50 करोड़ छोटे किसान भुखमरी के शिकार
२२ अक्टूबर २०१०संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर ओलिवर डे शुटर ने पोषण के अधिकार पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कृषि पूंजीवाद, शहरीकरण और पर्यावरण प्रदूषण छोटे किसानों को बेदखल कर रहे हैं और उनके अस्तित्व का आधार छीन रहे हैं. उन्होंने कहा कि जैसे जैसे देहाती आबादी बढ़ रही है और औद्योगिक विस्तार के साथ प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही हैछोटे किसानों की जमीन भी घट रही है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का उदाहरण देते हुए डे शुटर ने कहा कि छोटे किसानों की औसत जमीन 1960 के 2.6 हेक्टेयर से घटकर 2000 में सिर्फ 1.4 हेक्टेयर रह गई है.
डे शुटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकारें, सरकारों का इंवेस्टमेंट फंड लेकिन खासकर घरेलू और विदेशी निवेशक बड़े पैमाने पर उस जमीन को खरीदने का प्रयास कर रहे हैं जो किसानों, मछुआरों और आदिवासियों के खाने पीने और जीवनयापन का आधार हैं.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार निवेशक स्थानीय जरूरत का अनाज उपजाने के बदले बड़े बड़े फार्म बनाकर वहां ऐसे कैश क्रॉप उपजाते हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसानी से बेचा जा सके या फिर बायो डीजल बनाने के लिए उपयुक्त फसल लगाते हैं.
ओलिवर डे शुटर का कहना है कि जमीन पर सट्टेबाजी बढ़ती जा रही है, "आपको पता है कि खेती योग्य जमीन, उर्वर जमीन कम होती जा रही है और इसीलिए वह पीने के पानी की तरह भविष्य में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण माल होगा."
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वजह से भी लाखों हेक्टेयर जमीन का नुकसान हो रहा है. हर साल इटली के आकार की पचास लाख से एक करोड़ हेक्टेयर खेती योग्य जमीन पर्यावरण परिवर्तन के कारण खो रही है तो 2 करोड़ हेक्टेयर जमीन औद्योगिक प्रसार के कारण. इसके अलावा हर साल 4 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर बायो डीजल बनाने के उपयुक्त पौधे लगाए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि चावल, मक्का और गेहूं जैसे खाद्य पदार्थों की कीमत में वृद्धि अत्यंत चिंताजनक है और कुपोषण का सामना करने वाले लोगों का हालत और खराब करेगा. संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन के अनुसार इस समय साढ़े 92 करोड़ लोग भूखमरी के शिकार हैं.
रिपोर्ट में सरकारों से मांग की गई है कि वह प्रभावित लोगों की सुरक्षा के कदम उठाए. किसानों को विस्थापित किए जाने के खिलाफ कानून बनाने की भी मांग की गई है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा एम