50 साल की दीवार पर मौन श्रद्धांजलि
१३ अगस्त २०११संसद में राष्ट्रध्वज को आधा झुका दिया गया और चर्च की घंटियों ने जैसे ही दोपहर के 12 बजाये, जर्मनी के लोग मौन हो गए. 3 मिनट के लिए पूरा बर्लिन जैसे थम गया. बर्लिन की सड़कों पर चल रही बसें रुक गईं, ट्रेनों के पहिए थम गए और यहां तक कि रेडिया का प्रसारण भी इतने समय के लिए रोक दिया गया.
पूरे बर्लिन में इस दिन को याद करने के लिए तरह तरह के आयोजन किए गए हैं. शनिवार को दीवार बनने की शुरुआत के 50 साल पूरे होने पर बर्लिन में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा शहर के मेयर क्लाउस वोवेराइट भी मौजूद थे. जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ और चांसलर अंगेला मैर्केल दोनों ही पूर्वी जर्मनी में पले बढ़े हैं. श्रद्धांजलि सभा इस दीवार को तोड़ कर उसी जगह बनाए गए चैपल में हुई और इसके बाद विशेष प्रार्थना की गई.
दीवार पार करने की कोशिश में गई जान
1961 से 1989 के बीच दीवार पार करने की कोशिश में 136 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इन्हीं लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस विशेष सभा का आयोजन किया गया. हालांकि पूर्वी जर्मनी से पश्चिमी जर्मनी आने की कोशिश में मारे जाने वाले लोगों की कुल संख्या 600 से 700 के बीच में कही हैं.
इस मौके पर राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने कहा, "कोई नहीं जानता सच में कितने लोग मारे गए, हम अपना सर उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए झुकाते हैं जो दीवार पर और जर्मनी की सीमा के अंदर मारे गए." राष्ट्रपति ने कहा, "हजारों लोग या तो मारे गए या घायल हुए. इसके अलावा कैद में रहने वाले लोगों की तादाद भी बहुत बड़ी है. लेकिन बर्लिन की दीवार के पीड़ित सिर्फ यही लोग नहीं हैं. लाखों लोगों को ऐसा जीवन जीने पर विवश होना पड़ा जैसा वे नहीं जीना चाहते थे."
बर्लिन के मेयर क्लाउस वोवेराइट ने पीड़ितों को याद करते हुए कहा, "दीवार तानाशाह तंत्र का हिस्सा थी, एक अन्यायी देश. यह दीवार लोगों के मानसिक दिवालिएपन की निशानी थी. दीवार अब इतिहास बन चुकी है लेकिन इसे भूला नहीं जाना चाहिए. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे अपनी यादों में जिंदा रखें और आने वाली पीढ़ी को बताएं, ताकि इस तरह के अन्याय खुद को कभी दोहरा न सकें."
पीड़ितों में मैर्केल भी
इस मौके पर चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि यह अवसरर दुनियाभर में आजादी और लोकतंत्र के समर्थन का महत्व जाहिर करता है. समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में उन्होंने कहा, "दीवार बनाने का अन्याय हमें याद दिलाता है कि हमें आजादी, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए अपने देश और दुनिया में खड़ा होना है."
मैर्केल एक प्रोटेस्टेंट पादरी की बेटी हैं जो पैदा तो पश्चिमी जर्मनी में हुईं लेकिन बहुत छोटी उम्र में ही अपने परिवार के साथ पूर्वी जर्मनी चली गईं. उस लम्हे को याद करते हुए मैर्केल ने कहा, "1961 में मैं केवल सात साल की थी पर मुझे याद आता है कि दीवार के बनने से मेरे परिवार में किस तरह की दहशत भर गई थी. हमें अपने दादा दादी और आंटी से क्रूरता पूर्वक अलग कर दिया गया. हालांकि इससे ज्यादा याद करने वाली बात 1989 का वो लम्हा है जब इस दीवार के गिरने से हम जर्मन लोगों को बेइंतहा खुशी मिली."
श्रद्धांजलि देने की शुरुआत शुक्रवार की रात 12 बजे से ही हो गई, जब चर्च में सात घंटे तक चले विशेष कार्यक्रम में उन लोगों के नाम और उनकी कहानियां पढ़ी गईं जिन्होंने आजादी मांगने के एवज में अपनी जान गंवाई. इन लोगों में 58 साल की इडा सिकमान भी हैं जिन्हें बर्लिन की दीवार का पहला पीड़ित माना जाता है. 22 अगस्त 1961 को एक मकान की तीसरी मंजिल से कूद कर पश्चिमी जर्मनी जाने की कोशिश में उनकी जान चली गई. इसी तरह 20 साल के क्रिस ग्वाफ्रॉय को अंतिम पीड़ित माना जाता है. 6 फरवरी 1989 को क्रिस नहर के रास्ते तैर कर सीमा पार करने की कोशिश कर रहे थे जब उन्हें गोली मार दी गई. इसके 9 महीने बाद ही ये दीवार गिरा दी गई.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार