44 साल में पहली बार जर्मन राष्ट्रपति अफगानिस्तान में
१६ अक्टूबर २०११करजई ने अफगानिस्तान के साथ 'पुराने दोस्त" जर्मनी के रिश्तों पर बात की. वुल्फ ने कहा कि पश्चिमी सेनाओं के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद भी जर्मनी की दोस्ती और सहयोग जारी रहेगा. उन्होंने कहा, "जर्मनी अफगानिस्तान को बेसहारा नहीं छोड़ेगा."
दोस्ती निभाने का वादा
वुल्फ ने कहा, "मैं यह साफ करने के लिए आया हूं कि जर्मनी अफगानिस्तान को अधर में नहीं छोड़ेगा." वुल्फ ने इस बात पर जोर दिया कि 44 साल में पहली बार कोई जर्मन राष्ट्रपति सरकारी यात्रा पर अफगानिस्तान गया है क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते अहम हैं. उन्होंने कहा, "2014 में अपनी सुरक्षा अपने आप संभालने के बाद जब अफगानिस्तान भविष्य की चुनौतियों का सामना करेगा, तब हम उसके साथ भरोसेमंद और लंबे समय तक चलने वाले संबंध बनाए रखेंगे."
जर्मनी में भी राष्ट्रपति के पद भारत की ही तरह रस्मी अहमियत ज्यादा है. लेकिन वुल्फ के रूप में 44 साल बाद किसी जर्मन राष्ट्रपति की यह पहली सरकारी यात्रा है. हालांकि सुरक्षा कारणों से इस यात्रा का एलान पहले नहीं किया गया. पिछले राष्ट्रपति होर्स्ट कोएलर मई 2010 में अफगानिस्तान गए तो थे, लेकिन वह सिर्फ वहां तैनात जर्मन सैनिकों से मुलाकात करके लौट आए थे. उसके कुछ ही दिन बाद कोएलर ने इस्तीफा दे दया था. उसके बाद जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने पिछले साल दिसंबर में अफगानिस्तान की यात्रा की थी.
दोनों नेताओं की यह मुलाकात अगले महीने जर्मनी के शहर बॉन में अफगानिस्तान पर होने वाले सम्मेलन की जमीन तैयार करेगी. वुल्फ पहली बार अफगानिस्तान गए हैं. राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात के बाद जर्मन राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान के नागरिक समाज के लोगों से मुलाकात की. इनमें मानवाधिकार और खासतौर पर महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले लोग शामिल थे.
अफगानिस्तान में जर्मन सैनिक
अफगानिस्तान में तैनात जर्मनी का सैन्य दल तीसरा सबसे बड़ा है. अमेरिका और ब्रिटेन के बाद जर्मनी के ही सबसे ज्यादा पांच हजार सैनिक वहां तैनात हैं. हालांकि उनकी वापसी इस साल के आखिर तक शुरू हो जाएगी.
अफगानिस्तान में सैनिक तैनाती जर्मनी के लिए एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. देश के कुछ हिस्सों में तो इसका सख्त विरोध हुआ है. लेकिन मैर्केल सरकार को इस मुद्दे पर विपक्षी दलों का समर्थन भी हासिल है. अब तक अफगानिस्तान में कुल 52 जर्मन सैनिकों की जान जा चुकी है. सेना की वेबसाइट के मुताबिक इनमें से 34 की जान विद्रोहियों से सीधे लड़ते हुए गई. इसलिए काफी संख्या में लोग सैनिकों की वहां तैनाती का विरोध करते हैं. बीते हफ्ते यह विरोध हिंसक दौर में पहुंच गया जब राजधानी बर्लिन के रेलवे नेटरवर्क पर बम से हमले की कोशिश की गई. बीते सोमवार को एक रेलवे लाइन पर छोटा धमाका भी हुआ. उसके बाद बुधवार को एक और धमाका हुआ. हालांकि इनमें किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा.
हेकला वेलकम कमेटीः इनिशिएटिव फॉर मोर सोशल इरप्शंस नाम के एक समूह ने इन धमाकों की जिम्मेदारी ली. इस समूह की वेबसाइट पर जारी किए गए बयान में कहा गया, "आज सुबह हमने जर्मनी की राजधानी को और हथियारों के बड़े निर्यातक के रूप में इसके कामकाज को कुछ धीमा कर दिया." हालांकि समूह ने कहा कि वह किसी की जिंदगी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता लेकिन अफगानिस्तान में जर्मनी की भूमिका की निंदा की. हेकला ने कहा, "दुनिया के कई हिस्सों में जर्मन सैनिक हत्याएं करते हैं. 10 साल से जर्मनी अफगानिस्तान में युद्ध कर रहा है."
रिपोर्टः एएफपी/डीपीए/वी कुमार
संपादनः एन रंजन