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3 डी में बसा पुस्तक मेले का दिल

१७ अक्टूबर २०११

विराट फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले के हर हॉल में कोई न कोई मोती हाथ लग ही जाता. ऐसा ही एक हॉल नंबर 4. यहां पहली और दूसरी मंजिल पर ऑडियो किताबें और फिर हॉट स्पॉट एजुकेशन पर स्टॉल लगे हुए थे. पढ़ाई को रोचक खेल बनाया जा रहा है.

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तस्वीर: DW

गोएथे से लेकर दुनिया भर के लेखकों की किताबें सुनने के लिए उपलब्ध तो थी हीं. लेकिन पहली मंजिल से ऊपर जाने पर लगा जैसे एक अलग ही दुनिया में कदम रख दिया. यहां कुछ स्टॉल्स पर बड़े बड़े बोर्ड्स लगे हुए थे, जो टच स्क्रीन टीवी की तरह थे. बच्चे उस पर खेल रहे थे. तो दूसरे बोर्ड पर घर्षण, सरफेस के कठिन सवाल चित्रों की मदद से किए जा रहे थे. तो कहीं टच स्क्रीन वाले छोटे से पैड पर कोई बच्चा खेल खेल में गणित सीख रहा था.

Frankfurter Buchmesse 2011
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2 से 3डी

मेरे दिमाग में घूम रहे थे एक क्लास में बैठे हुए 50 बच्चे और 13 का पहाड़ा. किताबों से भरा बस्ता और गणित का डर. इन्हीं विचारों से डूबती उतरती आगे पहुंची तो देखा कि तीन युवा भारतीय एक फोरम में 3डी चश्मे दे रहे थे. फोरम का विषय था स्कूलों में 3डी शिक्षा. कागज, सीडी और चश्मा हाथ में लेते हुए मुझे मांगलिया, जबरन कॉलोनी और बस अड्डे इंदौर के स्कूल याद आ रहे थे, जहां बच्चे आधी अधूरी सुविधाओं के साथ जैसे तैसे और कभी कभार बारिश में भीगे हुए बोर्ड पर पढ़ाई करते हैं.

इसी पशोपेश में जब 3डी चश्मा आंखों पर चढ़ाया तो नई दुनिया में पहुंची. याद आए वो दिन जब हृदय, मस्तिष्क, और शरीर को समझने में पूरी ताकत झोंक देनी पड़ती थी और यहां सिर्फ एक माउस क्लिक या रिमोट कंट्रोल से दिल उलट पलट, आगे पीछे और दाएं बाएं हो जाता है. मस्तिष्क का छोटे से छोटा हिस्सा, हड्डियां कैसे बनती हैं, ऑस्टियोपोरोसिस कैसे होता है. इतना ही नहीं तो रासायनिक प्रक्रियाएं कैसे होती हैं, कठिन गणित के सवाल कैसे खेल खेल में हल किए जाएं. सब कुछ उपलब्ध है.

Frankfurter Buchmesse 2011
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डिजाइनमेट नाम की कंपनी 2001 से माध्यमिक और उच्चतर विद्यालयों के लिए 3डी फिल्में बना रही हैं. जिनमें विज्ञान, तकनीक के बारे में वीडियो बनाए गए हैं.

ये वीडियो कई पाठ्यपुस्तकों को मिला कर फिर तैयार किए गए हैं. विशेषज्ञों की टीम कई पाठ्य पुस्तकों को देखती है, उनके आधार पर एक नया टेक्स्ट तैयार किया जाता है, इसे जांचा परखा जाता है और फिर शुरू होता है वीडियो प्रोग्राम का बनना. एनिमेशन तैयार होता है, टेक्स्ट और फिर कई भाषाओं मे इसका अनुवाद होता है. एक लंबी लेकिन रोचक प्रक्रिया.

बदलाव है

फोरम के दौरान जानकारी दे रहे सुनील त्यागी ने बताया कि भारत में अलग अलग राज्यों में पांच हजार स्कूलों और विदेशों में करीब 200 स्कूलों में उनके बनाए 3डी प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं. इंग्लिश के अलावा भारतीय भाषाओं में मराठी, गुजराती और पंजाबी में ये उपलब्ध हैं. जबकि विदेशी भाषाओं में इंग्लिश के अलावा जर्मन, रसियन, स्पेनिश, पुर्तगीज, थाई भाषाओं में यह 3डी विडियो उपलब्ध हैं. 2डी के साथ शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट आज 3डी तक पहुंचा है और आगे इसे और विकसित किया जा रहा है.

आधारभूत जरूरतों की कमी बताते हुए त्यागी कहते हैं कि बीते 10 साल में काफी चीजें बदली हैं और हार्डवेयर स्कूलों में उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. सरकारों ने भी इस पर ध्यान देना शुरू किया है. राहुल मानते हैं कि मुश्किलें तो हैं लेकिन बदलाव भी तेजी से है.

Frankfurter Buchmesse 2011
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तेज फर्क

तेजी से बदलती पारंपरिक किताबों की दुनिया में ई बुक्स का आना. स्कूली कमरों का हॉट स्पॉच में बदल जाना और बोर्ड्स का थ्री डी पर्दे में. शिक्षा को आसान और सरल बनाने के नित नए तरीके. छात्रों को पढ़ाई दुनिया में खेल खेल में लाने की कोशिशें. इसी हॉट स्पॉट एजुकेशन के दूसरे कोने में 3डी प्रोग्राम्स लिए आई कंपनी जिपटेल्स के प्रतिनिधि बार बार प्रेजेन्टेशन के दौरान इस बात पर जोर दे रहे थे कि डिजटल होने का मतलब किताबों या टीचर का गायब होना नहीं है.

रिपोर्टः आभा मोंढे, फ्रैंकफर्ट

संपादनः ओ सिंह

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