इराक: सद्र समर्थकों ने संसद भवन पर धावा बोला
२८ जुलाई २०२२राजधानी बगदाद में सैकड़ों प्रदर्शनकारी सुरक्षा के लिहाज से सबसे सुरक्षित क्षेत्र 'ग्रीन जोन' वाले इलाके में लगे बैरिकेडस को लांघते हुए संसद भवन में घुस गए. 'ग्रीन जोन' वह इलाका है जहां सरकारी दफ्तर और कूटनीतिक इमारतें हैं.
ये सभी प्रदर्शनकारी प्रभावशाली शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सद्र के समर्थक बताए जा रहे हैं और हाल ही में मोहम्मद अल-सुदानी को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किए जाने का विरोध कर रहे थे. जब प्रदर्शनकारी संसद भवन में दाखिल हुए तो वहां कोई सांसद मौजूद नहीं था.
कुछ प्रदर्शनकारी "सुदानी आउट" जैसे नारे लगाते हुए परिसर के चारों ओर की दीवारों पर चढ़ गए. कुछ तस्वीरों और वीडियो में प्रदर्शनकारियों को इमारत की मेजों पर चलते हुए और संसद के अंदर इराकी झंडा लहराते हुए देखा जा सकता है.
नौ महीने का राजनीतिक गतिरोध
कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी ने प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने और ग्रीन जोन में प्रदर्शन को खत्म करने की अपील की है. उन्होंने एक बयान में चेतावनी देते हुए कहा, "सुरक्षा बल संस्थानों और विदेशी मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और सुरक्षा और व्यवस्था को किसी भी तरह के नुकसान को रोकेंगे."
पिछले साल अक्टूबर में हुए चुनाव के बाद से राजनीतिक दल राष्ट्रीय नेता चुनने पर एक समझौते पर आने में विफल रहे हैं. इस तरह से मध्य पूर्वी देश लंबे समय से एक नियमित प्रधानमंत्री के बिना है.
अल-सद्र के गुट ने चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतीं, लेकिन अन्य दलों के साथ बातचीत रुक गई क्योंकि कुर्द और शिया सांसद समझौते पर पहुंचने में विफल रहे. अल-सद्र और उनके समर्थक शिया हैं लेकिन वे ईरान के साथ मजबूत संबंधों वाले अन्य शिया दलों का विरोध करते हैं, जैसे कि मोहम्मद अल-सुदानी की समन्वय फ्रेमवर्क पार्टी.
अल-सद्र ने एक नए राष्ट्रपति के चुनाव कराने के लिए पर्याप्त समर्थन हासिल करने में विफल रहने के बाद अपने सांसदों को सामूहिक रूप से इस्तीफा देने का आदेश दिया था. इराक में संसद औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री की स्थिति पर निर्णय लेने से पहले राष्ट्रपति का चुनाव करती है.
329 सीटों वाली संसद में सद्र के 73 सांसदों के इस्तीफे ने नए सांसदों के शपथ ग्रहण का रास्ता साफ कर दिया, लेकिन ईरान समर्थक राजनीतिक गुट आकार में बढ़ गया और अब यह सबसे बड़ा राजनीतिक गुट है.
संसद में ईरानी समर्थक समूहों की बढ़ती ताकत ने इस आशंका को और भी हवा दे दी कि अगर समूह ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली तो अल-सद्र के समर्थक उनके विरोध में सड़कों पर उतर सकते हैं और हिंसा की एक नई लहर शुरू कर सकते हैं.
इससे पहले 2016 में अल-सद्र के समर्थकों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री हैदर अल-अब्दी से राजनीतिक सुधारों की मांग के लिए संसद पर धावा बोल दिया था.
एए/सीके (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)