह साल पहले रात 10 बजे के बाद पटाखे छोड़ने पर पाबंदी लगा दी है.
लेकिन इन सबसे अलग तरीके की दिवाली देख कर इस्राएल के इजहाक रोजेन बेहद प्रभावित हैं. उनका कहना है, "भारत आध्यात्मिक गहराइयों का देश है. लेकिन इस तरह से पर्व मनाते हुए देखना मेरे लिए नई बात है. यह मेरे लिए यादगार अनुभव है."
रिपोर्टः ए जमाल
संपादनः महेश झा