बर्लिन दीवार: इतिहास की पथरीली दास्तां
१३ अगस्त २०११नाजी जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ खत्म हुए दूसरे विश्व युद्ध के बाद गठबंधन सेनाओं ने बर्लिन को चार हिस्सों में बांटा. सबसे बड़ा पूर्वी हिस्सा सोवियत सेक्टर था. पश्चिम हिस्से पर तीन ताकतों फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका का नियंत्रण था. गठबंधन सहयोगियों ने पोट्सडैम समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके मुताबिक जर्मनी और बर्लिन की सीमाएं तय हुईं.
पूर्वी जर्मनी से भगदड़
1954 से 1960 के बीच पूर्वी जर्मनी ने प्रतिभाओं का बड़ा पलायन देखा. स्वीडिश लेखक फ्रिट्योफ लैगर की किताब 'बर्लिन की दीवार' के मुताबिक इस दौरान 4,600 डॉक्टर, 15,885 अध्यापक, 738 यूनिवर्सिटी प्रोफेसर, 15,536 इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञ पूर्व से पश्चिमी जर्मनी चले गए. कुल मिला कर यह संख्या 36,759 बैठती है. लगभग 11 हजार छात्र भी पूर्वी जर्मनी छोड़ गए.
इन सभी काबिल लोगों को शिक्षा पूर्वी जर्मनी के खर्च पर मिली, लेकिन उनका फायदा पश्चिमी जर्मनी को मिलने लगा. इस दौरान कुल मिला कर 20 से 30 लाख लोगों ने पश्चिमी जर्मनी का रुख किया, जो पूर्वी जर्मनी की कुल आबादी का 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा था. जाहिर है इस तरह की स्थिति पूर्वी जर्मनी को स्वीकार्य नहीं थी.
पूर्वी जर्मनी में शिक्षा मुफ्त थी लेकिन पश्चिमी जर्मनी में शिक्षा पर खर्च होता था. ऐसे में जर्मन छात्र शिक्षा के लिए पूर्वी हिस्से में जाते और नौकरी के लिए पश्चिमी जर्मनी लौट आते.
वैसे भी पूर्वी और पश्चिम जर्मनी की सीमा बंद होने के बाद भी बर्लिन के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में आना जाना मुमकिन था. ऐसे में पूर्वी जर्मनी छोड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए पश्चिमी बर्लिन में आकर वहां से विमान लेकर पश्चिमी जर्मनी में जाना आसान था.
रातों रात विभाजन
1950 और 1960 के दशक के शीत युद्ध में पश्चिमी देश बर्लिन को पूर्वी ब्लॉक की जासूसी के लिए भी इस्तेमाल करते थे. जब तक सीमा खुली थी तो वे रूसी सेक्टर में चले जाते थे. 1960 में लगभग 80 जासूसी सेंटर थे. इतने ही सेंटर पूर्वी ब्लॉक के खिलाफ भी काम कर रहे थे. इस तरह के जासूसी युद्ध को उस जमाने में 'खामोश युद्ध' कहा जाता था.
इन्हीं सब वजहों से परेशान हो कर 1961 में 12 और 13 अगस्त की रात पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन की सीमा को बंद कर दिया गया. हजारों सैनिक सीमा पर तैनात किए गए और मजदूरों ने कंटीले तार लगाने शुरू किए. यह काम रात को एक बजे शुरू किया गया और सड़कों पर जलने वाली लाइटें भी बंद कर दीं ताकि पश्चिमी हिस्से के लोगों को पता न चले. सुबह तक शहर दो हिस्सों में बंट चुका था और लोगों को पता ही नहीं चल रहा था कि क्या हो रहा है. उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी भी बहुत हैरान थे.
बर्लिन के लोग दीवार बनने पर हैरान और परेशान थे. पूर्वी हिस्से में कम्युनिस्ट शासन में रहने वाले लोगों के पास गुस्सा जताने के भी ज्यादा रास्ते नहीं थे. ऊपर से सभी नागरिकों पर पूर्वी जर्मन खुफिया पुलिस स्टाजी की नजर रहती थी. उस सुबह तक दीवार सिर्फ कंटीले तारों वाली एक बाड़ थी, जो कई जगह अधूरी थी. कुछ पूर्वी जर्मन उसमें बचे गैप में से निकल भागने की कोशिश करने लगे. उन्हें लगा कि यही आखिरी मौका है पूर्वी जर्मनी को छोड़ने का. कहते हैं कुछ पूर्वी जर्मन सैनिक भी भागने की फिराक में थे.
लोगों का गुस्सा
पश्चिम हिस्से में लोगों ने खुल कर अपनी नाराजगी दिखाई. सीमा पर भीड़ जमा हो गई. अमेरिका से मांग की गई कि वह दखल दे और दीवार के निर्माण को रुकवाए. लेकिन परमाणु युद्ध के डर से अमेरिका और नाटो ने हस्तक्षेप करने से परहेज किया. हालांकि इसके लिए उन्हें आचोलना भी झेलनी पड़ी.
बर्लिन की दीवार शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को बांटने वाली रेखा पर बनी. दीवार बनने से पहले सीमाएं खुली थीं. पश्चिम की तरफ 45 किलोमीटर लंबी सीमा पर 90 चौकियां थी. यानी प्रति किलोमीटर दो चौकियां. पूर्वी हिस्से की तरफ 78 चौकियां बताई जाती हैं. तभी रोज दोनों तरफ आने जाने वाले वाहनों की जांच संभव थी. 1968 में जब दीवार बन गई तो चौकियां की संख्या सिर्फ 19 रह गई.
13 अगस्त को जब बर्लिन दीवार बननी शुरू हुई तो सीमांकन रेखा को पहले सैनिकों से और फिर कंटीली तारों से रोका गया. जब दीवार बन गई तो पूर्वी जर्मनी ने उसके आसपास 100 मीटर चौड़ा मानव रहित क्षेत्र भी बनाया, ताकि सीमा की सुरक्षा के लिए पर्याप्त खुला क्षेत्र बना रहे. पूर्वी जर्मनी के गश्ती सैनिकों को सख्त हिदायत थी कि सीमा के पार कोई भी गोली न दागें. उन्हें किसी को देखने के बाद पहले चेतावनी देने का निर्देश था. इसके बाद वे चेतावनी के तौर पर हवा में गोली चलाते थे. गोली तभी चलाई जाती जब सीमा का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति चेतावनी पर ध्यान नहीं दे रहा है.
यह दीवार उस वक्त बर्लिन में दो देशों की सीमा थी.
रिपोर्टः अशोक कुमार
संपादनः महेश झा